Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 3 "Bihari Dohe ". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

छाया भी कब छाया ढूँढने लगती है?

हिंदी महीनों में जेठ अपनी तपती धूप और गर्मी के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने बताया है कि जब सूर्य अधिक तपता है तब कोई भी व्यक्ति बाहर निकलने की इच्छा नहीं रखता है। वैसे ही नायिका भी जेठ के मास में बाहर नही निकलना चाहती है। प्रकृति  भी इतनी गर्मी और तपन से मूर्छित होने लगती है और छाया भी इस तपन से कहीं छुपना चाहती है।

बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है 'कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात'-स्पष्ट कीजिए।

 बिहारी जी के दोहे में नायिका अपने प्रेमी से अपने हृदय की बात बताना चाहती है। वह अपनी बात प्रेमी तक पहुँचने के लिए क्या क्या प्रयत्न करती है, यह दोहे में लिखित है। नायिका प्रेम पत्र का विचार अपने मन में लाती है, पर घबराहट से शरीर में कंपन होने से वह इस योजना में असफल रहती है और शर्म के कारण उसे कोई और योजना समझ भी नहीं आती है। नायिका के मन में अपने प्रेमी के लिए अथाह प्रेम है। अतः वह यह सोचती है कि प्रेमी के मन में यही प्रेम भावना होगी और प्रेम सबंध में शब्दों की आवश्यकता नही होती है। 

सच्चे मन में राम बसते हैं-दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।

 बिहारी जी कहते है कि ईश्वर सच्चे मन के भीतर ही रहते है। ऊपरी दिखावा करने से, मोटे ग्रंथो को पढ़ने और माला जपने से कोई सच्चा भक्त नहीं हो जाता है। उनका कहना है कि शुद्ध और पवित्र विचारों वाले मन में राम जी का वास होता है। दिखावा करने वाले ऊपर से प्रभु के साधना और भीतर से संसार के मोह माया के लालच में रहते हैं। ऐसे विचारों वालों के मन में कभी राम नही बसते हैं । सच्चे और साफ़ मन में भगवान राम रहते हैं।  

गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?

श्री कृष्ण जी की मधुर मुरली उनकी प्रिय है। वृन्दावन  की गोपियाँ कृष्ण की चहेती हैं और उनसे बात करने को तरसती रहती हैं। इसलिए वे उनकी मुरली को छुपाने की योजना बनाती हैं ताकि श्री कृष्ण अपनी मुरली के विरह में उनके पास आयंगे और उनसे बातें करेगें। गोपियों को श्री कृष्ण से बाते करना और उनके साथ समय बिताना बहुत पसंद था। वे हमेशा उनकी ओर आकर्षित होती रहतीं थीं।  

बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

 बिहारी जी ने प्रेम समंध को हृदय से जुड़ा बताया है। यदि प्रेम सच्चा है तो उसे शब्दों की आवश्यकता नहीं होती है। उसके लिए कवि ने प्रेमी और प्रेमिका का उदाहरण लिया है कि कैसे वे बिना कहे एक दुसरे के मन की बात जान लेते हैं। एक दूसरे की आँखों में मन के भाव दिख जाते हैं। वे एक दुसरे के भाव को समझ लेते हैं।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-


 मनौ नीलमनि-सैल पर आतप परयौ प्रभात।

 प्रस्तुत पक्तिं में बिहारी जी कहते हैं कि भगवान् श्री कृष्ण के सुन्दर नीले शरीर की शोभा उनके पीले वस्त्रों से और बड़ गई है। उन्होंने इसकी तुलना नीलमणि पवर्त से की है जहाँ सुबह का पीले रंग का सूरज उसकी सुन्दरता को और भी निखरता है। 

