Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 13 "Teesri Kasam Ke Shilpkar". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

 “तीसरी कसम” फिल्म को कौन-कौन से पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया है?

 'तीसरी कसम' फ़िल्म को भारत तथा विदेशों में बहुत सम्मान प्राप्त हुआ है। 'तीसरी कसम' को स्वर्णपदक दिया गया साथ ही साथ इसका चयन सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रूप में किया गया बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन के द्वारा। इसे मास्को के फिल्म फेस्टिवल में भी पुरुस्कार की प्राप्ति हुई।

 शैलेंद्र ने कितनी फिल्म बनाई?

शैलेन्द्र की एक ही फिल्म 'तीसरी कसम' है।

 राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।

राजकपूर द्वारा निर्देशित मुख्य फिल्में संगम, मेरा नाम जोकर, बॉबी, श्री 420, सत्यम् शिवम् सुन्दरम् आदि है।

 'तीसरी कसम' फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है

 'तीसरी कसम' में 'हीरामन' का किरदार राजकपूर ने और 'वहीदा रहमान' ने हीराबाई का किरदार निभाया है।

फ़िल्म 'तीसरी कसम' का निर्माण किसने किया था?

शैलेन्द्र ने 'तीसरी कसम' फ़िल्म बनाई थी।

 राजकपूर ने 'मेरा नाम जोकर' के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?

इस फिल्म का निर्माण करते समय राजकपूर ये नहीं जानते थे की इस फिल्म के पहले भाग को बनाने में ही 6 वर्षो का समय लग जायेगा।

इस फिल्म का निर्माण करते समय राजकपूर ये नहीं जानते थे की इस फिल्म के पहले भाग को बनाने में ही 6 वर्षो का समय लग जायेगा।

शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया क्योंकि शैलेंद्र को ये उम्मीद नहीं थी की फिल्म की कहानी सुनने के बाद भी राजकपूर मेहनताना ।

 फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?

 फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को एक बेहतरीन कलाकार और आंखों से अभिनय करने वाले कलाकार मानते थे।

 'तीसरी कसम' फ़िल्म को सेल्यूलाइट पर लिखी कविता क्यों कहा गया है?

फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित साहित्यिक रचना के आधार पर तीसरी कसम फिल्म बनी है। सेल्यूलाइट का मतलब होता है कि किसी भी दृश्य को कैमरे पर ठीक वैसा ही उतार देना। फिल्म के भीतर भी कविता के ही जैसे संवेदना मार्मिकता आदि है इसीलिए इस फिल्म को सेल्यूलाइट पर लिखी फिल्म कहा गया है।

 'तीसरी कसम' फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?

तीसरी कसम फिल्म को खरीदार ना मिलने का एक ही कारण था कि यह फिल्म एक आम आदमी के समय से थोड़ी परे थी और इसके लाभ के आसार भी कम थे इसीलिए इसे खरीदार नहीं मिल रहे थे।

शैलेन्द्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?

 शैलेन्द्र के अनुसार एक कलाकार को दर्शकों की रुचि से ज्यादा समाज के कर्तव्य के आधार पर एक फिल्म को बनाना चाहिए। कलाकारों को फिल्म में काम करते समय इस बात का खास ध्यान देना चाहिए कि उनकी फिल्म समाज को क्या संदेश दे रही है और उनकी फिल्म से किसी भी खराब मानसिकता को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए।

 फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफ़ाई क्यों कर दिया जाता है?

 फिल्मों में त्रासद को इतना ग्लोरिफाई इसीलिए किया गया है क्योंकि दर्शक उन फिल्मों को देखना अधिक पसंद करते हैं जिसमें भावनाओं का अधिक प्रयोग किया गया हो। निर्देशकों का एकमात्र उद्देश्य होता है कि उनकी फिल्म की टिकट अधिक से अधिक बीके इसीलिए वह दुख को बढ़ा चढ़ाकर दिखाते हैं जो कि बिल्कुल सही होता और दर्शक उसे ध्यान पूर्वक देख कर अपने पैसे उस पर बर्बाद करते है।

शैलेन्द्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं' − इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

राजकपूर एक बहुत ही उत्कृष्ट कलाकार थे और शैलेंद्र एक अच्छे गीतकार थे इसीलिए उन दोनों का तालमेल इतना अच्छा बैठा। राजकपूर अपनी भावनाओं को शैलेंद्र के द्वारा दर्शाते थे और राजकपूर अपनी भावनाओं को अपनी आंखों के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाते थे। शैलेंद्र ने अपने गीतों के माध्यम से राजकपूर के अभिनय को पूर्ण कर दिया था।

 लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?

