अपठित गद्यांश को अंग्रेजी भाषा में unseen passage कहते है। अपठित का अर्थ जो पढ़ा नहीं गया हो के रूप में लिया जाता है। यह ऐसा गद्यांश होता है जो पहले पढ़ा नहीं गया हो। यह गद्यांश किसी भी विषय से संबंधित हो सकता है। इसमें कला, विज्ञान, राजनीति, साहित्य या अर्थशास्त्र कोई भी विषय […]
‘वातावरण’ के लिए ‘पर्यावरण’ शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘परि + आवरण‘। ‘परि‘ का अर्थ है- ‘चारों ओर’ एवं ‘आवरण‘ का अर्थ है-‘ढकने वाला‘। इस प्रकार पर्यावरण या वातावरण वह वस्तु है जो चारों ओर से ढके हुए है। अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्ति […]
साहित्य वह है, जिसमें प्राणी के हित की भावना निहित है। साहित्य मानव के सामाजिक सम्बन्धों को दृढ़ बनाता है; क्योंकि उसमें सम्पूर्ण मानव जाति का हित निहित रहता है। साहित्य द्वारा साहित्यकार अपने भाव और विचारों को समाज में प्रसारित करता है, इस कारण उसमें सामाजिक जीवन स्वयं मुखरित हो उठता है।साहित्य का जन्म […]
प्राचीन भारत से ही भारतीय समाज में लड़कों को लड़कियों से अधिक महत्व दिया जाता है। एक घर में जहाँ पर लड़का होने की खुशी मनाई जाती थी वहीं दूसरी तरफ लड़की होने का दुख भी उतना ही मनाया जाता था। पितृसत्ता समाज की विचारधारा के अनुसार लड़के को वंश बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण माना […]
राष्ट्रीय चिह्न एक प्रतीक या मुहर है जिसे किसी राष्ट्र या बहु-राष्ट्रीय राज्य द्वारा अपने प्रतीक के रूप में उपयोग के लिए आरक्षित किया जाता है। कई देशों में राष्ट्रीय प्रतीक है। हालांकि राष्ट्रीय प्रतीक होना जरूरी नहीं है, इसका झंडा किसी देश की पहचान भी कर सकता है। राष्ट्रीय चिन्ह कुछ भी हो सकता […]
राष्ट्रीय पशु का अर्थ होता हैं- एक जानवर जो किसी देश का प्रतीक है। भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ हैं। बाघ एक जंगली जानवर है, जिसे भारत में भारतीय सरकार के द्वारा राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है। राजसी बाघ, तेंदुआ टाइग्रिस धारीदार जानवर है। इसकी मोटी पीली लोमचर्म का कोट होता है जिस पर […]
जीवन में हार जीत तो लगी रहती है। हम यदि कोई भी कार्य कर रहे तो उसका एक ही परिणाम होगा या तो जी या तो हार। हमें कोई भी कार्य बिना उसका परिणाम सूची करना चाहिए। परिणाम कुछ भी हो पर हमें हमेशा अच्छा ही सोचना चाहिए। कहा जाता है मन के हारे हार […]
महाकवि कालिदास ने अपनी विश्वप्रसिद्ध रचना ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ में महर्षि कण्व से कहलवाया है– “अर्थो हि कन्या परकीय एव।” अर्थात् कन्या पराया धन है, न्यास है, धरोहर है। न्यास और धरोहर की सावधानी से सुरक्षा करना तो सही है, किन्तु उसके पाणिग्रहण को दान कहकर वर–पक्ष को सौदेबाजी का अवसर प्रदान करना तो कन्या–रत्न के […]
जब आवै संतोष धन सब धन धुरि समान संतोषी सदा सुखी गौधन गजधन वाजिधन और रतन धन खानि जब आवै संतोष धन सब धन धुरि समान आज भले ही संतोषी स्वभाव वाले व्यक्ति को मुर्ख और कायर कहकर हंसी उड़ाई जाय लेकिन संतोष ऐसा गुण हैं जो आज भी सामाजिक सुख शांति का आधार बन […]