Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 11 " Diary Ka Ek Panna". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्वपूर्ण था ?

26 जनवरी 1931 का दिन कलकत्तावासियों के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि सन् 1930 में गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। इस वर्ष उसकी पुनरावृत्ति थी जिसके लिए काफ़ी तैयारियाँ पहले से ही की गई थीं। इसके लिए लोगों ने अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया था और उन्हें इस तरह से सजाया गया था कि ऐसा मालूम होता था मानों स्वतंत्रता मिल गई हो।


सुभाष बाबू के जुलुस का भार किस पर था ?

सुभाषा बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था परन्तु पूलिस ने उन्हें पकड़ लिया।

विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई ?

विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर यह प्रतिक्रिया हुई कि उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और अन्य लोगों को मार-मार कर वहाँ से हटा दिया

लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा कर किस बात का संकेत देना चाहते थे?

लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा कर बताना चाहते थे कि वे अपने को आज़ाद समझकर आज़ादी मना रहे हैं। उनमें जोश और उत्तसाह है।

पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों और मैदानों को क्यों घेर लिया था?

आज़ादी मनाने के लिए पूरे कलकत्ता शहर में जनसभाओं और झंडारोहण उत्सवों का आयोजन किया गया। इसलिए पार्कों और मैदानों को घेर लिया था।

26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गई?


 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए कलकत्ता वासियों ने अनेक प्रकार की तैयारियाँ कि थी जैसे लोगों ने अपने मकानों को खूब अलग अलग प्रकारों से सजाया हुआ था, शहर के प्रत्येक भाग में राष्ट्रीय झंडे लगाए गए थे, कुछ लोगों ने तो अपने घर और मकानों को ऐसे सजाया था जैसे स्वतंत्रता प्राप्त ही हो गई हो और कई मकान तो ऐसे सजाए गए थे जैसे कि मालूम होता था कि मानो स्वतंत्रता मिल गई हो। जिस रास्ते से मनुष्य जाते थे उसी रास्ते में उत्साह और नवीनता मालूम होती थी। पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गस्त देकर प्रदर्शन कर रही थी । मोटर लारियों में गोरखे और सार्जेंट प्रत्येक मोड़ पर तैनात थे। घुड़सवारों का प्रबंध था कही भी ट्रैफिक पुलिस नहीं थीं, सारी पुलिस को इसी काम में लगाया हुआ था।

आज जो बात थी वह निराली थी’ – किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।

26 जनवरी का दिन अपने आप में ही निराला था क्योंकि इस दिन को निराला बनाने के लिए कलकत्ता वासी हर संभव प्रयास कर रहे थे । सभी लोग पूरे जोश और तैयारी में थे । सभी लोग उत्साह से भरे हुए थे। पुलिस की पूरी कोशिश थी की स्तिथि उनके हाथ मे रहे, तो दूसरी ओर लोगो का जुनून पुलिस की कोशिश के आगे भारी पड़ रहा था। हर पार्क तथा मैदानों में भारी संख्या में लोग इक्कठा हुए थे। निषेधाज्ञा के बावजूद सैकड़ो लोग तीन बजे से ही पार्क में पहुँच रहे थे। स्त्रियाँ भी जुलूस में बढ़ चढ़कर भाग ले रही थी। माहौल इतना ज्यादा जोश भरा था, लोगो का उत्साह भी इतना ज्यादा था  की माहौल बता रहा था की वह दिन वाकई निराला था।


पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?


 पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल की नोटिस में बहुत अंतर था । पुलिस कॉमिशनर की नोटिस सभा आजादी के जश्न को रोकने के लिए थी और सरकार अपना भय दिखाकर जनता के ऊपर अपने मनमाने कानूनों को थोप रहीं थीं ओर दूसरी तरफ कॉन्सिल की नोटिस लोगों का आह्वान कर रही थीं की वे भारी संख्या में आकर आजादी का उत्सव मनाए। दोनों नोटिस एक दूसरे के विरोधाभाषी थे।


धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?


धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस इसलिए टूट गया क्योंकि  पुलिस ने आकर कुछ लोगो को पकड़ लिया , लोगों पर लाठियाँ भी बरसानी शुरू कर दी। कुछ लोग घायल हो गए।  सुभाष बाबू पर भी लाठियां पड़ी । सुभाष बाबू बोहोत जोर से वंदे मातरम् बोल रहे थे। सुभाष बाबू को गिरफ्तार भी कर लिया। पुलिस भयानक रूप से गोलियां चला रही थी। कई लोग घायल हो गए थे ।  लोगों के घायल होने ओर सुभाष बाबू को गिरफ्तार करने के कारण जुलूस टूट गया।

डॉ. दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।

फोटो उतरवाने का एक ही मकसद हो सकता है। प्रेस में घायलों की फोटो जाने से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के स्वाधीनता संग्राम को प्रचार मिल सकता था। इसके साथ ही सरकार द्वारा अपनाई गई बर्बरता को भी दिखाया जा सकता था। और उन लोगों की फोटो खींचने की वजह यह थी कि पूरा देश अंग्रेजी सरकार के इस अमानवीय कृत्य को देखे और प्रेरित होकर अंग्रेजों का विरोध करें और देश से अंग्रेजों को बाहर करने में अपना सहयोग दें।फोटो उतरवाने का एक ही मकसद हो सकता है। 

सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?

 सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की विशेष और बड़ी अहम् भूमिका रही है। सुभाष बाबू के जुलूस में सुभाष बाबू को शुरू में ही पकड़ लिया था ।उसके बाद  स्त्रियों ने पूरी तरह से जुलूस को आगे बढ़ाने का जिम्मा ले लिया था।  धर्म तल्ले के मोड़ पर ५० – ६० स्त्रियो ने धरना दिया। आखिर में  करीब १०५ महिलाएं पकड़ी गई। महिलाओं ने अपने-अपने तरीकों से जुलूस निकाला। जिस तरह से स्त्रियों ने जुलूस के तितर बितर होने के बाद भी मामले को आगे बढ़ाया उससे साफ जाहिर होता है कि स्त्रियों ने बखूबी उस दिन अपना योगदान दिया था। जानकी देवी और मदालसा बजाज जैसी स्त्रियों ने जुलूस का सफल नेतृत्व किया। झंडोत्सव में पहुँचकर मोनुमेंट की सीढियों पर चढ़कर झंडा फहराकर घोषणापत्र पढ़ा। करीब 105 स्त्रियों ने पुलिस को अपनी गिरफ्तारी दी और अंग्रेजों के अत्याचार का सामना किया।


जुलूस के लालबाजार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?

जुलूस के लाल बाज़ार पहुँचते ही पुलिस ने जुलूस पर लाठियाँ बरसाना शुरू कर दिया। सुभाष बाबू को पकड़कर जेल भेज दिया गया और भी कई लोगो को पकड़ लिया गया। व्रजलाल गोयनका को जो कई दिन से सुभाष बाबू के साथ काम कर रहा था और दमदम जेल में भी साथ था , पकड़ा गया । पहले तो वह झंडा लेकर वंदे मातरम् बोलता हुआ मोन्यूमेंट की ओर इतनी जोर से दौड़ा की अपने आप ही गिर पड़ा और एक अंग्रेजी घुड़सवार ने लाठी मारी फिर पकड़कर ले जाने के बाद कुछ दूर पर छोड़ दिया तब वह 200 आदमियों का जुलूस बनाकर लालबाजार गया और वहा गिरफ्तार हो गया । मदालसा बजाज भी पुलिस द्वारा पकड ली गई। उससे मालूम हुआ कि उसको थाने में मारा गया था। सब मिलकर 105 महिलाएं पकड़ी गई थी बाद में रात को 9 बजे सबको छोड़ दिया गया था । इस जुलूस में कई लोग घायल और गिरफ्तार हो गए।

‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

प्रस्तुत कथन में अंग्रेजों द्वारा लगाए गए प्रतिरोध को भंग करने की बात की गई है।इस कानून के अनुसार किसी भी प्रकार की सभा को आयोजित या उसमें भाग लेने की मनाही थी।

मेरे विचार से यह कानून भंग करना अति आवश्यक था क्योंकि यदि ऐसा न किया जाता तो देश में स्वंतन्त्रता की आग को और बढ़ावा न मिलता। साथ ही अंग्रेजों के कानून को भंग करना उनके लिए खुली चुनौती थी यह देश भारतीयों का था, है और रहेगा।पाठ में जिस तरह से आजादी के जोश का चित्रण हुआ है उससे स्पष्ट होता है कि उस माहौल में कानून भंग करना उचित था।

 बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।


मेरे अनुसार यह दिन अपूर्व इसलिए था क्योंकि इससे पहले कलकत्ता में इतने बड़े स्तर पर जुलूस नहीं निकाला गया था और आखिरी पारा में वर्णन किया गया है, इसके पहले कलकत्ता में इतने बड़े पैमाने पर आजादी की लड़ाई में लोगों ने शिरकत नहीं की थी। न ही इस प्रकार से सरकार को खुली चुनौती दी गई थी। स्त्रियों का इतनी बड़ी संख्या में बड़ चढ़कर भाग लेना जुलुस निकालना और महिलाओं का अपनी गिरफ्तारी देना भी इस दिन को अपूर्व बनाता है।उस दिन जनसमूह का बड़ा सैलाब कलकत्ता की बुरी छवि को कुछ हद तक धोने में कामयाब होता दिख रहा था। इसलिए लेखक को वह दिन अपूर्व लग रहा था।

आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया

इस पंक्ति का आशय यह है कि इस आंदोलन के पहले यह कहा जाता था कि कलकत्तावासी देश के लिए अधिक कार्य नहीं करते हैं और यह बात यहाँ के निवासियों के लिए एक कलंक के समान थी परन्तु 26 जनवरी 1931 के दिन को यादगार और अपूर्व बनाकर कलकत्तावासियों ने इस कलंक को पूरी तरह से धो दिया।उस सभा के पहले कलकत्ता में पहले कभी लोगों ने इतना बढ़ चढ़ कर स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया था। इस कारण से कुछ लोग हमेशा कलकत्ता पर यह आरोप लगाते थे कि वहाँ के लोग गुलामी को ही पसंद करते हैं। लेकिन उस दिन जो कुछ हुआ उससे कलकत्ता के नाम पर लगा दाग धुलने में बहुत सहायता मिली होगी।

खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले कहीं नहीं की गई थी।

 इस पंक्ति का आशय यह है कि पुलिस कमिश्नर के नोटिस की परवाह न करते हुए पुलिस और प्रशासन के मना करने पर भी लोगो ने उस कार्यक्रम मे बड़ी संख्या में भाग लिया ।नौकरी जाने की परवाह किये बिना कई सरकारी मुलाजिमों ने भी अपनी शिरकत की इसलिए कहा गया है कि खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।कलकत्तावासियों ने अपनी निडरता, साहस, शक्ति और देशभक्ति का अनूठा परिचय दिया था। ऐसा पहली बार हुआ था जब जनता ने सरकार को खुला चैलेंज देकर न केवल सभा आयोजित की बल्कि सरकार को उसकी हद भी दिखा दी। सभी ने जोश के साथ जुलुस में भाग लिया । सुभाष बाबू की गिरफ्तारी के बाद महिलाओं ने जुलुस निकालने का जिम्मा लिया। इसीलिए ऐसी सभा पहले कभी नही हुई थीं।

निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और समझिए कि जाना, रहना और चुकना क्रियाओं का प्रयोग किस प्रकार किया गया है।

(क) 

1. कई मकान सजाए गए थे।

2. कलकत्ते के प्रत्येक भाग में झंडे लगाए गए थे।

(ख) 

1. बड़े बाजार के प्राय : मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था।

2. कितनी ही लारियाँ शहर में घुमाई जा रही थीं।

3. पुलिस भी अपनी पूरी ताकत से शहर में गश्त देकर प्रदर्शन कर रही थी।

(ग) 

1. सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था, वह प्रबंध कर चुका था।

2. पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकल चुका था।

 ऊपर लिखे हुए वाक्यों को पढ़ने और समझने से यह पता चलता है कि ‘जाना’, ‘रहना’ और ‘चुकना’ क्रिया को इन वाक्यों में मुख्य क्रिया की तरह प्रयोग ना करके रंजक क्रिया की तरह प्रयोग किया गया है। इससे इनकी मुख्य क्रियाएं संयुक्त क्रियाओं में परिवर्तित हो गई है।


