Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 1 "Rabindra Nath Thakur - Aamantran". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है ?
कवि सृष्टिकर्ता करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है की उसे भले ही वह दुःख, दर्द, पीड़ा और कष्ट दे परन्तु उन सबसे लड़ने की शक्ति भी दे। उसकी सहायता करने वाला कोई भी ना हो किंतु उसे इतना आत्मविश्वास और आत्मबल दें कि वह हर चुनौती का सामना कर सके। चाहे वह सुखी हो या दुखी हो परंतु वो ईश्वर को कभी न भूले। उसके मन में कभी ईश्वर के प्रति संदेह न हो इतनी आत्मशक्ति की माँग कवि कर रहा है। ईश्वर से कभी यह प्रार्थना नहीं करता कि ईश्वर उसे दुख ही ना दे किंतु वह यह प्रार्थना करता है कि वह उसे उस दुख से लड़ने की शक्ति प्रदान करे।
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’- कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
यह कविता रविंद्र नाथ ठाकुर द्वारा बांग्ला में लिखी गई है जिसका हिंदी रूपांतरण अचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। कवि इस पंक्ति में सृष्टिकर्ता ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मैं ये नहीं कहता की मुझ पर कोई विपदा न आए या किसी मुश्किल का सामना ना करना पड़े। मैं बस यह चाहता हूँ कि मुझमें इतना आत्मबल, आत्मविश्वास एवं आत्मशक्ति भर दो कि मैं उन सभी विपदाओं, कष्टों, पीड़ाओं का सामना कर सकूँ। बस मुझे इतनी शक्ति दो की किसी भी प्रकार का दुःख मुझे हिला ना सके।
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है ?
कवि विपत्ति के समय सहायक के न मिलने पर प्रार्थना करता है कि उसके पुरुषार्थ में कोई कमी न आए। अर्थात यदि उसकी सहायता करने वाला कोई भी नहीं है या उसे सांत्वना देने वाला भी कोई नहीं है तो भी उसका आत्मबल कभी भी ना डगमगाए और वह हर विपत्ति का सामना बड़ी ही दृढ़ता से कर पाए और यदि इस संसार में उसे हानि होती रहे और लाभ ना भी मिले तो भी उसकी मनाशक्ति कभी भी क्षीण नहीं पड़नी चाहिए अर्थात उसका आत्मविश्वास कभी नहीं टूटना चाहिए।
अंत में कवि क्या अनुनय करता है ?
अंत में कवि अनुनय करता है कि चाहे वह कितनी ही विपत्तियों से क्यों न घिरा हो, चाहे चारों ओर उसे दुख ही दुख दिखाई दे रहा हो फिर भी वह स्वयं को स्थाई रख सके। वह कभी भी ईश्वर का स्मरण करना ना भूले फिर वह कितना ही सुखमय जीवन क्यों न व्यतीत कर रहा हो और ना ही कभी दुख भरी अंधेरी रातों में ईश्वर पर संदेह करें कि ईश्वर ने उसके साथ ऐसा क्यों किया? उसका विश्वास ईश्वर पर विश्वास कभी भी ना डगमगाए। सब लोग उसे धोखा दें , उसके बुरे समय में कोई उसका साथ ना दे और सब दुःख दर्द उसे घेर लें फिर भी उसका विश्वास ईश्वर पर कभी कम नहीं हो। ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कभी कम नहीं होगी। बस कभी इतना ही अनुनय ईश्वर से करता है।
आत्मत्राण ‘ शीर्षक की सार्थकता कविता के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।
‘आत्मत्राण’ का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात आत्मा या मन के भय का निवारण या भय की मुक्ति। ‘आत्मत्राण ‘ शीर्षक की सार्थकता कविता के सन्दर्भ में हर जगह स्पष्ट होती है। कवि ईश्वर से यह प्रार्थना नहीं कर रहा है कि उसे दुःख ना मिले बल्कि वह मिले हुए दुःखों को सहने और झेलने की शक्ति ईश्वर से मांग रहा है। ईश्वर से यह नहीं माँगता कि लोग उसे सांत्वना दें या उसका साथ दें अपितु वह ईश्वर से यह मांगता है कि विपत्ति के समय उसका आत्मबल, आत्मशक्ति और आत्मविश्वास कभी कमजोर न पड़े। ईश्वर उसे इतनी शक्ति प्रदान करें की अथाह कष्ट, पीड़ा सहने के बाद भी वह ईश्वर पर कभी संदेह ना करें कि उसने ऐसा क्यों किया? वह हर पंक्ति में बस ईश्वर से एक माँग करता है कि ईश्वर उसे इतनी शक्ति प्रदान करें कि वह हर कष्ट का सामना कर सके। अतः यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त आप और क्या – क्या प्रयास करते हैं ? लिखिए।
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त हम कठोर परिश्रम करते हैं ताकि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके साथ ही साथ दिन प्रतिदिन अनेकों संघर्ष करते हैं ताकि रास्ते में आई बाधाओं को हटाया जा सके। कई बार ऐसा भी होता है कि मनचाही बात नहीं हो पाती या हमें वैसा फल नहीं मिलता जैसा हम चाहते हैं इस पर हम धैर्य से काम लेते हैं और अपने लक्ष्य को पाने के लिए और कड़ी मेहनत वह अनेकों प्रयास करते हैं ताकि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। इस तरह प्रार्थना के अलावा परिश्रम ,संघर्ष ,सहनशीलता और कठिनाई से परेशानियों का सामना करना जैसे प्रयास आवश्यक हैं। धैर्य पूर्वक हम इन प्रयासों के जरिये अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।
क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है। यदि हाँ, तो कैसे ?