 अमन का अर्थ होता है वह कलाकार जो अपनी कला के माध्यम से ही और दर्शकों की निगाहों को खुद पर टिकाए रख सके और अधिक से अधिक लोगों को इकट्ठा करें। इसी तरह के कलाकार थे राजकुमार। इससे फर्क नहीं पड़ता था कि वह कौन सा पात्र निभा रहे हैं वह हर पात्र में इतना घुस जाते थे कि दर्शक उनसे ताल्लुक रखते थे और इसी अभिनय के कारण वह काफी ऊंचाइयों तक पहुंच गए थे

फ़िल्म 'श्री 420' के गीत 'रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ' पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?

फिल्म श्री 420 के गीत रातों दसों दिशाओं से कहेंगे अपनी कहानियां पर सिंह संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति इसलिए की क्योंकि दिशाएं केवल चार होती है। जयकिशन यह भली-भांति समझते थे कि कलाकार अपनी रचनात्मकता को दर्शाने के लिए अलग-अलग तरीके  ढूंढता है लेकिन वह किसी उथलेपन को बढ़ावा नहीं देना चाहते थे।

राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों के आगाह करने पर भी शैलेन्द्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?

शैलेंद्र कोई निर्देशक नहीं थे बल्कि वह एक कवि थे इसीलिए उन्होंने अपनी भावनाओं के आधार पर इस फिल्म को बनाने का निर्णय लिया था क्योंकि इस फिल्म की कथावस्तु बहुत ही अच्छी थी उन्हें फिल्मों के बारे में कोई ज्ञान नहीं था ना ही उन्हें इस बात का आभास था कि उनकी फिल्म सफल भी हो सकती है। फिल्म व्यवसाय के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था इसीलिए उन्होंने राजकुमार द्वारा इस फिल्म की असफलता के खतरों के बारे में बताने के बाद भी इस फिल्म को बनाने का निर्णय लिया।

. 'तीसरी कसम' में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया। स्पष्ट कीजिए।

: एक महान अभिनेता तो थे पर इसका मतलब यह नहीं था कि वह अपने पात्रों को खुद पर हावी होने देते थे बल्कि उनके पात्रों में उनकी खुद की व्यक्तित्व की झलक हमें खास तौर पर देखने को मिलती थी। तीसरी कसम फिल्म में भी उनके अपने व्यक्तित्व की परछाई हमें बखूबी दिखी। उनका डकडू बैठना या फिर नौटंकी करना या फिर अलग-अलग गीतों को गाना देहात की मासूमियत को दर्शाना इन सब के कारण ही तीसरी कसम इतनी सफल हुई और उन्होंने साथ ही हीरामन के पात्र को भी जीवित कर दिया।

लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?

 ईश्वर नाथ रेणु की पुस्तक मारे गए गुलफाम पर आधारित फिल्म तीसरी कसम है। शैलेंद्र ने अपने दृष्टिकोण के आधार पर प्रसंग घटनाओं में कोई परिवर्तन तो नहीं किया लेकिन उसको उभारा जरूर है। कहानी में फणीश्वर नाथ के पुस्तक जैसी ही बारीकियों को दिखाया गया है और उसी प्रकार इस फिल्म को पर्दे पर उतारा गया। शैलेंद्र धन कमाने के उद्देश्य से इस फिल्म को नहीं बनाया बल्कि देहात की मासूमियत को दर्शाने के लिए बनाई थी। उनका उद्देश्य केवल एक अच्छी कृति को जनता के सामने प्रस्तुत करना था। इस फिल्म की अच्छी बात यह है कि इस फिल्म को यथारूप में ही प्रस्तुत किया गया इसमें ज्यादा बदलाव नहीं किया गया। 

शैलेन्द्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं। अपने शब्दों में लिखिए।

द्वारा लिखी गई सभी गीते उनके दिल की गहराइयों से निकली थी इसीलिए वह बहुत भावुक्तापूर्ण थी। गीतों को धन कमाने के लिए नहीं बल्कि लोगों के मनों में प्रशंसा भरने लिए लिखते थे। उनके गीतों में कोई भी घटियापन हमें दिखाई नहीं देता है इसीलिए उनके गीत इतने प्रसिद्ध हुए उनके गीतों में हर भावना की भली-भांति छाया हमें देखने को मिलती है।


फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेन्द्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?

