Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 4 "Maithili Sharan Gupt Manushyata". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है ?

 कवि कहते हैं कि मृत्यु से डरना नहीं चाहिए बल्कि जीवन में ऐसे कार्य करने चाहिए जो मृत्यु के बाद भी लोगों के समक्ष याद बनकर उपस्थित रहे। प्रत्येक मनुष्य अपने समय अनुसार मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जीवन का यही नियम है कि मृत्यु होना निश्चित है। इसीलिए मृत्यु से डरना नहीं चाहिए। मृत्यु को व्यर्थ नहीं करना चाहिए जो व्यक्ति केवल अपने लिए जीता है वह कभी अमर नहीं हो सकता। लेकिन जो व्यक्ति समाज का कल्याण, सेवा, त्याग और बलिदान की भावना से अपने जीवन जीते हैं अमर हो जाते हैं । कवि ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहते हैं।

उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

कवि कहते हैं कि उदार व्यक्ति की पहचान तब होती है जब व्यक्ति परोपकारी होता है। व्यक्ति जब किसी भी तरह का किसी से भी भेदभाव नहीं रखता,आत्मीय का भाव रखता है। जब व्यक्ति अपना पूरा जीवन लोकहित व कल्याण के लिए न्योछावर कर देता है। अपने जीवन को पुण्य और समाज के हित के कार्यों में बीता देता है। व्यक्ति निज स्वार्थों को त्यागकर जीवन का मोह भी नही रखता। उदार व्यक्ति के मन, वचन, कर्म से संबंधित कार्य मानव मात्र की भलाई के लिए होते हैं।

कवि ने दधीचि कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है?

कवि ने दधीचि कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए त्याग और बलिदान का संदेश दिया है की किस प्रकार इन लोगों ने अपने जीवन की परवाह किए बिना लोकहित के कार्य किए। कवि बताते हैं कि दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी हड्डियाँ दान कर दी थी, कर्ण ने सोने का रक्षा कवच दान में दे दिया था, रति देव ने अपना भोजन थाल दे दी था उशीनर ने कबूतर के लिए मांस दे दिया था। कवि कहते है मनुष्य का शरीर नश्वर है इसे मनुष्य को दूसरों के हित चिंतन में लगा देने की सार्थकता है।

कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?

कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त किया है –

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,

सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।

अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,

दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

अर्थात इन पंक्तियों के द्वारा कवि का कहना है कि मनुष्य को धन पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। कुछ लोग धन प्राप्त होने पर स्वयं को सुरक्षित व सनाथ समझने लगते हैं लेकिन व्यक्ति यह नहीं सोचता कि दुनिया में अनाथ कोई भी नहीं है क्योंकि ईश्वर की कृपा दृष्टि सभी पर है। ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति को समान भाव से देखता है मनुष्य को ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए।

मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

मनुष्य मात्र बंधु है का अर्थ है की दुनिया में सभी व्यक्ति आपस में भाई–भाई है। सभी को आपस में एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए और प्रेम का भाव रखना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को निर्बल व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए , कोई भी पराया व्यक्ति नहीं है। सभी को अपना मानना चाहिए , एक दूसरे के काम में आना चाहिए। व्यक्ति की पीड़ा को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।

कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?

कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है, क्योंकि एकता में बल होता है। मैत्री भाव से आपस में मिलकर जुलकर रहने चाहिए जिससे सभी कार्य सफल होते हैं, ऊँच-नीच, छुआछूत, वर्ग भेद नहीं रहता। सभी एक पिता परमेश्वर अथवा ईश्वर की संतान हैं। अतःसब एक हैं। इसलिए सभी एक दूसरे के साथ  प्रेम भाव से रहना चाहिए, सहायता करनी चाहिए, एक होकर चलना चाहिए।

व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।

कवि मानते है कि मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए जो दूसरों के काम आए। मनुष्य को अपने स्वार्थ का त्याग करके लोकहित और कल्याण के लिए जीना चाहिए। जो मनुष्य सेवा,त्याग और बलिदान का जीवन जीते हैं और किसी महान कार्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, उनकी मृत्यु सुमृत्यु कहलाती हैं। वह अमर बन जाते है। सदैव समाज और लोगों के बीच जीवित रहते हैं।

‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

  ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि मानवता, प्रेम, एकता, दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति,सद्भावना और उदारता से परिपूर्ण जीवन जीने का संदेश देना चाहता है। प्रकृति के अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य में चेतना शकित की प्रबलता होती है। मनुष्य दूसरों के हित का ख्याल रख सकता है। इस कविता का प्रतिपाद्य यह है कि हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए और परोपकार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तप्तर रहना चाहिए। जब हम दूसरों के लिए जीते हैं तभी लोग हमें मरने के बाद भी याद रखते हैं। हमें धन-दौलत का कभी घमंड नहीं करना चाहिए। धन होने पर घमंड नहीं करना चाहिए तथा खुद आगे बढ़ने के साथ-साथ औरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए। सभी मनुष्य ईश्वर की संतान है। अत: सभी को एक होकर चलना चाहिए और परस्पर भाईचारे का व्यवहार करना चाहिए।


निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

        सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;

         वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।

         विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,

         विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?

