प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार जीवन मेंसुखसे क्या अभिप्राय है?

उत्तर 1. 

लेखक के अनुसार जीवन में  सुख का अभिप्राय यह हैं की , यह उत्पादन सुख के लिए है , उपभोग-भोग ही सुख है , परन्तु आज कल सुख की परिभाषा बदल गई है , उत्पाद तो हमारे लिए है पर हम जाने अनजाने में भूल जाते है की उत्पाद के कारण हमारा चरित्र बदल रहा है।



प्रश्न 2.
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

उत्तर 

आज की उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारा दैनिक जीवन पूरी तरह प्रभावित हो रहा है।  आज के समय में उपभोग ही सुख समझा जाने लगा है, दिखावे के लिए लोग बहुविज्ञापित वस्तुओ को खरीद लेना चाहते है।  जिससे समजा भी अमीरी गरीबी के बिच बड़ा फैसला रहा है।  और अमीरी गरीबी में फैसला होने से असन्तोष और आक्रोश बढ़ रहा है।



प्रश्न 3.
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ?

 उत्तर 

लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती  कहा है क्योकि यह एक बड़ी चुनौती है और भविष्य के लिए बड़ी चुनौती है।  गाँधी जी ने कहा था हम हमे सबको अपनाते हुए अपनी संस्कृति नहीं खोनी है पतंतु आज के उपभोग्तावादी समाज में हम अपनी ही संस्कृति को छोड़ पश्चिमी संस्कृति को पूरी तरह अपना रहे है और यह सब संभव है विज्ञापन उपभोगता के कारण।


प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए-
() जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
() प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों हो।
उत्तर-
आशय स्पष्ट कीजिए-
() जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
() प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों हो।

उत्तर-
() उपभोक्तावादी संस्कृति अधिकाधिक उपभोग को बढ़ावा देती है। लोग उपभोग का ही सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। इससे वे वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जिसका असर उनके चरित्र पर पड़ता है।

() लोग समाज में प्रतिष्ठा दिखाने के लिए तरह-तरह के तौर तरीके अपनाते हैं। उनमें कुछ अनुकरणीय होते हैं तो कुछ उपहास का कारण बन जाते हैं। पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार अंतिम विश्राम हेतु-अधिक-से-अधिक मूल्य देखकर सुंदर जगह सुनिश्चित करने लगे हैं। उनका ऐसा करना नितांत हास्यास्पद है।


प्रश्न 5.
कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों ?

उत्तर 

कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं।  इसके अनेको कई निम्लिखित कारण हो सकते है। 

उस का वास्तु का विज्ञापन ऐसे कलाकार से कराया जाता है जो लोगो को अधिक प्रिय होता है। 

वास्तु को इतना बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जाता है की किसी को भी ललचा जाये एक बार इस्तेमाल करने के लिए। 

"टी वी पर आये हुए विज्ञापन वाली वास्तु हमारे पास भी है" ऐसी सोच भी हमे वास्तु खरीदने पर मजबूर कर देती है। 

विज्ञापन में वस्तुओ के बारे में जो जो मुनाफे बताये जाते हो उससे भी एक बार मन में उसे खरीदने के लिए लालच जाता है।



प्रश्न 6.
आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।

उत्तर 

वास्तु को खरीदने के लिए उसकी गुणवत्ता होनी चाहिए ना की केवल विज्ञापन को ही देखकर उसको खरीद लेना चाहिए। विज्ञापन वास्तु के बाहरी गुण बताने में तो सक्षम होती है परन्तु वास्तु की अंधरुनि गुणवत्ता को हमे अपने जरूरत व विवेक के अनुसार खरीदना चाहिए। 


एक उदाहरण देके समझना हो तो " हमे हमेसा तलवार की धार देखनी चाहिए न की म्यान कितना सुन्दर है।

प्रश्न 7.
पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रहीदिखावे की संस्कृतिपर विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर

आज दिखावे की संस्कृति पनप रही है। यह बात बिल्कुल सत्य है। इसलिए लोग उन्हीं चीजों को अपना रहे हैं, जो दुनिया की नजरों में अच्छी हैं। सारे सौंदय-प्रसाधन मनुष्यों को सुंदर दिखाने के ही प्रयास करते हैं। पहले यह दिखावा औरतों में होता था, आजकल पुरुष भी इस दौड़ में आगे बढ़ चले हैं। नए-नए परिधान और फैशनेबल वस्त्र दिखावे की संस्कृति को ही बढ़ावा दे रहे हैं।



