Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 8 "kaifi azmi kar chale hum fida". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है?

 हाँ, इस गीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। यह गीत सन् 1962 में लिखा गया था। भारत-चीन युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। जब चीन ने तिब्बत की ओर से आक्रमण किया था और भारतीय वीरों ने इस आक्रमण का मुकाबला बड़ी वीरता से किया था। इसी युद्ध की पृष्ठभूमि पर चेतन आनंद ने ‘हकीकत’ फिल्म बनाई थी। यह गीत इसी फिल्म के लिए लिखा गया था।

‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’, इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है?

 सर हिमालय का हमने न झुकने दिया इस पंक्ति में हिमालय भारत के मान सम्मान का प्रतीक है। हिमालय की चोटियाँ बर्फ़ से ढकी हुई है उन्हीं चोटियों पर भारत-चीन युद्ध लड़ा गया था। भारतीय सैनिकों ने अपने प्राण गवाँकर देश के मान-सम्मान को सुरक्षित रखा। भारतीय सैनिक हर पल देश की रक्षा हेतु बलिदान देने के लिए तत्पर रहते हैं। उनके साहस की अमर गाथा से हिमालय की पहाड़ियाँ आज भी गुंजायमान हैं।

 इस गीत में धरती को दुल्हन क्यों कहा गया है?

इस गीत में धरती को दुल्हन इसलिए कहा गया है क्योंकि इस गीत में सैनिकों और भारत की भूमि को प्रेमी-प्रेमिका के रुप में दर्शाया गया है। जिस प्रकार दूल्हे को दुल्हन सबसे प्रिय होती है, उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी वह बखूबी समझता है, ठीक उसी प्रकार इस धरती रुपी दुल्हन पर सैनिक रुपी प्रेमी कभी विपत्ति सहन नहीं कर सकते। सन् १९६२ के युद्ध में भारतीय सैनिकों ने बलिदान के रक्त से धरती रूपी दुल्हन की माँग भरी थी। 


गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि वे जीवन भर याद रह जाते हैं?

जिन गीतों में हृदय स्पर्शी भाषा, मार्मिकता, सच्चाई, गेयता, संगीतात्मकता, लयबद्धता, गीत का जीवन से संबंध आदि गुण होते हैं, वे गीत जीवन भर याद रहते हैं। ‘कर चले हम फ़िदा’ गीत में बलिदान की भावना स्पष्ट रुप से झलकती है। इसलिए यह किसी एक विशेष व्यक्ति का गीत न बनकर सभी भारतीयों का गीत बन गया।

 कवि ने ‘साथियों’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?

कवि ने “साथियों” शब्द का प्रयोग सैनिक साथियों व देशवासियों के लिए किया है। सैनिकों का मानना है कि इस देश की रक्षा हेतु हम बलिदान की राह पर बढ़ रहे हैं। हमारे बाद यह राह सूनी न हो जाए। सभी सैनिकों व देशवासियों को इससे सतर्क रहना होगा। देशवासियों का परस्पर साथ ही देश की अनेकता में एकता जैसी विशिष्टता को मज़बूत बनाता है।

कवि ने इस कविता में किस काफ़िले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?

कवि चाहता है कि यदि सैनिकों की टोली शहीद हो जाए, तो अन्य सैनिक युद्ध की राह पर बढ़ जाएँ। यहाँ देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के समूह के लिए काफ़िले शब्द का प्रयोग किया गया है। बलिदान का रास्ता तो सदैव प्रगतिशील रहना चाहिए। कुर्बानियों के काफ़िले ही देश को अमरता प्रदान करते हैं। इसीलिए कवि ने कविता में काफ़िले को बढ़ाते रहने की बात की है।

इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ किस ओर संकेत करता है?

इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ का अर्थ है – हँसते-हँसते देश की रक्षा के लिए अपने जीवन को बलिदान करने के लिए तैयार रहना। देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देना। वे शत्रुओं का मुकाबला निडरता पूर्वक करते हैं। मौत से नहीं डरते। इसीलिए कवि ने ‘सर पर कफ़न बांधने’ की बात की है।

 इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए?