यह प्रार्थना गीत अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य गीतों में ईश्वर से विपदाओं को दूर करके सुख शांति की कामना की जाती है परन्तु इस गीत में कवि ने ईश्वर से दुःख, दर्द और कष्टों को दूर करने के लिए नहीं बल्कि उन दुःख दर्द और कष्टों को सहने की और झेलने की शक्ति देने के लिए कहा है। कवि हर पंक्ति में करुणामय ईश्वर से बस एक ही प्रार्थना करता है के वह उसे हर प्रकार के दुख, कष्ट, पीड़ा सहने की शक्ति प्रदान करे और उसका आत्मविश्वास कभी भी ना डगमगाए। चाहे लोग कठिन समय में उसकी सहायता करें या ना करें, उसे सांत्वना प्रदान करें या ना करें किंतु वह कभी भी निराश ना हो। उसका पौरुष कभी हताश ना हो। उसका आत्मबल और आत्मशक्ति इतनी दृढ़ हो कि वह हर विपदा का सामना कर सके। ना सिर्फ इतना ईश्वर उसे चाहे जितने ही कष्ट प्रदान करे किंतु साथ में वह उसे वह शक्ति भी प्रदान करे कि वह ईश्वर पर कभी संदेह ना करें कि ईश्वर ने उसके साथ ऐसा क्यों किया?
निम्नलिखित अंशों के भाव स्पष्ट कीजिए –
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
– इसके कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ‘ हैं। इन पंक्तियों का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है।इन पंक्तियों में कवि कह रहे हैं कि सुख के दिनों में भी मैं तुम्हें अर्थात ईश्वर को एक क्षण के लिए भी ना भूलूँ, हर क्षण ईश्वर को याद करता रहूं। कवि कहना चाहते हैं कि वह सुख में अत्यंत सुखी ना हो कि वह ईश्वर कोई भूल जाएं। वह हर प्रकार की परिस्थिति में स्थायित्व ग्रहण करना चाहते हैं। मेरे प्रभु मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो इतनी मुझे शक्ति देना।और हर क्षण मैं आपको याद करता रहूं।
.निम्नलिखित अंशों के भाव स्पष्ट कीजिए –
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
इसके कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर‘ हैं। इन पंक्तियों का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इन पंक्तियों में कवि कह रहे हैं कि उन्हें अगर इस संसार में हर समय हानि भी उठानी पड़े और लाभ से हमेशा वंचित ही रहना पड़े तो भी कोई बात नहीं पर उनके मन की शक्ति का कभी नाश नहीं होना चाहिए अर्थात उनका मन हर परिस्थिति में आत्मविश्वास से भरा रहना चाहिए। विपत्ति की हर परिस्थिति में भी उनकी आत्माशक्ति हमेशा दृढ़ रहनी चाहिए। अगर मुसीबत के समय कोई मेरी सहायता करने वाला ना हो, तो मुझे कोई परवाह नहीं। प्रभु! सिर्फ़ मेरा आत्मबल कभी कमजोर नहीं पड़ना चाहिए। अगर मुझे इस संसार में केवल धोखा व दुःख प्राप्त हो और मुझे हानि उठानी पड़े, तो भी मेरे मन में कोई अफसोस नहीं होना चाहिए।
निम्नलिखित अंशों के भाव स्पष्ट कीजिए –
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
इसके कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर‘ हैं। इन पंक्तियों का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इन पंक्तियों में कवि कह रहे हैं कि हे प्रभु! आप केवल मुझे निरोग अर्थात स्वस्थ रखें ताकि मैं अपनी आत्मशक्ति के सहारे इस संसार रूपी सागर को पार कर सकूँ। मेरे कष्टों के भार को भले ही कम ना करो और न ही मुझे कोई सांत्वना देने वाला हो, आपसे केवल इतनी विनती है की मेरे अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि मैं सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकूँ।मुझे आप इतनी शक्ति दें कि मैं इन मुसीबतों को देखकर घबराऊँ ना और इनका डटकर सामना करूँ। इस विपत्ति के क्षणों में चाहे कोई भी मेरा सहारा ना हो परंतु मुझे इतनी शक्ति अवश्य देना कि मैं इस दुख पर विजय प्राप्त कर सकूँ।