आज लोग समय देखने के लिए घड़ी नहीं खरीदते, बल्कि अपनी हैसियत दिखाने के लिए हजारों क्या लाखों रुपए की घड़ी पहनते हैं। आज हर चीज पाँच सितारा संस्कृति की हो गई है। खाने के लिए पाँच-सितारा होटल, इलाज के लिए पाँच सितारा हस्पताल, पढ़ाई के लिए पाँच सितारा सुविधाओं वाले विद्यालये-सब जगह दिखावे का ही साम्राज्य है। यहाँ तक कि लोग मरने के बाद अपनी कब्र के लिए लाखों रुपए खर्च करने लगे हैं ताकि वे दुनिया में अपनी हैसियत के लिए पहचाने जा सकें। वो दिन भी दूर नहीं जब भारत में भी यही संस्कृति होगी के लोग मरने से पहले ही अपनी समाधी को सजवा लिए करेंगे।  


यह दिखावा-संस्कृति मनुष्य को मनुष्य से दूर कर रही है। लोगों के सामाजिक संबंध घटने लगे हैं। मन में अशांति जन्म ले रही है। आक्रोश बढ़ रहा है, तनाव बढ़ रहा है। हम लक्ष्य से भटक रहे हैं। यह अशुभ है। इसे रोका जाना चाहिए।

प्रश्न 8.
आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर

आज की उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाव से हमारे रीति-रिवाज और त्योहार भी नहीं बचे है। हमारे रीति-रिवाज और त्योहार सामाजिक समरसता बढ़ाने वाले, वर्ग भेद मिटाने वाले सभी को उल्लासित एवं आनंदित करने वाले हुआ करते थे, परंतु उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से इनमें बदलाव आ गया है। इससे त्योहार अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। आज रक्षाबंधन के पावन अवसर पर बहन भाई द्वारा दिए गए उपहार का मूल्य आंकलित करती है। पहले जो रेशम की राखी हुआ करती थी आज उसी रेसम ने सोने के कड़े का रूप ले लिए है। दीपावली के त्योहार पर मिट्टी के दीए प्रकाश फैलाने के अलावा समानता दर्शाते थे परंतु बिजली की लड़ियों और मिट्टी के दीयों ने अमीर-गरीब का अंतर स्पष्ट कर दिया है। विज्ञापन की होड़ में अन्य त्योहारों का भी यही हाल है। अब बस अपनी हैसियत दिखने भर के लिए ही त्यौहार रह गए है।


प्रश्न 9.
धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में बदल रहा हैक्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
() ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
() धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों को प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
() नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-

उत्तर-
()

  1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। (‘ धीरे-धीरे रीतिवाचक क्रिया-विशेषण) (सब-कुछपरिमाणवाचक क्रिया-विशेषण’)

  2. आपको लुभाने की जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है। (‘निरंतररीतिवाचक क्रिया-विशेषण)

  3. सामंती संस्कृति के तत्त्वे भारत में पहले भी रहे हैं। (‘पहलेकालवाचक क्रिया-विशेषण)

  4. अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी सकता है। (आज, कल कालवाचक क्रिया-विशेषण)

  5. हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी रही है। (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)


()

  • धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की बीमारी धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल चुकी है।

  • जोर-से – अचानक यहाँ जोर-से विस्फोट हुआ। लगातार-कल से लगातार वर्षा हो रही है।

  • हमेशा – चोरी और बेईमानी हमेशा नहीं चलती।

  • आजकलआजकल विज्ञापनों का प्रचलन और भी जोर पकड़ता जा रहा है।

  • कम भारत में अनपढ़ों की संख्या कम होती जा रही है।

  • ज्यादा – उत्तर प्रदेश में अपराधों की संख्या पंजाब से ज्यादा है।

  • यहाँ – कल तुम यहाँ आकर बैठना।

  • उधर – मैंने जानबूझकर उधर नहीं देखा।

  • बाहर – तुम चुपचाप बाहर चले जाओ।

()

  1. निरंतर, (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)

  2. पके (विशेषण)

  3. हलकी (विशेषण) कल रात कल रात (कालवाचक क्रियाविशेषण) जोरों की (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)

  4. उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण) मुँह में (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)

आजकल (कालवाचक क्रिया-विशेषण) बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)



प्रश्न 10.
दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभावविषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर-
इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृत के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें। क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है। आप प्रतिदिन टी० वी० पर ढेरों विज्ञापन देखते-सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी ज़बान पर चढ़ हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए। उत्तर-छात्र स्वयं करें।