Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 6 "महादेवी वर्मा". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?

प्रस्तुत कविता में कवयित्री ‘दीपक' और 'प्रियतम' जैसे प्रतीकों का प्रयोग 'आत्मा' और 'परमात्मा' के रूपों में करती हैं| यहाँ पर 'दीपक' 'आत्मा' का और 'प्रियतमा' 'परमात्मा' का प्रतीक है| यहाँ कवयित्री अपने आत्मा रूपी दीपक को ज्वलित कर अपने आराध्य देव अर्थात् प्रियतम परमात्मा तक जाना चाहती है। यहाँ पर 'आत्मा' रूपी दीपक कवयित्री की आस्था और विश्वास का दीपक है।

दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों ?

यहाँ कवियत्री दीपक से निरंतर जलते रहने का आग्रह कर रही है। दीपक स्वयं जलकर दूसरों को मार्ग दिखाने का काम करता है। दीपक त्याग और परोपकार का संदेश देता है। दीपक से हर परिस्थिति में चाहे आँधी हो या तूफ़ान, यहाँ तक अपने अस्तित्व को मिटाकर भी जलने का आह्वान किया जा रहा है। कवयित्री के लिए उसके प्रियतम रूपी देव ही सर्वस्व है। इसलिए वह अपने हृदय में प्रभु के प्रति आस्थाभाव और भक्ति का भाव जगाए रखना चाहती है इसलिए वह कहती है कि मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!

‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?

जिस तरह पतंगा दीपक की लौ पर मोहित हो जाता है और अपने हृदय को रोक नहीं पाता और लौ में समाहित होकर राख हो जाता है, उसी तरह संपूर्ण विश्व अर्थात् मनुष्य भी अपने जीवन को विषय-विकारों, लोभ, मोह तथा यश धन संग्रह के आकर्षण और आसक्ति में हँसकर जल जाना चाहता है खुद को उस आग में समर्पित कर देना चाहता है और सुखमय जीवन की आशा करता है|

आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है-

(क) शब्दों की आवृत्ति पर।

(ख) सफल बिंब अंकन पर।

किसी भी कविता की सुंदरता इन दोनों में से किसी एक पर निर्भर नहीं करती हैं न ही दोनों में से किसी एक की विशेषताओं पर। सभी कविता की सुंदरता अनेक कारकों पर निर्भर करती है। इस कविता में इन दोनों विशेषताओं का कही ना कही योगदान अवश्य है।

(क) शब्दों की आवृति- कविता में अनेक शब्दों की आवृत्ति हुई है

मधुर मधुर मेरे दीपक जल।

युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल

पुलक-पुलक मेरे दीपक जल।

सिहर-सिहर मेरे दीपक जल। 

इन शब्दो से प्रभु के प्रति दीपक का और अधिक प्रसन्नता, उत्साह और उमंग से निरंतर जलते रहने का भाव प्रकट हुआ है।

(ख) सफल बिंब अंकन- इस कविता में बिंबों को सफल प्रयोग हुआ है

जैसे- सौरभ फैला विपुल धूप बन,

मृदुल मोम-सा धुल रे मृदु तन।

स्पष्ट है कि शब्दों की आवृत्ति से कविता में संगीतात्मकता आती है। और बिंबों के प्रयोग से भावबोध में सहायक सिद्ध हुआ है कविता की सफलता में दोनों का प्रयोग होना जरुरी है|

कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही है?

इस कविता में कवयित्री अपने परमेश्वर  रूपी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं जिससे वह परमात्मा तक पहुँच सकें तथा वहाँ तक पहुँचने का मन रूपी मार्ग अंधकार से पूर्ण है, तो उनकी यह चाह पूरी नहीं हो सकती। इस अंधकार को मिटाना अत्यंत आवश्यक है। अतः वे अपने परमात्मा रूपी प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं अर्थात वह अपने मन के अंधकार को खत्म कर प्रकाश प्रज्वलित करना चाहती है|

.कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?

कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन लग रहे है क्योंकि आकाश में असंख्य, अनगिनत तारे होते हैं किन्तु वह संसार भर में प्रकाश नहीं फैला रहे है तथा प्रकाश तो सूर्य की किरणों में ही होता है। कितने ही स्नेहहीन दीपक हैं अरजो प्रकाश नहीं देते अर्थात कितने ही मनुष्यों के हृदय में दया, प्रेम, करुणा, ममता आदि भाव नहीं होते वे संवेदनशील नहीं है  कवयित्री को संसार के प्राणियों में भक्ति और आस्था का अभाव प्रतीत होता है। इसी भाव को व्यक्त करने के लिए वह प्रतीकों का प्रयोग करती हैं। उनके लिए नभ’ है-संसार, ‘तारे हैं लोग, ‘स्नेह’ है-भक्ति का भाव। इसलिए वह इस संसार को भक्ति से शून्य बताने के लिए आकाश के तारों को स्नेहहीन कह रही हैं।

पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?

पतंगा पश्चाताप करते हुए क्षोभ व्यक्त कर रहा है कि वह दीपक की लौ में समर्पित क्यों नहीं हुआ? पतंगा दीपक की लौ से बहुत प्यार करता है इसलिए उसकी लौ पर मंत्रमुग्ध होकर मर-मिटना चाहता है, लेकिन जब वह ऐसा करने में असफल होता है, तो वह पछतावा करते हुए अपनी पीड़ा को व्यक्त करता है। इसका भाव यह है कि विश्व के प्रेमी जन भी परमात्मा रूपी लौ में जलकर अपना अस्तित्व त्यागना चाहते हैं।


कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से ‘मधुर मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस’ जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

कवयित्री ने अपने श्रद्धा रूपी दीपक को हर बार विभिन्न ढंग से जलने के लिए कहा है। कभी मधुर-मधुर, कभी पुलक-पुलक और कभी विहँस-विहँस वह ऐसा अपनी खुशी को व्यक्त करने के लिए कहती है। ‘मधुर-मधुर’ में मौन मुस्कान का भाव है। ‘पुलक-पुलक’ में हँसी की उमंग और चंचलता है। कवयित्री चाहती है कि उसकी भक्ति भावना में प्रसन्नता बनी रहे। चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो आस्था रूपी आध्यात्मिक दीपक सदैव प्रज्वलित होता रहे और परमात्मा का मार्ग प्रशस्त करे। कवयित्री के अनुसार परमेश्वर को पाने के लिए भक्त को अनेक अवस्थाओं को पार कर भिन्न-भिन्न भावों को अपनाना पड़ता है। उसे आस्था रूपी दीपक प्रज्वलित रखना पड़ता है।


नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों का उत्तर दीजिए-

जलते नभ में देख असंख्यक,

स्नेहहीन नित कितने दीपक;

जलमय सागर का उर जलता,

विद्युत ले घिरता है बादल !

विहँस विहँस मेरे दीपक जल !

1.‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?

2.सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?

3.बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?

4.कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?

1.) 'स्नेहहीन दीपक' अर्थात नभ के तारों को कहा है, जिसका अर्थ है कि आकाश में अनगिनत चमकने वाले तारे है जो स्नेहहीन से प्रतीत होते हैं, क्योंकि ये सभी प्रकृतिवश, यंत्रवत् होकर अपना कर्तव्य निभाते हैं। इनमें कोई प्रेम नहीं है तथा परोपकार का कोई भाव नहीं हैयह तारे संवेदनशील नही है अर्थात् ये ईश्वर के प्रेम से हीन हैं। इनमें ईश्वर के लिए कोई श्रद्धा नहीं है।

2) सागर को ‘जलमय’ कहने का तात्पर्य है कि वह सदा जल से भरा रहता है अर्थात उसका हृदय इसलिए जलता है, क्योंकि वह प्रचंड गर्मी में तपता है, जलता है और वाष्प बनकर, बादल बनकर बरसने लगता है अर्थात् उसके हृदय में सदा हलचल होती रहती है।

3) इस कविता में कवयित्री ने बादलों की यह विशेषता बताई है कि यह बादल जलमय है इनमें जल के साथ अनंत मात्रा में बिजली और प्रकाश भी भरा हुआ है।4)कवयित्री ने दीपक को विहँस-विहँसकर जलने के लिए इसलिए कहा है जिससे ईश्वर का पथ आलोकित हो और प्रत्येक प्राणी इसपर बिना किसी बाधा के चल पड़े।

क्या 'मीराबाई' और :आधुनिक मीरा'  महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।