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।

उन्होंने बताया है की जब सूर्य अधिक तपता है तब कोई भी व्यक्ति बाहर निकलने की इच्छा नहीं रखता है। प्रकृति भी इतनी गर्मी और तपन से मूर्छित होने लगती है। ऐसी तपन में जंगल में शिकार करने वाले शेर और भ्रमण करने वाले हिरण सब एक सामान गर्मी को सहन करते हैं। सभी आपसी शत्रुता छोड़कर सूरज के इस प्रचंड अवतार की चपेट में हैं। जैसे तपस्वी को शांत देखकर आक्रोश में आने वाले पशु भी शांत हो जाते हैं। छाया भी इस तपन से कहीं छुपना चाहती है।

  निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

जपमाला, छापें, तिलक सरे न एको कामु। मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।

कवि का कहना है कि शुद्ध और पवित्र विचारों वाले मन में राम जी का वास होता है। दिखावा करने वाले ऊपर से प्रभु के साधना और भीतर से संसार के मोह माया के लालच में रहते हैं। ऐसे विचारों वालों के मन में कभी राम नही बसते हैं। सच्चे और साफ़ मन में  भगवान राम  रहते हैं।  


योग्यता विस्तार:

सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।

   देखन में छोटे लगै, घाव करें गंभीर।

अध्यापक की मदद से बिहारी विषयक इस दोहे को समझने का प्रयास करें। इस दोहे से बिहारी की भाषा संबंधी किस विशेषता का पता चलता है?

बिहारी सतसई के दोहों का प्रभाव "नावक से निकलने वाले तीर यानी कि काँटेदार बाण" के समान ही असरकारी है, जो बाहर से दिखने में छोटे से दिखायी देते हैं परन्तु जहाँ चोट करते हैं, वहाँ गहरा घाव कर देते हैं | ठीक इसी प्रकार बिहारी के दोहे सरलतम शब्दावली में होकर भी सीधा अर्थ न देकर वक्र अर्थ में गहरा भाव प्रकट करने का सामर्थ्य रखते हैं दोहे के माध्यम से उन्होंने कम से कम शब्दों में भवो अभिवक्त करने के अलावा अर्थगम्भीर के भी दर्शन होते है ये दोहे मन को गहराई से छु जाते है इसके अलवा उनके उन्हीने दोहों को ब्रज भाषा की सरलता कोमलता और मधुरता व्यप्त है इन दोहों में श्रगर रस सयोग वियोग दोनों तथा भक्ति रस घनीभुत है अनुप्रय रूपक उपमा और उत्पक्ष अलंकारो का मेल है|  

बिहारी कवि के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए।

बिहारीलाल का जन्म संवत् 1603 ई. ग्वालियर में हुआ। वे जाति के माथुर चौबे (चतुर्वेदी) थे। उनके पिता का नाम केशवराय था। जब बिहारी 8 वर्ष के थे तब इनके पिता इन्हे ओरछा ले आये तथा उनका बचपन बुंदेलखंड में बीता। इनके गुरु नरहरिदास थे और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत हुई, जैसे की निम्न दोहे से प्रकट है बिहारी की एकमात्र रचना सतसई (सप्तशती) है। यह मुक्तक काव्य है। इसमें 719 दोहे संकलित हैं। कतिपय दोहे संदिग्ध भी माने जाते हैं। सभी दोहे सुंदर और सराहनीय हैं तथापि तनिक विचारपूर्वक बारीकी से देखने पर लगभग 200 दोहे अति उत्कृष्ट ठहरते हैं। 'सतसई' में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। ब्रजभाषा ही उस समय उत्तर भारत की एक सर्वमान्य तथा सर्व-कवि-सम्मानित ग्राह्य काव्यभाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी दूसरे वर्ग में वे दोहे हैं जिनमें रसात्मकता को विशेषता नहीं दी गई वरन् अलंकार चमत्कार और  वचनचातुरी अथवा कथन-कलाकौशल को ही प्रधानता दी गई है। किसी विशेष अलंकार को उक्तिवैचित्र्य के साथ सफलता से निबाहा गया है। इस प्रकार देखते हुए भी यह मानना पड़ता है कि अलंकार चमत्कार को कहीं नितांत भुलाया भी नहीं गया। रस को उत्कर्ष देते हुए भी अलंकार कौशल का अपकर्ष भी नहीं होने दिया गया|