नीचे दिए गए शब्दों की संरचना पर ध्यान दीजिए –

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

‘विद्या’ शब्द का अंतिम स्वर ‘आ’ और दूसरे शब्द ‘अर्थी’ की प्रथम स्वर ध्यनि ‘अ’ जब मिलते हैं तो वे मिलकर दीर्घ स्वर ‘आ’ में बदल जाते हैं। यह स्वर संधि है जो संधि का ही एक प्रकार है।

संधि शब्द का अर्थ है – जोड़ना। जब दो शब्द पास-पास आते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि बाद में आने वाले शब्द की पहली ध्वनि से मिलकर उसे प्रभावित करती है। ध्वनि परिवर्तन की इस प्रक्रिया को संधि कहते हैं। संधि तीन प्रकार की होती है – स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि। जब संधि युक्त पदों को अलग- अलग किया जाता है तो उसे संधि विच्छेद कहते हैं; जैसे – विद्यालय – विद्या +आलय

नीचे दिए गए शब्दों की संधि कीजिए –

1. श्रद्धा + आनंद

2. प्रति + एक

3. पुरुष + उत्तम

4. झंडा + उत्सव

5. पुन: + आवृत्ति

6. ज्योति: + मय

1. श्रद्धा + आनंद =श्रद्धानंद

2. प्रति + एक = प्रत्येक

3. पुरुष + उत्तम =पुरुषोत्तम

4. झंडा + उत्सव =झंडोत्सव

5. पुन: + आवृत्ति =पुनरावृत्ति

6. ज्योति: + मय =ज्योतिमय

भौतिक रूप से दबे हुए होने पर भी अंग्रेजों के समय में ही हमारा मन आज़ाद हो चुका था। अत: दिसंबर सन् 1929 में लाहौर में कांग्रेस का एक बड़ा अधिवेशन हुआ, इसके सभापति जवाहरलाल नेहरू जी थे। इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव पास किया गया कि अब हम ‘पूर्ण स्वराज्य’ से कुछ भी कम स्वीकार नहीं करेंगे। 26 जनवरी 1930 को देशवासियों ने ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ के लिए हर प्रकार के बलिदान की प्रतिज्ञा की। उसके बाद आज़ादी प्राप्त होने तक प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। आज़ादी मिलने के बाद 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

गणतंत्र दिवस भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीन राष्ट्रीय पर्वों (गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गाँधी जयंती) में से एक है, यही कारण है कि इसे हर जाति तथा संप्रदाय द्वारा काफी सम्मान और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस विशेष दिन को देश भर में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। 26 जनवरी के दिन मनाये जाने वाले गणतंत्र दिवस के पर्व पर पूरे देश भर में परेड तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

भारतीय गणतंत्र दिवस सभी भारतीयों के लिए बहुत ही खास अवसर होता है, क्योंकि यह दिन हमें अपने देश में स्थापित गणतंत्र और संविधान के महत्व समझाता है। अतः यह और भी आवश्यक हो जाता है कि इस विशेष दिन को हम उचित सम्मान दें और इसे साथ मिलकर मनाये, ताकि हमारे देश की एकता और अखंडता जिसके लिए कई वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है, इसी प्रकार से बनी रहे।

डायरी– यह गद्य की एक विधा है। इसमें दैनिक जीवन में होने वाली घटनाओं, अनुभवों को वर्णित किया जाता है। आप भी अपनी दैनिक जीवन से संबंधित घटनाओं को डायरी में लिखने का अभ्यास करें।


 19 अगस्त, 2023

मंगलवार 

आज का दिन मेरे लिए बहुत मनोरंजकपूर्ण था। आज के दिन मैंने अपने परिवार के साथ मिलकर खूब मस्ती की क्योंकि आज मेरे स्कूल की छुट्टी थी और इसी के कारण हमारे परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर एक प्लान बनाया कि आज हम सभी मिलकर चिड़ियाघर देखने जाएंगे। हम सब जाने के लिए तैयार हो गए और गाड़ी में बैठ कर रास्ते में मस्ती करते हुए चिड़ियाघर पहुॅंच गए। चिड़ियाघर के लिए हमने टिकट खरीदी और घुसते ही हमारी सबसे पहले खरगोशों और कुछ पक्षियों से मुलाकात हुई हमने उनके साथ खूब खेला और मस्ती की। आगे चलकर हमने खूबसूरत हिरण को देखा, भारी हाथियों को देखा व खूंखार दातों वाले शेर को भी देखा।

