Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 5 "Sumitranandan Pant - parvat pradesh mein pavas". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

पावस ऋतु में प्रकृति में बहुत सारे परिवर्तन आते हैं। कविता के आधार पर हमें पावस ऋतु में प्रकृति में बहुत से परिवर्तन दिखाई देते हैं जैसे कि पर्वत, पहाड़, ताल, झरने आदि भी मनुष्यों की ही भाँति भावनाओं से ओत-प्रोत दिखाई देते हैं।पर्वत ताल के जल में अपना महाकार देखकर हैरान-से दिखाई देते हैं।पर्वतों से बहते हुए झरने मोतियों की लड़ियों से प्रतीत होते हैं।बादलों की ओट में छिपे पर्वत मानों पंख लगाकर कहीं उड़ गए हों तथा तालाबों में से उठता हुआ कोहरा धुएँ। की भाँति प्रतीत होता है। यह सब परिवर्तन बहुत ही मनोहारी होते हैं।

 'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ हैं? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है? 

 'मेखलाकार' शब्द का अर्थ है - मंडलाकार करधनी के आकार के समान। यह कटी भाग में पहनी जाती है। इस कविता में कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वत की विशालता और फैलाव दिखाने के लिए किया है। पर्वत मेखलाकार की तरह  लग रहा था जैसे इसमें पूरी पृथ्वी को अपने घेरे में ले लिया है।


 'सहस्र दृग - सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा? 

'सहस्र दृग - सुमन' का तात्पर्य पहाड़ों पर खिले हजारों फूल से हैं। पर्वत अपने चरणों में स्थित तालाब में हजारों सुमन रूपी नेत्रों से अपने ही बिंब को निहारता हुआ प्रतीत होता है। कवि को यह हजारों फूल पहाड़ों की आँखों के सामान लग रहे हैं इसलिए कवि ने इस पद का प्रयोग किया है। कवि ने इस पद का प्रयोग पर्वत की मानवीकरण करने के लिए भी प्रयोग किया होगा। 

कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों? 

 इस कविता के द्वारा कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ दिखाने की कोशिश की है। कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ इसलिए दिखाने की कोशिश की है क्योंकि तालाब का जल बहुत स्वच्छ और निर्मल है। इस कारण व प्रतिबिंब दिखाने में सक्षम है। दर्पण की तरह तालाब भी पारदर्शी है जिसमें व्यक्ति अपनी प्रतिबिंब देख सकता है। तालाब के जल में पर्वत उसके ऊपर लगे हुए फूल का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई दे रहा है। इसलिए कवि ने तालाब की समानता दर्पण से की है।


 पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वह किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

कविता में पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर अपनी उच्चाकांक्षाओं को प्रकट करने के लिए देख रहे थे। उनकी आकांक्षा आकाश को पाने की थी। एक तक आकाश की ओर देख रहे थे जैसे व उनकी ऊंचाई को हासिल करना चाह रहे हो। यह बात उनकी आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है।

शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धस गये? 

 कविता में कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार हुई थी कि ऐसा लग रहा था मानो आकाश धरती पर टूट पड़ेगा। चारों तरफ धुआं सा प्रतीत हो रहा था। ऐसा लगता था मानो तालाब में आग लग गई हो। चारों ओर कोहरा छा गया था। पर्वत, झड़ने आदि  कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वर्षा के ऐसे भयंकर रूप को देखकर ही शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धसे हुए प्रतीत हो रहे थे।

झरने किसकी गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

झरने पर्वतों की गौरव का गान कर रहे हैं। पर्वत की ऊँची चोटियों से सर सर करते बहते झरने देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वे पर्वतों की उच्चता और महानता की गौरव गाथा गा रहे हैं। कविता में बहते हुए झरने की तुलना मोती रूपी लाड़ियो से की गई है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:

     है टूटा पड़ा  भू पर अंबर। 

इस पंक्ति का अर्थ है कि जब आकाश में चारों तरफ बहुत सारे बादल छा जाते हैं, तो पूरा वातावरण धुंधला हो जाता है और उसमें सिर्फ झड़ने के झर झर की आवाज ही सुनाई देती है। जब ऐसा होता है तब यह प्रतीत होता है कि मानो धरती पर आकाश टूट पड़ा हो। इस पंक्ति में वर्षा ऋतु के मुसल आधार बारिश का वर्णन किया गया है। 

 निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:

    यों जलद-यान में विचर-विचर

    था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

 इस पंक्ति का तात्पर्य है कि पर्वतीय प्रदेश में हमेशा प्रकृति के रूप में परिवर्तन आते रहता है। पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति एक समान  सी नहीं रहती है। कभी घने बादल, कभी तेज वर्षा और कभी तालाबों से उठता धुआं। ऐसे वातावरण को देखकर लगता है कि वर्षा के देवता इंद्र बादल रूपी यान पर बैठकर जादू का खेल दिखा रहे हो। आकाश में उमड़ते  घूमडते बादलों को देखकर ऐसा लगता है जैसे बड़े-बड़े अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए उड़ रहे हो। यह सब एक जादू के समान दिखाई देता है।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:

     गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

     उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

     हैं झाँक रहे नीरव नभ पर

     अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

इस पंक्ति का तात्पर्य है कि पर्वतीय प्रदेश में वर्षा के समय में हर पल  प्रकृति में बदलाव होता है और अलौकिक दृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि वर्षा के देवता इन्द्र अपना इंद्रजाल जलद रूपी यान मे बैठकर फैला रहे हैं अर्थात बादलों का पर्वतों से टकराना और उन्हीं बादलों में पर्वतों और  पेड़ों का पल भर में छुप जाना, ऊंचे ऊंचे पेड़ों का निरंतर आकाश में ताकना, यह सब इंद्र द्वारा फैलाई हुई मायाजाल की भाँति प्रतीत होती है।

इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है?  स्पष्ट कीजिए। 

सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित 'पर्वत प्रदेश में पावस' कविता में जगह-जगह मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया है। और इसी मानवीकरण अलंकार के प्रयोग का प्रयोग करके प्रकृति में जान डाल दी गई है जिससे प्रकृति सजीव प्रतीत हो रही है। कविता में प्रयुक्त मानवीकरण अलंकार निम्नलिखित है :

1.पर्वत द्वारा तालाब रूपी स्वच्छ दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर आत्ममुग्ध होना।

2.पर्वत से गिरते झरनों द्वारा पर्वत का गुणगान किया जाना।

3.पहाड़ का अचानक उड़ जाना।

4.आकाश का धरती पर टूट पड़ना।

आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है-

(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर।

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर।

 मेरी दृष्टि में कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृत्ति, काव्य की चित्रमयी भाषा और कविता की संगीतात्मकता तीनों पर ही निर्भर करता है। यद्यपि इनमें से किसी एक के कारण भी सौंदर्य वृद्धि होती है पर इन तीनों के मिले-जुले प्रभाव के कारण कविता का सौंदर्य और निखर आता है; जैसे-


(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।

पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

मद में नस-नस उत्तेजित कर

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

शब्दों की आवृत्ति से भावों की अभिव्यक्ति में गंभीरता और प्रभाविकता आ गई है।


(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर

मेखलाकार पर्वत अपार

अवलोक रहा है बार-बार

है टूट पड़ा भू पर अंबर!

फँस गए धरा में सभय ताल!

झरते हैं झाग भरे निर्झर।

हैं झाँक रहे नीरव नभ पर।

शब्दों की चित्रमयी भाषा से चाक्षुक बिंब या दृश्य बिंब साकार हो उठता है। इससे सारा दृश्य हमारी आँखों के सामन घूम जाता है।


(ग) कविता की संगीतात्मकता पर

अवलोक रहा है बार-बार

नीचे जल में निज महाकार,

मोती की लड़ियों-से सुंदर

झरते हैं झाग भरे निर्झर!

रव-शेष रह गए हैं निर्झर !

है टूट पड़ा भू पर अंबर !

कविता में तुकांतयुक्त पदावली और संगीतात्मकता होने से गेयता का गुण आ जाता है।


कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।

कविता से लिए गए चित्रात्मक शैली के प्रयोग वाले स्थल-

पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश

मेखलाकार पर्वत अपार

अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,

अवलोक रहा है बार-बार

जिसके चरणों में पला ताल

दर्पण-सा फैला है विशाल!

मोती की लड़ियों-से सुंदर

झरते हैं झाग भरे निर्झर !

उच्चाकांक्षाओं से तरुवर

हैं झाँक रहे नीरव नभ पर

उड़ गया, अचानक लो, भूधर

है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धंस गए धरा में सभय शाल!

उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!

-यों जलद-यान में विचर-विचर

था इंद्र खेलती इंद्रजाल।

इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

वर्षा ऋतु बहुत ही मनमोहक ऋतु होती है। तपती गर्मी के बाद जब वर्षा ऋतु का आगमन होता है तो सभी जीव को इसका बहुत खुशी होती हैं। वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन-वर्षा को जीवनदायिनी ऋतु कहा जाता है। इस ऋतु का इंतज़ार ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से किया जाता है। वर्षा आते ही प्रकृति और जीव-जंतुओं को नवजीवन के साथ हर्षोल्लास भी स्वतः ही मिल जाता है। इस ऋतु में हम अपने आसपास अनेक प्राकृतिक परिवर्तन देखते हैं; जैसे-

1.ग्रीष्म ऋतु में तवे सी जलने वाली धरती शीतल हो जाती है।

2.धरती पर सूखती दूब और मुरझाए से पेड़-पौधे हरे हो जाते हैं।

3.पेड़-पौधे नहाए-धोए तरोताज़ा-सा प्रतीत होते हैं।

4.प्रकृति हरी-भरी हो जाती हैं तथा फ़सलें लहलहा उठती हैं।

5.दादुर, मोर, पपीहा तथा अन्य जीव-जंतु अपना उल्लास प्रकट कर प्रकृति को मुखरित बना देते हैं।

6.मनुष्य तथा बच्चों के कंठ स्वतः फूट पड़ते हैं जिससे प्राकृतिक चहल-पहल एवं सजीवता बढ़ती है।

7.आसमान में बादल छाने, सूरज की तपन कम होने तथा ठंडी हवाएँ चलने से वातावरण सुहावना बन जाता है।

8.नालियाँ, नाले, खेत, तालाब आदि जल से पूरित हो जाते हैं।

9.अधिक वर्षा से कुछ स्थानों पर बाढ़-सी स्थिति बन जाती है।

10.रातें काली और डरावनी हो जाती हैं।