साक्षात्कार पढ़कर आपके मन में धनराज पिल्लै की कैसी छवि उभरती है? वर्णन कीजिए।
साक्षात्कार पढ़कर हमारे मन में धनराज पिल्लै की जो छवि उभरती है वह इस प्रकार है -
वे सीधा-सरल जीवन व्यतीत करने वाले मध्यमवर्गीय परिवार से नाता रखने वाले हैं।
उनके मन में जो भी आता है वह उसे सामने बोल देते हैं।
वे देखने में बहुत सुंदर नहीं हैं।
"प्रसिद्धि की विनम्रता के साथ चलना सिखाया"- उनकी यह बात उनके इस व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करती है कि हॉकी के खेल में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त करने का जरा भी घमंड उनमें नहीं है।
आम लोगों की भाँति लोकल ट्रेनों में सफर करने में भी कतराते नहीं।
विशेष लोगों से मिलकर बहुत प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।
इतनी प्रसिद्धि पाने पर भी आर्थिक समस्याओं से जूझते रहें।
लोग भले ही उनको तुनुकमिज़ाज समझे लेकिन वे बहुत भावुक हृदय मनुष्य हैं जो किसी को भी दुख में नहीं देख सकते।
वह पढ़ाई में अच्छे नहीं थे लेकिन उन्होंने अपने खेल को अपना जुनून बनाकर एक महान व काबिल व्यक्ति बनकर दिखाया।
धनराज पिल्लै ने जमीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा तय की है। लगभग सौ शब्दों में इस सफ़र का वर्णन कीजिए।
धनराज पिल्लै ने ज़मीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक का सफर तय किया है। धनराज पिल्लै का बचपन काफ़ी आर्थिक संकटों के बीच गुजरा है। उनके पास अपने लिए एक हॉकी स्टिक तक खरीदने के पैसे नहीं थे। शुरुआत में मित्रों से उधार लेकर वह हाॅकी खेला करते थे और बाद में अपने बड़े भाई की पुरानी स्टिक से उन्होंने काम चलाया। वह स्टिक नई तो नहीं थी लेकिन उनके लिए बहुत कीमती थी। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और अंत में मात्र 16 साल की उम्र में उन्हें मणिपुर में 1985 में जूनियर राष्ट्रीय हॉकी खेलने का मौका मिला। इसके बाद इन्हें सन् 1986 में सीनियर टीम में स्थान मिला। उस वर्ष अपने बड़े भाई रमेश के साथ मिलकर उन्होंने मुंबई लीग में अपने बेहतरीन खेल से खूब धूम मचाई। 1988 में उन्हें पूरी उम्मीद थी कि ओलंपिक के लिए उन्हें चुना जाएगा किंतु ऐसा नहीं हुआ। अंततः 1989 में उन्हें ऑलविन एशिया कप कैंप के लिए चुना गया। उसके बाद वे लगातार सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते रहे और पूरे विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त करते रहे।
‘मेरी माँ ने मुझे अपनी प्रसिद्धि को विनम्रता से सँभालने की सीख दी है’–धनराज पिल्लै की इस । बात का क्या अर्थ है?
‘मेरी माँ ने मुझे अपनी प्रसिद्धि को विनम्रता से सँभालने की सीख दी है’–धनराज पिल्लै की इस बात का अर्थ यह है कि मनुष्य चाहे कितनी भी सफलता की सीढ़ियाँ क्यों ही न चढ़ जाए उसे कभी घमंड नहीं करना चाहिए और किसी को अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए। उसे कभी भी मानवता के भाव को नहीं भूलना चाहिए और कभी भी अपनी सफलता पर अभिमान नहीं करना चाहिए।माँ की इसी सीख को उन्होंने अजीवन अपनाया।
ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है। क्यों? पता लगाइए।
ध्यान चंद भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे।वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे ( जिनमें १९२८ का एम्सटर्डम ओलम्पिक , १९३२ का लॉस एंजेल्स ओलम्पिक एवं १९३६ का बर्लिन ओलम्पिक)। दर्शकों का मानना है कि जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी।ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है क्योंकि जैसे जादूगर अपने दावपेंचों से हमारी ही आँखों के सामने न जाने क्या-क्या करतब कर दिखाता है हमें पता भी नहीं चलता वैसे ही ध्यानचंद भी हॉकी खेलते खेलते कब कहां कैसे गोल कर देते थे दर्शकों को पता भी नहीं चलता कि कब गेंद नेट के अंदर चली गई।कोई भी ऐसा दावपेंच नहीं जो उन्हें न आता हो। कोई भी हॉकी में उन्हें मात नहीं दे सकता था। आज उनकी जन्मतिथि को भारत में "राष्ट्रीय खेल दिवस" के रूप में मनाया जाता है।
किन विशेषताओं के कारण हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल कहा जाता है?