हमने सभी के साथ मिलकर कुछ प्यारी फोटो ली पर शेर से तो दूर रहकर ही हमने फोटो खींची। फिर वहीं पर एक छोटे से पार्क में हमने घर से ले जाया हुआ खाना खाया और कुछ देर बाद शाम हो गई। शाम होते ही उस चिड़ियाघर के नज़ारे और खूबसूरत हो गए। हमने नज़ारो के लुफ्त उठाएं और सभी के साथ हॅंसते हुए बहुत सारी फोटो खींची। यह हमारा मुस्कुराना और खिलखिलाना कार में भी चलता रहा और हम कब घर पहुॅंच गए पता ही नहीं चला।

धन्यवाद ।


 जमना लाल बजाज महात्मा गांधी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाने जाते हैं, क्यों? अध्यापक से जानकारी प्राप्त करें।

 दक्षिणी अफ्रीका में महात्मा गांधी द्वारा किए जा रहे सत्याग्रह की खबरों को पढ़कर जमना लाल गांधीजी से प्रभावित होते रहते थे। 1915 में भारत वापस लौटने के बाद जब गांधी जी ने साबरमती में अपना आश्रम बनाया तो जमनालाल वहाॅं जाकर कई दिन रहा करते और गांधी जी की कार्यप्रणाली और व्यक्तित्व समझने की कोशिश किया करते रहते। उन्होंने गांधीजी को ही अपना गुरु बना लिया और वह गांधी जी के सत्य सिद्धांत और अहिंसा का पालन किया करते थे। अपने सिद्धांत के प्रति ऐसा समर्पण देख गांधी जी ने उन्हें अपना पुत्र मानने लगे और तब से कालांतर में जमनालाल को गांधी जी के पाँचवें पुत्र के रूप में जाना जाने लगा।

ढाई लाख का जानकी देवी पुरस्कार जमना लाल बजाज फाउंडेशन द्वारा पूरे भारत में सराहनीय कार्य करने वाली महिलाओं को दिया जाता है। यहाँ ऐसी कुछ महिलाओं के नाम दिए जा रहे हैं–

श्रीमती अनुताई लिमये 1993 महाराष्ट्र; सरस्वती गोरा 1996 आंध्र प्रदेश;

मीना अग्रवाल 1996 असम; सिस्टर मैथिली 1999 केरल; कुंतला कुमारी आचार्य 2001 उड़ीसा।

इनमें से किसी एक के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कीजिए।

सरस्वती गोरा

सुश्री सरस्वती गोरा को 1999 में  जमनालाल बजाज अवार्ड फॉर डेवलपमेंट एंड वेलफेयर ऑफ वूमेन एंड चिल्ड्रन मिला था।

उनका जन्म 28 सितंबर,1912 को हुआ था।

उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया । कई बार जेल गई। वह गांधीवादी तर्ज पर एक समाजिक परिवर्तन कार्यकर्ता थी । वह नास्तिक केंद्र (1940) के सह संस्थापक थी। अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए वह सबसे आगे थी। उन्होंने आंध्र प्रदेश के विभिन्न जिलों 300 से अधिक गांव में व्यापक ग्रामीण विकास के लिए अपने तीन ग्रामीण प्रमुख संगठनों - वासव महिला मंडल, आर्थिक समता मंडल और संस्कार के माध्यम से विभिन्न गतिविधियों के लिए नास्तिक केंद्र का मार्गदर्शन किया।

उन्होंने 1930 मे देशवासियों के लिए विवाह अधिनियम के तहत विवाह के पंजीकरण की वकालत की ,जो जीवनसाथी की समानता पर जोर देता है।

उन्होंने आजादी के बाद के भारत में कई सत्याग्रह का नेतृत्व किया। जो दलितों और गरीबों के नेतृत्व में थे।

नास्तिक केंद्र ने भी परिवार अदालतों की स्थापना की है , महिलाओं की मदद करने के लिए एक समाजिक मार्गदर्शन केंद्र स्थापित किया , पंचायती राज मे महिलाओं का प्रशिक्षण और उन्हे सशक्त बनाने का भी  कार्य किया गया।

उन्होंने 1985 में गोरा अभय निवास की स्थापना की ,जो महिलाओं के लिए एक छोटा घर था।