 प्रस्तुत काव्य युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म हकीकत के लिए लिखा गया था। कवि इसमें देशभक्ति को विकसित करके देश को जागरुक करना चाहता है। यह गीत सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। चीन ने तिब्बत की ओर से आक्रमण किया और भारतीय वीरों ने इस आक्रमण का मुकाबला वीरता से किया। अपने देश के सम्मान और रक्षा के लिए सैनिक हर चुनौतियों को स्वीकार करके अपने जीवन का बलिदान करने के लिए तैयार रहते हैं। अपनी अंतिम साँस तक देश के मान की रक्षा कर उसे शत्रुओं से बचाते हैं।

9.निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

.साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई

फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया

इन पंक्तियों में कवि कैफ़ी आज़मी ने भारतीय जवानों के साहस की सराहना की है। सैनिकों ने अंतिम साँस तक देश की रक्षा करते हैं। चीनी आक्रमण के समय भारतीय जवानों ने हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों पर लड़ाई लड़ी। इस बर्फ़ीली ठंड में उनकी साँस घुटने लगी, साथ ही तापमान कम होने से नब्ज़ भी जमने लगी परन्तु वे किसी भी बात की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहे और हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर करते गए और भारत की रक्षा करते रहे।

10.निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

खींच दो अपने खूँ से ज़मीं पर लकीर

इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई

 यह गीत की प्रेरणा देने वाली पंक्तियाँ हैं। कवि सैनिकों से कहते है कि भारतभूमि सीता की तरह पवित्र है। अगर कोई शत्रु रुपी रावण उसकी तरफ़ बढ़ेगा तो अपने खून से लक्ष्मण (सैनिक) रेखा खींच कर उसे बचाएँगे। अतः देश की रक्षा का भार सैनिकों पर है। सैनिक देश की रक्षा के लिय हमेशा तत्पर रहे।


11.निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –

छू न पाए सीता का दामन कोई

राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियों

 इन पंक्तियों में कवि सैनिकों को कहना चाहता है कि भारत का सम्मान सीता की पवित्रता के समान में है। देश की रक्षा करना सैनिक कर्तव्य है। देश की पवित्रता की रक्षा राम और लक्ष्मण की तरह करना है। अत: राम तथा लक्ष्मण का कर्तव्य भी हमें ही निभाना है। देश की सीमा पर सैनिकों के होते हुए कोई दुश्मन देश में प्रवेश करके देश की अस्मिता को नहीं लूट सकता।

इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं। गीत के संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

कट गए सर, नब्ज़ जमती गई, जान देने की रुत, हाथ उठने लगे

 1. भारतीय जवानों के हाथों युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं के सिर कट गए।

2. भारतीय सैनिको को देखकर चीनी सैनिकों की डर के मारे  नब्ज़ जम गई।

3. सैनिकों ने शत्रु के हमले की जानकारी मिलते ही सर पर कफ़न चढ़ा लिया क्योंकि सब जान गए थे कि यह जान देने की रुत है।

4. हम अपने देश की रक्षा के लिए हमारे देश पर उठने वाले हाथ को हम काट देंगे।

ध्यान दीजिए संबोधन में बहुवचन ‘शब्द रूप’ पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता; जैसे – भाइयो, बहिनो, देवियो, सज्जनो आदि।

भाइयो, बहिनो, देवियो, सज्जनो आदि।

कैफ़ी आज़मी उर्दू भाषा के एक प्रसिद्ध कवि और शायर थे। ये पहले ग़ज़ल लिखते थे। बाद में फिल्मों में गीतकार और कहानीकार के रुप में लिखने लगे। निर्माता चेतन आनंद की फिल्म हकीकत के लिए इन्होंने ये गीत लिखा था , जिसे बहुत प्रसिद्धि मिली। यदि संभव हो सके तो यह फ़िल्म देखिए।

