Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 1 "Kabir ki Sakhi. This guide is designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!
1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती हैं?
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त होती है। यह सच है। जब हम मीठी वाणी मतलब जब हम प्यार से बाते करते है किसी से तो सुनने वाले को भी अच्छा लगता और बोलने वाले को भी। कहा गया है कि हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि जो हम बोले वो दूसरो को भी अच्छा लगे और हमें खुद भी। मीठी वाणी से हम किसी का भी दिल जीत सकते हैं वही अगर हम कड़वे वाणी मे बोलेंगे तो दूसरो को भी खराब लगेगा और हमे खुद भी। मीठी वाणी से लोग प्यार करते इसलिए जब हम मीठी वाणी मे बात करते हैं तो वह औरों को भी सुख देता है और अपने तन को भी शीतलता प्राप्त होती हैं।
2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता हैं? साखी के संदर्भ मे स्पष्ट कीजिए।
यहाँ कबीर यह कहते हैं कि हम अहंकार मे होते है और हमें हमेशा खुद की ही फ़िक्र होती। हम इतने अहंकार मे रहते हैं कि हमे ईश्वर भी नहीं दिखते। और यही अगर हम अहंकार छोड़ देते हैं तो हमें हरि दिख जाते। इसलिए यह कहा गया हैं कि जब हमें ज्ञान रूपी दीपक दिखाई देता है तो अंधकार अपने आप मिट जाता हैं। जब हमें ज्ञान की प्राप्ति होती हैं तो अहंकार मिट जाता हैं और जब तक हम बस अपने बारे मे सोचेंगे तो हम कभी दीपक की रोशनी नहीं प्राप्त हो पाएगा।
3. ईश्वर कण कण मे व्याप्त हैं, पर हमें उसे क्यों नहीं देख पाते?
हाँ, ईश्वर कण कण मे व्याप्त होते हैं परंतु फिर भी हम उन्हें नहीं देख पाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा मन पवित्र नहीं हैं। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासीताओ से भरा हुआ हैं। हम ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा में ढूंढते हैं। ईश्वर को खुश करने के लिए, उन्हें पाने के लिए हम अनेको पूजा पाठ करवाते हैं परंतु जब हमारी अज्ञानता समाप्त होती है और हम अपने अन्तरात्मा में देखते हैं तो हमें ईश्वर मिल जाते हैं। ईश्वर को पाने के लिए हमारा मन शुध्द होना अति आवश्यक है तभी हम ईश्वर को देख पायेंगे।
4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ 'सोना' और 'जागना' किसके प्रतीक है? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
कबीर के अनुसार संसार में सुखी व्यक्ति वह है जो संसार में व्याप्त सुख-सुविधाओं का भोग करते हैं और दुखी व्यक्ति वह है जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। इसलिए कबीर कहते हैं इसकी सुखी व्यक्ति वह है जो सोता है और खाता है और दुखी व्यक्ति वह है जो जागता है और रोता है। कबीर ने संसार को सुखी व्यक्ति और खुद को दुखी व्यक्ति कहा है। यहां 'सोना' अज्ञानता का प्रतीक है और 'जागना' ज्ञान का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुखों में खोए रहते हैं, जीवन के भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं, वह सोए हुए हैं और जो व्यक्ति सांसारिक सुखों को व्यर्थ समझते हैं और ईश्वर में ही लिप्त रहते हैं, वह जागे हुए व्यक्ति है। जागे हुए व्यक्ति सांसारिक दुर्दशा को लेकर चिंतित रहते हैं और उसे ठीक करने के लिए दिन-रात सोचते रहते हैं।
5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
कबीर का कहना है कि यदि हम अपने स्वभाव को निर्मल रखना चाहते हैं तो हमें अपने आसपास वैसे लोगों को रखना होगा जो हमारे अंदर की बुराइयों को बताएँ। कबीर का कहना है कि हमें अपने नींदक को को अपने पास रखना चाहिए। यदि पास रखेंगे तो वह हमारे अंदर की बुराइयों को बताएंगे जिससे हमें पता चलेगा कि हम में क्या क्या बुराई हैं। निंदक हमारे सबसे अच्छे हितैषी होते हैं और उनके द्वारा बताई गई त्रुटियों को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल कर सकते हैं।
6. 'ऐकै अषिर पीव का, पढै सु पंडित होइ' - इस पंक्ति द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
इस पंक्ति द्वारा कबीर या कहना चाहते हैं कि जिस व्यक्ति ने ईश्वर का एक भी अक्षर पढ़ लिया वही दुनिया में सबसे ज्ञानी व्यक्ति है। कबीर या कहते हैं कि पोथी पढ़ पढ़ कर मतलब बहुत सारी किताबें पढ़कर कोई ज्ञानी नहीं होता है जो ईश्वर का एक अक्षर पढ़ लेता है वही दुनिया में सबसे ज्ञानी होता है। ईश्वर ही एकमात्र सच है और उसे जानने वाला ही इस दुनिया में सच्चा ज्ञानी है।
7. कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
'साखियों' मे कबीर की भाषा मिली जुली है। कबीर की साखियाँ सुध्धकड़ी भाषा में लिखी गई है। कबीर की साखियां जनमानस को जीने की कला सिखाती है। कबीर की भाषा में अवधि, पंजाबी, ब्रज, राजस्थानी सभी का मिश्रण पाया जाता है। कबीर की साखियां संदेश देने वाली होती है। यह प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु शिष्य को प्रदान करता है। कबीर जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा भी करते थे। कबीर ने अपने साखियों में लोक भाषाओं का भी प्रयोग किया है। लोक भाषाएं जैसे कि खायै, नेग, मुवा, जाल्या आदि।
8. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए।
'बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र ना लागै कोइ।'
इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं कि जैसे विरह की दुख अंदर ही अंदर व्यक्ति को काटते रहती है, उसे कोई मंत्र के उपचार से भी ठीक नहीं किया जा सकता है, ऐसे ही ईश्वर से प्रेम करने वाला व्यक्ति को भी मन ही मन संताप रहता है और उसका जीवित रहना संभव नहीं होता, यदि वह जीवित भी रह जाये तो पागल के समान हो जाएगा। पागल के समान इसलिए बताया गया है कि यह जगत माया की भाषा को समझता है, माया के इतर किए गए कार्य और व्यवहार को समाज अव्यावहारिक और असामान्य मानते हुए उस व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर शक करते हैं और उसे पागल कहने लगते हैं।
9. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए।
'कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन माही। '
इस पंक्ति के द्वारा कबीर या कहना चाहते हैं कि जैसे कस्तूरी मृग के नाभि में बसी रहती है लेकिन फिर भी वह अपने आसपास उस सुगंध के पीछे दौड़कर उस सुगंध को ढूँढता है। ठीक वैसे ही भगवान हमारे अंदर ही रहते हैं लेकिन फिर भी हम भगवान की खोज में मंदिरहैं, मस्जिद, गुरुद्वारा भटकते रहते हैं। जब तक हम अपने मन में ना झांक कर देखें और अपने अंतरात्मा में ना देखे तब तक हमें ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी। इसलिए कभी ने उदाहरण के रूप में कहा है कि जैसे मृग के नाभि में ही कस्तूरी रहती है और नाभि सी कस्तूरी की सुगंध आती है परंतु उसे इस बात का ज्ञात नहीं है और वह पूरे वन में उस सुगंध को ढूँढने के लिए भागा फिरता है। ठीक वैसे ही मनुष्य के साथ भी होता है। ईश्वर उसके मन में विराजमान होते हैं परंतु वह ईश्वर की खोज के लिए पूरे संसार में भटकता फिरता है।
10. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नहीं
इस पंक्ति के द्वारा कभी लिया कहना चाहते हैं कि जब मेरे अंदर मैं रूपी अहंकार था तो मैं सिर्फ अपने बारे में सोचता था इसलिए मेरे पास ईश्वर नहीं थे परंतु जब मेरे अंदर से मैं रुपए अहंकार हट गया तो मेरे अंदर ईश्वर है। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार हट गया है। जब मनुष्य में अहंकार आ जाता है तो वह खुद के अलावा किसी को नहीं देख पाता है। यह अंधकार ज्ञान रूपी दीपक से दूर होता है। इसलिए जब तक मनुष्य केवल अपने बारे में ही सोच कर स्वार्थ ही रहेगा और अहंकार में रहेगा तब तक वह ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर सकेगा। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हमें अपने अंदर के अहंकार को त्यागना होगा।
11. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोई।
इस पंक्ति के द्वारा कबीर या कहना चाहते हैं कि पोथी पढ़ पढ़ कर कोई ज्ञानी नहीं बनता है। जो व्यक्ति ईश्वर को प्रेम से पढ़ लेता है वही पंडित होता है। कहने का तात्पर्य है कि पोठिया बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़कर कोई ज्ञानी नहीं बन सकता है जब तक वह अपने मन में ईश्वर को ना समाए। यदि उस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर का वास है और ईश्वर से प्रेम करता है तभी वह सच्चे रूप में ज्ञानी होता है।
12. पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए।
उदाहरण - जीवै - जीना
औरन - दूसरे को
माँहि - अंदर
देख्या - देखना
भुवंगम - साँप
नेड़ा - पास
आंगणि - आंगन
साबण - साबुन
मुवा - मरा हुआ
पीव - प्यार
जालौं - जलाकर
तास - परात
13. कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
कस्तूरी मृग दिखने में हिरण के जैसे ही दिखते हैं। लोग उन्हें हिरण ही मानते हैं। उन्हें हिरन ही समझा जाता है। लेकिन जीव वैज्ञानिक दृष्टि से यह हीरोइनों के वंश का भाग नहीं है। कस्तूरी मृग मैं असली हिरण के भांति सिंह नहीं होता है। कस्तूरी हिरणों मैं कस्तूरी ग्रंथि होती है जो आम हिरणों में नहीं होता है। कस्तूरी मृग के मुंह के दांत भी लंबे और मुंह से बाहर उभरे हुए होते हैं। कस्तूरी मृग एकांत में रहने वाला बहुत ही सीधा और छोटा सा जानवर होता है। यह साइबेरिया से लेकर हिमालय तक के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है।कस्तूरी एक ऐसा पदार्थ है जिसमें तीखी गंध होती है। कस्तूरी मृग की पेट की त्वचा के नीचे नाभि के पास एक छोटा सा थैला होता है जिसमें कस्तूरी का निर्माण होता है। ताजी कस्तूरी गाढे द्रव के रूप में होती है लेकिन सूखने पर दानेदार चूर्ण की तरह बदल जाती है। कस्तूरी का प्रयोग उत्तम प्रकार की साबुन और इत्र बनाने में किया जाता है क्योंकि इसकी सुगंध बहुत मनमोहक होती है।