 कवि ने एक दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना को उभारा है। सहानुभूति से बढ़कर कोई पूँजी नहीं है क्योंकि यही गुण मनुष्य को महान, उदार और सर्वप्रिय बनाता है। प्रेम, सहानुभूति और करुणा के भाव से मनुष्य संसार को जीत सकता है। महात्मा बुद्ध के विचारों का भी विरोध हुआ था परन्तु जब बुद्ध ने अपनी करुणा, प्रेम व दया का प्रवाह किया तो उनके सामने सब नतमस्तक हो गए। संत महात्मा हमेशा अपनी विनम्रता से मनुष्य जाति का उपकार करते है।जो दूसरों का उपकार करता है, वही सच्चा उदार मनुष्य है।


निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

        रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,

         सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।

         अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,

      दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

इन पंक्तियों का भाव है कि मनुष्य को कभी भी अपने धन पर घमंड नहीं करना चाहिए। कुछ लोग धन प्राप्त होने पर घमंड करने लगते है। स्वयं को सुरक्षित व सनाथ समझने लगते हैं परन्तु उन्हें सदा सोचना चाहिए कि इस दुनिया में कोई अनाथ नहीं है। सभी पर ईश्वर की कृपा दृष्टि है। ईश्वर सभी को समान भाव से देखता है और सभी की सहायता करता हैं। हमें उस पर भरोसा रखना चाहिए।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,

विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।

घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

इन पंक्तियों का अर्थ है कि मनुष्य को अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। किसी भी चीज से डरना नहीं चाहिए, बाधाओं, कठिनाइयों को हँसते हुए, ढकेलते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। लेकिन आपसी मेलजोल कम नहीं करना चाहिए। किसी को अलग न समझें, सभी पंथ व संप्रदाय मिलकर सभी का हित करने की बात करे, बिना किसी तर्क के सतर्क होकर इस मार्ग पर चलना चाहिए। विश्व एकता के विचार को बनाए रखना चाहिए। सभी को एक साथ मिल जुलकर विश्व कल्याण मे सहयता करनी चाहिए।

अपने अध्यापक की सहयता से रंतिदेव, दधीचि कर्ण आदि पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी कीजिए प्राप्त कीजिए।

  रंतिदेव–रघुवंश में एक संकृति नाम के परम प्रतापी राजा थे उनके गुरू और रन्तिदेव नाम के दो पुत्र थे। रन्तिदेव दया मुर्तिमान स्वरूप थे। उनका एकमात्र लक्ष्य था संसार के सभी प्राणियों के दु:ख का निदान ।महाराज रन्तिदेव यही सोचते रहते थे कि मेरे माध्यम से कि दीनों का उपकार कैसे हो, मैं दुखी प्राणियों के दु:ख किस प्रकार दूर करूँ। अत: उनके द्वार से कोई भी याचक कभी विमुख नही लौटता था। वह सबकी यथेष्ट सेवा करते थे। इसलिये उनका यश सम्पूर्ण भूमण्डलपर फैल गया।

दधिची–दधीची वैदिक ऋषि थे। इन्हीं की हड्डियों से बने वज्र से इंद्र ने वृत्रासुर का संहार किया था। मानव कल्याण के लिए अपनी अस्थियों का दान करने वाले मात्र महर्षि दधीचि ही थे। देवताओं के मुख से यह जानकर की मात्र दधीचि की अस्थियों से निर्मित वज्र द्वारा ही असुरों का संहार किया जा सकता है, महर्षि दधीचि ने अपना शरीर त्याग कर अस्थियों का दान कर दिया।

कर्ण–कर्ण महाभारत के महानायक है। कर्ण महाभारत के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारियों में से एक थे।कर्ण को एक आदर्श दानवीर माना जाता है क्योंकि कर्ण ने कभी भी किसी माँगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी भी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उसके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों। इसी से जुड़ा एक वाक्या महाभारत में है जब अर्जुन के पिता भगवान इन्द्र ने कर्ण से उसके कुंडल और दिव्य कवच माँगे और कर्ण ने दे दिए।

‘परोपकार’ विषय पर आधारित दो कविताएँ और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।

कविता–1.सादगी से बढ़कर कोई श्रृंगार नहीं होता,

दूसरों की सेवा से बढ़कर कोई परोपकार नहीं होता।

इंसानियत का धर्म सदा निभाओ,

परोपकार का भाव दिल में लाओ।

मानवता का यही है सार,

दिल बड़ा जो करे उपकार।

मानुष जीवन पाकर मन में सदा रखो अनमोल धन,

परोपकार से ही बनता है सुंदर सुखमय सफल जीवन।

आज और अभी जीवन की नई परिभाषा सीखो,

वृक्ष, नदी और बादल से परोपकार की भाषा सीखो ।

ईर्ष्या, लोभ, मोह , क्रोध का सदा जीवन में त्याग हो,

तर जाता है मानव जीवन जब निस्वार्थ परोपकार का भाव हो।


2. शीत ऋतु किसी के लिए पर्यटन है

बर्फ में घूमने की मस्ती है।

किसी को गलन वाली ठंड

 मानो ठंड  चिढा रही हो ।

टूटी छत खुला आसमान

छोड़ा सा आंगन शीत लहर।

तुम घूमना बर्फ की चादर पर

 बस एक परोपकार करना।

जहां खुली कुटिया हो 

सिकुड़ता मानव हो।

स्टेशन पर किसी अजनबी को

उसे बस एक कंबल ओढ़ा देना ।

पीछे मुड़कर न देखना 

दिल की पुकार सुनकर।

ईश्वर का फरिश्त बन जाना

उसका भरोसा आस्था ईश्वर है।

 

दोहे- 1. यों रहीम सुख होत है, उपकारी के संग ।           

            बाँटन वारे को लगै, ज्यो मेहदी को रंग ।। 


 2. तरुवर फल नहिं खात है, नदी न संचै नीर।  

परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।