मीरा अपने आराध्य देव कृष्ण से मिलने के लिए उनकी दासी या जोगन बनना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि कृष्ण आएँ और उनके दुखो को हर लें। मीरा अपने आराध्य के दर्शनों की प्यासी थी महादेवी वर्मा भी अपने आराध्य की प्रतीक्षा में अपने आस्था रूपी दीपक को जलाकर उनके पथ को आलोकित करती हैं। मीरा अपने आपको इस अखंड-अनंत में विलीन कर देना चाहती हैं। मीराबाई ने बड़ी सहजता एवं सरलता से अपने प्रेम और भक्ति भावों को जनभाषा के माध्यम से प्रस्तुत किया है जबकि महादेवी ने विभिन्न प्रकार के बिंबों का प्रयोग किया है।

मीरा का प्रियतम इस लोक का प्राणी, सगुण एवं साकार रूप में हमारे सामने उपस्थित होता है जबकि महादेवी का प्रियतम इस लोक का प्राणी नहीं हैं जो प्राप्त किया जा सके।


निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-

प्रकाश का सिंधु अपरिमित,

तेरे जीवन का अणु गल गल ! 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि हे मेरे मन रूपी दीपक! तू पूरी तरह से समर्पित होकर चारों ओर प्रकाश और प्रेरणा का स्रोत बनकर क्षितिज प्रकाश फैला। वह दीपक से अनुरोध करती है कि वह अपना सर्वस्व न्यौछावर कर स्वयं से रोमांचित और प्रफुल्लित होकर खुशी से परोपकार हेतु दूसरों के पथ को आलोकित करे और जनकल्याण हो।

निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-

युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षा प्रतिपल,प्रियतम का पथ आलोकित कर !

 कवयित्री इन पंक्तियों में अपने मन के आस्थारूपी दीपक को प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल प्रज्वल्लित होने को कहती है, अर्थात् जिस प्रकार दीप हर क्षण, हर पल जलता हुआ जीवन के पथ को आलोकित करता हुआ चलता है, ठीक उसी प्रकार वह चाहती है कि वही दीपक उसके आराध्य देव के पथ को भी आलोकित करता हुआ तथा अपने अंतर में व्याप्त अंधकार को नष्ट करता हुआ चले। कवयित्री का प्रियतम संसारी मानव न होकर अदृश्य अज्ञान व रहस्यमयी है।

निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-

मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!

प्रस्तुत्त पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि हे मन रूपी दीपक! तू मोम की तरह पूरी तरह से पिघलकर अर्थात् पूर्ण रूप से समर्पित होकर, स्वेच्छा से रोमांचित होकर चारों ओर अपना प्रकाश फैलाकर अँधेरे को नष्ट करो। जिस तरह मोम जल-जलकर दूसरों को प्रकाश प्रदान करता है, उस मोम की भांति कवयित्री भी अपनी ईश्वरीय भक्ति द्वारा सभी को ईश्वर की भक्ति का पथ दिखाना चाहती हैं।

कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिह्न द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे-पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें अलंकार हो।

कविता में आए पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार वाले शब्द- मधुर-मधुर, युग-युग, गल-गल, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस।

महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है| इस विषय पर जानकारी प्राप्त किजिए उत्तर-

महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार मीरा अपने आराध्य देव कृष्ण से मिलने के लिए उनकी दासी या जोगन बनना चाहती हैं तथा वे चाहती थी कि कृष्ण आएँ और उनके दुखो को हर लें। मीरा अपने आराध्य के दर्शनों की प्यासी थी ठीक उसी प्रकार महादेवी वर्मा भी अपने आराध्य की प्रतीक्षा में अपने आस्था रूपी दीपक को जलाकर उनके पथ को आलोकित करती हैं। मीरा अपने आपको इस अखंड-अनंत में विलीन कर देना चाहती हैं। मीराबाई ने बड़ी सहजता एवं सरलता से अपने प्रेम और भक्ति भावों को जनभाषा के माध्यम से प्रस्तुत किया है लेकिन वही महादेवी वर्मा ने विभिन्न प्रकार के बिंबों का प्रयोग किया है। मीरा का प्रियतम इस लोक का प्राणी, सगुण एवं साकार रूप में हमारे सामने उपस्थित होता है जबकि महादेवी का प्रियतम इस लोक का प्राणी नहीं हैं जो प्राप्त किया जा सके।