निर्माता चेतन आनंद द्वारा बनाई गई फ़िल्म ‘हकीकत’ को देखिए। इसमें कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखित गीत ‘कर चले हम फिदा’ दर्शाया गया है।

‘फ़िल्म का समाज पर प्रभाव’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

 हक़ीकत १९६४ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। पंडित जवाहरलाल नेहरू को समर्पित थी 'हकीकत'।[1] फिल्मकार चेतन आनन्द द्वारा बनायी गयी यह फिल्म नेहरु युग में हुए भारत-चीन युद्ध को लेकर थी। यह फिल्म 1962 के भारत-चीन युद्ध की घटनाओं पर आधारित है,जिसमें लद्दाख में सैनिकों की एक छोटी पलटन ने एक बहुत बड़े विरोधी का सामना किया। फिल्म की लड़ाई के इर्द-गिर्द बनाई गई हैलद्दाख में रेजांग ला और मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में अहीर कंपनी, 13 कुमाऊं के अंतिम स्टैंड का एक काल्पनिक संस्करण प्रदर्शित करता है । हालाँकि फिल्म न केवल युद्ध का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि आम सैनिक पर युद्ध के प्रभाव का एक नाटकीय पुनर्कथन है। चेतन आनंद ने फिल्म को जवाहरलाल नेहरू और लद्दाख में सैनिकों को समर्पित किया। फिल्म को व्यापक रूप से भारत की सबसे बड़ी श्वेत-श्याम युद्ध-फिल्मों में से एक माना जाता है।

 कैफ़ी आज़मी की अन्य रचनाओं को पुस्तकालय से प्राप्त कर पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। इसके साथ ही उर्दू भाषा के अन्य कवियों की रचनाओं को भी पढ़िए 

 कैफ़ी आज़मी की तलाश कविता है –

ये बुझी सी शाम ये सहमी हुई परछाइयाँ

ख़ून-ए-दिल भी इस फ़ज़ा में रंग भर सकता नहीं

आ उतर आ काँपते होंटों पे ऐ मायूस आह

सक़्फ़-ए-ज़िन्दाँ पर कोई पर्वाज़ कर सकता नहीं

झिलमिलाए मेरी पलकों पे मह-ओ-ख़ुर भी तो क्या?

इस अन्धेरे घर में इक तारा उतर सकता नहीं

लूट ली ज़ुल्मत ने रू-ए-हिन्द की ताबिन्दगी

रात के काँधे पे सर रख कर सितारे सो गए

वो भयानक आँधियाँ, वो अबतरी, वो ख़लफ़शार

कारवाँ बे-राह हो निकला, मुसाफ़िर खो गए

हैं इसी ऐवान-ए-बे-दर में यक़ीनन रहनुमा

आ के क्यूँ दीवार तक नक़्श-ए-क़दम गुम हो गए

देख ऐ जोश-ए-अमल वो सक़्फ़ ये दीवार है

एक रौज़न खोल देना भी कोई दुश्वार है


अन्य उर्दू कवि की रचना – गालिब


आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक

कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

दाम हर मौज में है हलका-ए-सदकामे-नहंग

देखें क्या गुज़रे है कतरे पे गुहर होने तक

आशिकी सबर तलब और तमन्ना बेताब

दिल का क्या रंग करूँ ख़ूने-जिगर होने तक

हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन

ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक

परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम

मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक

यक-नज़र बेश नहीं फुरसते-हसती गाफ़िल

गरमी-ए-बज़म है इक रकसे-शरर होने तक

ग़मे-हसती का 'असद' किस से हो जुज़ मरग इलाज

शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक


एनसीईआरटी द्वारा कैफ़ी आज़मी पर बनाई गई फ़िल्म को देखने का प्रयास कीजिए।

 एनसीईआरटी द्वारा बनाई फ़िल्म को देख कर पता लगता है की यह फ़िल्म भारत चीन युद्ध पर बनाए गई है।यह फिल्म 1962 के भारत-चीन युद्ध की घटनाओं पर आधारित है,जिसमें लद्दाख में सैनिकों की एक छोटी पलटन ने एक बहुत बड़े विरोधी का सामना किया।