हॉकी का खेल काफ़ी पहले ज़माने से भारत में खेला जाता रहा है। इसे राजा-महाराजाओं से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी बड़े चाव से खेला करते थे।
टोक्यो ओलंपिक में महिला और पुरुष हॉकी टीम के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद हॉकी को अधिकारिक रूप से राष्ट्रीय खेल घोषित किए जाने की मांग उठने लगी है। जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई थी। 1928 से 1956 तक का समय भारतीय हॉकी के लिए स्वर्णकाल कहा जाता है। वैसे तो यह खेल लगभग सभी देशों में खेला जाता है, लेकिन 1928 में भारत हॉकी का विश्व विजेता बना था। और इसके बाद हुए ओलंपिक में भारत ने हॉकी में कई स्वर्ण पदक भी अपने नाम किए। इसी के बाद से हॉकी की लोकप्रियता ऐसी बढ़ी कि इसे भारत का राष्ट्रीय खेल कहा जाने लगा। आज भी इस खेल के प्रति रुचि देश एवं विदेशों में बना हुआ है। इसलिए इसे भारत का राष्ट्रीय खेल माना जाता है। यह खेल वर्षों से लगातार आगे ही बढ़ता जा रहा है।
"यह कोई जरूरी नहीं कि शोहरत पैसा भी साथ लेकर आए"-क्या आप धनराज पिल्लै की इस बात से सहमत हैं? अपने अनुभव और बड़ों से बातचीत के आधार पर लिखिए।
हम धनराज पिल्लै के इस बात से सहमत हैं कि कोई ज़रूरी नहीं कि शोहरत पैसा भी साथ लेकर आए। उनका यह कथन बिलकुल सच है क्योंकि वे काफ़ी समय तक आम लोगों की भाँति लोकल ट्रेनों में सफ़र करते रहे, जिसे देखकर लोग हैरान होते थे। उन्हें स्वयं जितनी शोहरत मिली उतना पैसा प्राप्त नहीं हुआ। हमारे देश में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिनकी बात करके हम इस कथन को सिद्ध कर सकते हैं। जैसे -
प्रमुख साहित्यकार प्रेमचंद, भगवतीचरण वर्मा
मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ
उर्दू साहित्यकार इंशा अल्लाह खां
इन जैसे महान व्यक्तियों को प्रसिद्धि तो मिली किंतु आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा है।
(क) अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगना आसान होता है या मुश्किल?
(ख) क्या आप और आपके आसपास के लोग अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँग लेते हैं?