शैलेंद्र की पहली और अंतिम फिल्म तीसरी कसम ही थी उन्होंने इस फिल्म को धन प्राप्ति की इच्छा से नहीं बनाया था उन्होंने इस फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित रचना के आधार पर इस फिल्म को बनाया था और उन्होंने इसकी साहित्यिक रचना में कोई भी बदलाव नहीं किया और इस फिल्म इस रचना को बखूबी पर्दे पर उतारा। इस फिल्म के पात्रों को केवल एक पात्र की तरह नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व को व्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इसीलिए इस फिल्म को उसने खरीददार नहीं मिला लेकिन शैलेंद्र ने अपनी एक पहचान इस फिल्म के द्वारा बनाई और उन्हें काफी सराहना भी प्राप्त हुई।

शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है−कैसे? स्पष्ट कीजिए।

निजी जीवन की छाप उनमें उनकी फिल्मों में झलकती है क्योंकि उनकी फिल्में भी उनकी तरह झूठी नहीं थी बल्कि उनकी फिल्मों में एक सच्चाई दिखती है समाज के प्रति। शैलेंद्र यह बात मानते थे और अपने जीवन में इसे लागू भी करते थे किसी भी रचना कार्य कलाकार का पहला कर्तव्य अपनी रचनाओं के द्वारा सम्मान में एक अच्छी शिक्षा को देना है और वह इसका प्रयत्न भी करते थे उनका मानना था कि हमें बनावटी चीजों का बहिष्कार करके केवल सच्चाई को जनता के सामने लाने का प्रयास करना चाहिए और उनकी यही विशेषता उन्होंने अपनी फिल्मों में भी दर्शाई है।


लेखक के इस कथन से कि 'तीसरी कसम' फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

क्या कहना भली-भांति जाया जाए क्योंकि तीसरी कसम फिल्म हर कोई व्यक्ति ने पर्दे पर उतारने में समर्थ नहीं हो सकता था इस फिल्म में एक अलग तरह की भावुकता है और सच्चाई है जो कि शैलेंद्र जैसे कवि ही पर्दे पर बखूबी उतार सकते थे क्योंकि वह काफी संवेदनशील है और उन्हें समाज को अच्छा संदेश देना है यह भी भली-भांति वह समझते थे।


 वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।

पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि शैलेंद्र एक बहुत ही आदर्श कवि थे जिन्हें कभी यश की कामना नहीं थी। उन्हें धन की प्राप्ति की लालसा भी नहीं थी वह बस लोगों की भलाई के लिए काम करते थे। उन्होंने तीसरी कसम  केवल इसलिए बनाई ताकि उनके मन को शांति और संतुष्टि मिले। यह जानते हुए भी फिल्म को बनाने का निर्णय लिया कि इस फिल्म को खरीददार नहीं मिलेंगे।

नका यह दृढ़ मतंव्य था कि दर्शकों की रूचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्त्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रूचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।

फिल्म "श्री 420" गाने की जयकिशन ने कड़ी निंदा की है क्योंकि इस गाने में 10 दिशाओं शब्द का प्रयोग किया गया है जबकि दिशाएं तो केवल जारी होती है इसी सिलसिले में जयकिशन ने यह बात कही कि दर्शकों की रूचि क्या है उसकी आड़ में निर्देशकों को खुद गिरना नहीं चाहिए बल्कि दर्शकों को ऐसी फिल्में दिखानी चाहिए जो समाज के लिए भी अच्छी मानी जाए और समाज को अच्छा संदेश दें।