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीतों की रचना की है। उनके गीत-संग्रह में से दो गीत छाँटिए और कक्षा में कविता-पाठ कीजिए।
1.मेरा शीश नवा दो – गीतांजलि (काव्य)
मेरा शीश नवा दो अपनी, चरण-धूल के तल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में।
अपने को गौरव देने को, अपमानित करता अपने को,
घेर स्वयं को घूम-घूम कर, मरता हूं पल-पल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में।
अपने कामों में न करूं मैं, आत्म-प्रचार प्रभो;
अपनी ही इच्छा मेरे, जीवन में पूर्ण करो।
मुझको अपनी चरम शांति दो, प्राणों में वह परम कांति हो.
आप खड़े हो मुझे ओट दें, हृदय-कमल के दल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में।
2.प्रेम में प्राण में गान में गंध में
प्रेम में प्राण में गान में गंध में
आलोक और पुलक में हो रह प्लावित
निखिल द्युलोक और भूलोक में
तुम्हारा अमल निर्मल अमृत बरस रहा झर-झर।
दिक-दिगंत के टूट गए आज सारे बंध
मूर्तिमान हो उठा, जाग्रत आनंद
जीवन हुआ प्राणवान, अमृत में छक कर।
कल्याण रस सरवर में चेतना मेरी
शतदल सम खिल उठी परम हर्ष से
सारा मधु अपना उसके चरणॊं में रख कर।
नीरव आलोक में, जागा हृदयांगन में,
उदारमना उषा की उदित अरुण कांति में,
अलस पड़े कोंपल का आँचल ढला, सरक कर।
अनेक अन्य कवियों ने भी प्रार्थना गीत लिखे हैं, उन्हें पढ़ने का प्रयास कीजिए; जैसे
1.महादेवी वर्मा- क्या पूजा क्या अर्चन रे!
2.सूर्यकांत त्रिपाठी निराला- दलित जन पर करो करुणा।
3.इतनी शक्ति हमें देना दाता
मन का विश्वास कमज़ोर हो न
हम चलें नेक रस्ते पर हम से
भूल कर भी कोई भूल हो न
इस प्रार्थना को ढूँढ़कर पूरा पढ़िए और समझिए कि दोनों प्रार्थनाओं में क्या समानता है? क्या आपको दोनों में कोई भी अंतर प्रतीत होता है? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।
-‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ और ‘आत्मत्राण’ दोनों ही कविताएँ प्रार्थना हैं जो पारंपरिक प्रार्थनाओं से हटकर हैं। दोनों ही प्रार्थनाओं में मनुष्य अपने दुख से उबारने या दुख हर लेने की प्रार्थना न करके ईश्वर से यह प्रार्थना करता है की वह उसे इस दुख से लड़ने की शक्ति प्रदान करें। वह ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास बनाए रखने की शक्ति पाने की प्रार्थना करता है। दोनों ही प्रार्थनाओं का भाव एक समान है। इन दोनों ही प्रार्थना में मनुष्य ईश्वर से शक्ति प्रदान करने की विनती करता है ताकि वह हर कठिनाई का सामना कर सके और कभी भी डगमगाए ना किंतु इतनी शक्ति हमें देना दाता में कवि स्वयं नेक रास्ते पर चलने की अभिलाषा भी प्रकट करता है। जबकि आत्मत्राण में कवि की ऐसी कोई अभिलाषा नहीं है वह ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना करता है कि उसका आत्मविश्वास कभी न टूटे और वह हर विपत्ति का सामना बिना डगमगाए कर सके।