(ग) माफ़ी माँगना मुश्किल होता है या माफ़ करना? अपने अनुभव के आधार पर लिखिए।
(क) अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगना कठिन होता है, क्योंकि हमें दूसरे के सामने अपने अभिमान को झुकाना पड़ता है।
(ख) जब कभी मैं अपनी ग़लती पर माफी नहीं मांगता तो मुझे स्वयं में शांति नहीं मिलती।
लेकिन कई बार लोग गलती मानने को तैयार नहीं होते वे गलतियाँ करते हैं, साथ ही साथ अकड़ भी दिखाते हैं।
(ग) माफ़ी माँगने से ज्यादा मुश्किल है किसी को माफ़ करना। माफ़ी माँगना इसलिए आसान है क्योंकि माफ़ी माँगने के लिए एक बार झुककर अपनी ग़लती का अहसास कर लेते हैं।जबकि माफ़ करना ज्यादा कठिन होता है क्योंकि जब किसी ने आपकी भावनाओं से खिलवाड़ किया हो तो वह दर्द आप भुला नहीं पाते और उस व्यक्ति को माफ नहीं कर पाते।
नीचे कुछ शब्द लिखे हैं जिसमें अलग-अलग प्रत्ययों के कारण बारीक अंतर है। इस अंतर को समझाने के लिए इन शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए?
प्रेरणा प्रेरक प्रेरित
संभव संभावित संभवतः
उत्साह उत्साहित उत्साहवर्धक
(क)प्रेरणा- अपने जीवन में कभी भी हार न मानने की प्रेरणा मुझे मेरी मां पापा से मिली है।
प्रेरक-भारत का महान इतिहास व महापुरुषों का जीवन भारत के जन के प्रेरक है।
प्रेरित-गुरु जी की बातों ने मुझे प्रेरित किया कि मैं भी उनके जैसा महान व्यक्ति बन सकता हूं।
(ख)संभव- संभव है कि आज तूफ़ान आए।
संभावित-अपनी संभावित अगले माह की परीक्षा के लिए मुझे तैयारी करनी होगी।
संभवतः-संभवतः आज दिल्ली में बारिश आए।
(ग)उत्साह-खेल के मैदान में खिलाड़ियों का उत्साह देखते बनता है।
उत्साहित-मैं ताजमहल देखने के लिए काफ़ी ज़्यादा उत्साहित हूँ।
उत्साहवर्धक-प्रधानमंत्री का भाषण काफी उत्साहवर्धक था।
तुनुकमिज़ाज शब्द तुनुक और मिज़ाज दो शब्दों के मिलने से बना है। क्षणिक, तनिक और तुनुक एक ही शब्द के भिन्न रूप हैं। इस प्रकार का रूपांतर दूसरे शब्दों में भी होता है, जैसे बादल, बादर, बदरा, बदरिया, मयूर, मयूरा, मोर, दर्पण, दर्पन, दरपन। शब्दकोश की सहायता लेकर एक ही शब्द के दो या दो से अधिक रूपों को खोजिए। कम से कम चार शब्द और उनके अन्य रूप लिखिए।
क्षणिक, तनिक और तुनुक एक ही शब्द के भिन्न रूप हैं। इस प्रकार का रूपांतर दूसरे शब्दों में भी होता है, जैसे बादल, बादर, बदरा, बदरिया, मयूर, मयूरा, मोर, दर्पण, दर्पन, दरपन। चार शब्द और उनके दो या दो से अधिक अन्य रूप इस प्रकार हैं -
आभूषण, भूषण, विभूषण
अनुपम, अनोखा, अनूठा, अद्भुत
आँख, नेत्र, नयन, अक्ष
समुद्र, समंदर, सागर
मातृ, माता, मां
हर खेल के अपने नियम, खेलने के तौर-तरीके और अपनी शब्दावली होती है। जिस खेल में आपकी रुचि हो उससे संबंधित कुछ शब्दों को लिखिए, जैसे–फुटबॉल के खेल से संबंधित शब्द हैं-गोल, बैकिंग, पासिंग, बूट इत्यादि।
हर खेल के अपने नियम, खेलने के तौर-तरीके और अपनी शब्दावली होती है। मेरी रुचि क्रिकेट में है। उससे संबंधित कुछ शब्दों को इस प्रकार हैं–
बैट, डेड बॉल, एक्स्ट्रा , फाइन लेग, विकेट, विकेट कीपर, स्क्वायर लेग, गली, मिड आफ, मिड आन, मिड विकेट, बैट्समैन, बॉलर, फाइन लेग, शार्ट लेग, स्लिप्स, बाल, ओवर।