व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।

 शैलेंद्र के गीतों के लिए लिखी है शैलेंद्र अपने गीतों को केवल मनोरंजन का साधन नहीं बोलते थे बल्कि जिंदगी में हो रहे उतार-चढ़ाव को भी अपने गीतों के माध्यम से व्यक्त करते थे उनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति को खुद को पराजित महसूस नहीं करना चाहिए बल्कि उसे उन परिस्थितियों से यह सीख लेनी चाहिए कि जिंदगी आगे बढ़ते रहने का नाम है।

दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।

 'तीसरी कसम' फिल्म आम आदमी के समझ से काफी बड़ी थी क्योंकि अन्य फिल्मों की अपेक्षा इस फिल्म का उद्देश्य केवल पैसा कमाना नहीं था बल्कि समाज को एक अच्छा संदेश देने का था।


उनके गीत भाव-प्रवण थे − दुरूह नहीं।

शैलेंद्र के गीतों में एक सच्चाई थी। उनकी भाषा भी काफी सरल थी इसीलिए लोगों के बीच में बहुत लोकप्रिय थे इनके गीतों के पीछे काफी गहरे विचार छुपे होते थे।

पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए −चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना

चेहरा मुरझाना - अपनी छोटी बहन की तारीफ सुनकर सोनल का चेहरा मुरझा गया।

चक्कर खा जाना - सुबह से भूखी रहने के कारण वह चक्कर खाकर गिर गई

दो से चार बनाना - रितु हर समय दो से चार बातें बनाने लगती है।

आँखों से बोलना - राहुल तो अपनी आंखों से ही बोलता है।

निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी पर्याय दीजिए −

(क) शिद्दत --------------- (ख)याराना--------------

(ग)बमुश्किल--------------(घ)खालिस---------------

(ङ)नावाकिफ़---------------(च)यकीन---------------

(छ)हावी---------------(ज)रेशा---------------

 (क) शिद्दत - प्रयास (ख)याराना - दोस्ती, मित्रता

(ग)बमुश्किल - कठिन (घ)खालिस - मात

(ङ)नावाकिफ़ - अनभिज्ञ (च)यकीन - विश्वास

(छ)हावी - भारी पड़ना (ज)रेशा - तंतु

निम्नलिखित का संधिविच्छेद कीजिए −

(क)चित्रांकन-------+-------(ख)सर्वोत्कृष्ट--------+-------

(ग)चर्मोत्कर्ष-------+-------(घ)रूपांतरण-------+-----

(ङ)घनानंद--------+-------

 (क)चित्रांकन-चित्र + अकंन (ख)सर्वोत्कृष्ट-सर्व + उत्कृष्ट

(ग)चर्मोत्कर्ष-चरम + उत्कर्ष (घ)रूपांतरण-रूप + अतंरण (ङ)घनानंद-घन + आनंद

 निम्नलिखित का समास विग्रह कीजिए और समास का नाम लिखिए −(क)कला-मर्मज्ञ--------------

(ख)लोकप्रिय---------------

(ग)राष्ट्रपति---------------

(क)कला-मर्मज्ञकला का मर्मज्ञ(तत्पुरूष समास)

(ख)लोकप्रियलोक में प्रिय(तत्पुरूष समास)

(ग)राष्ट्रपतिराष्ट्र का पति(तत्पुरूष समास)

फणीश्वर नाथ रेनू किस कहानी पर “तीसरी कसम” फिल्म आधारित है, जानकारी प्राप्त कीजिए और मूल रचना पढ़िए।

साठ के दशक के कहानीकारों में फणीश्वर नाथ का नाम काफी लोकप्रिय है। तीसरी कसम फिल्म आज भी लोकप्रिय है क्योंकि इसके पहले की सभी फिल्में केवल दर्शकों के मनोरंजन के लिए बनाई जाती थी उससे समाज को कोई विशेष संदेश प्राप्त नहीं होता था लेकिन इस फिल्म को बनाने के बाद यह बातें हो गई कि हिंदी फिल्मी जगत में ऐसे उद्देश्य पूर्ण फिल्म बनाने में काफी खतरा है। इसलिए है कि यह फिल्म मनोरंजन की दृष्टि से नहीं बल्कि भावना की दृष्टि से देखी जानी चाहिए थी और इस फिल्म की कथावस्तु आम लोगों के समझ से बाहर थी। फिल्म को करने के बाद राज कपूर अपने करियर की ऊंचाइयों पर पहुंच गए थे। यह फिल्म सेल्यूलाइट पर लिखी कविता थी। यह फिल्म फणीश्वर नाथ रेणु की अमर कृति मारे गए गुलफाम पर आधारित है और इस फिल्म के जैसी कोई दूसरी फिल्म नहीं बन पाई। 

समाचार पत्रों में फिल्मों की समीक्षा दी जाती है कि किन्ही तीन फिल्मों की समीक्षा पढ़िए है और “तीसरी कसम” फिल्म को देखकर इस फिल्म की समीक्षा स्वयं लिखने का प्रयास कीजिए।

 समाचार पत्रों में हिंदी नई फिल्मों की समीक्षा को देखकर हमने “तीसरी कसम” फिल्म की समीक्षा करने का प्रयास किया है। इस कहानी का प्रमुख पात्र अथवा नायक हिरामन बैलगाड़ी वाला भोला-भाला बिहारी युवक पहले वह नेपाल से तस्करी का सामान ढोकर भारत में लाता था। एक बार एक सेठ के कपड़े की गाँठें पकड़ी गई तो उसने रात के अंधेरे में अपने बैलों के साथ भागकर जान बचाई। तब उसने पहली कसम खाई थी कि वह कभी तस्करी का माल नहीं ढोयेगा। इसके बाद हिरामन जानवरों की ढुलाई करने लगा। वह बाँस भी ढोता था। जिसमें उसे बड़ी परेशानी होती थी। एक दिन वह अपनी गाड़ी में बाँस लादकर ले जा रहा था। बाँसों का कुछ हिस्सा आगे और कुछ की ओर निकला था। हिरामन की बैलगाड़ी एक बग्धी से टकरा गई। बग्धी की छतरी टूट जाने पर बग्धी हाँकने वाले ने हिरामन को कोड़े से मारा। उस समय हिरामन ने दूसरी कसम खाई कि अब कभी वह अपनी गाड़ी में बाँस नहीं ढोयेगा। इसके बाद की घटना है कि फारबिसगंज की नौटंकी में नाचने वाली हीराबाई उसकी गाड़ी में सवार हुई और एक अपरिचित सम्बन्ध इसके साथ जुड़ गया। इस बार उसने तीसरी कसम खाई की भाड़ा चाहे कितना भी मिले, ऐसी लदनी फिर नहीं लादूँगा। यह कहानी गाड़ीवान हिरामन और नर्तकी हीराबाई के सरल, स्निग्ध एवं सहज सम्बन्धों की है-फारबिसगंज में मेला लगता है और हिरामन कई बार फरबिसगंज आया है, परन्तु हीराबाई के कारण राह चलते हुए हिरासन ने किसी दूसरे गाड़ीवान को गलत बता दिया कि वह ‘छत्तापुर पचीरा’ जा रहा है और दूसरी बार दूसरे गाड़ीवानों से कह दिया कि वह ‘कुड़मा ‘गाँव’ जा रहा है। हीराबाई हैरान होकर कह उठी कि ‘छत्तापुर पचीरा’ कहाँ है? जिस पर हँसते हँसते हिरामन के पेट में बल पड़ गये। हिरामन के ‘तगच्छिया’ के पास पहुँचने पर पर्दे वाली गाड़ी को देखकर बच्चे तालियाँ बजाकर गा उठे-“लाली लाली डोलियाँ में ‘लाली रे दुलहनियाँ। ” हिरामन भी स्वप्नों में दुल्हन को लेकर लौटा है। कई बार और इस बार ‘तगच्छिया’ गाँव की ही नहीं, किसी दूसरे गाँव की स्मृति भी उसकी नस-नस में समा रही है। ‘कजरी नदी’ के साथ-साथ उसकी सड़क जा रही है और ‘परमान नदी’ का तो महुआ घटयारिन की लोककथा के सम्बन्ध ही हैं हीराबाई को कथा सुनने की रूचि को पूरा करने के लिए हिरामन को लीक छोड़कर ननकपुर के रास्ते पर जाना पड़ा। कहानी के अन्त में हीराबाई जब हिरामन से विदा लेती है, तब हिरामन को बहुत दुःख होता है, क्योंकि वह उससे अत्यधिक प्रेम करने लगता है।