Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Sparsh's Chapter 10 "Sarveshwar Dayal Saxena". These Solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

कथा नायक की रुचि किन कार्यों में थी?

कथा नायक की रुचि खेल-कूद, मैदानों की सुखद हरियाली, कंकरिया उछालने, हवा के हल्के-हल्के झोंके, फुटबॉल की उछल-कूद, बॉलीबॉल की फुरती और पतंगबाजी, कागज़ की तितलियाँ उड़ाना, चारदीवारी पर चढ़कर नीचे कूदना, फाटक पर सवार होकर उसे आगे-पीछे चलाना , उसे कार बनाने आदि कार्यों में थी।

बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?

बड़े भाई छोटे भाई से हर समय एक ही सवाल पूछते थे-कहाँ थे? उसके बाद वे उसे उपदेश देने लगते थे क्योंकि उन्हें पता था की ये कही न कही अपना समय बर्बाद ही कर रहा होगा उन्हें उसके भविष्य की चिंता भी थी।

दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?

सरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में यह परिवर्तन आया कि वह स्वच्छंद और घमंडी हो गया। वह यह सोचने लगा कि अब पढ़े या न पढ़े, वह पास तो हो ही जाएगा। वह बड़े भाई की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाकर अपना अधिक समय खेलकूद में लगाने लगा। 

बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?

बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में 5 साल बड़े थे। वे नवीं कक्षा में पढ़ते थे।

बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?

बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कभी कापी पर वे कभी किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों के चित्र बनाते थे। कभी-कभी वे एक शब्द या वाक्य को अनेक बार लिख डालते, कभी एक शेर-शायरी की बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द रचना करते, जो निरर्थक होती, कभी किसी आदमी को चेहरा बनाते।

छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?

-छोटे भाई ने अधिक मन लगाकर पढ़ने का निश्चय कर टाइम-टेबिल बनाया । उसने निश्चय किया कि वह अब बड़े भाई को शिकायत का कोई मौका नहीं देगा और हर विषय का कार्यक्रम 11:00 बजे तक बनाया गया।, जिसमें खेलकूद के लिए कोई स्थान नहीं था। पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय उसने यह सोचा कि टाइम-टेबिल बना लेना एक बात है और बनाए गए टाइम-टेबिल पर अमल करना दूसरी बात है। यह टाइम-टेबिल का पालन न कर पाया, क्योंकि मैदान की हरियाली, फुटबॉल की उछल-कूद, बॉलीबॉल की तेज़ी और फुरती उसे अज्ञात और अनिवार्य रूप से खींच ले जाती और वहाँ जाते ही वह सब कुछ भूल जाता।


एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?

एक दिन जब गुल्ली डंडा खेलने के बाद छोटे भाई बड़े भाई के सामने पहुँचें तो उनकी प्रतिक्रिया बहुत भयानक थी वह बहुत क्रोधित थे, उन्होने छोटे भाई को बहुत डाँटा| उन्होंने उसे पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा गुल्ली डंडा खेल की उन्होंने बहुत बुराई की उनके अनुसार यह खेल भविष्य के लिए लाभकारी नहीं है| अतः इसे खेल कर उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला| उन्होंने यह भी कहा कि अव्वल आने पर उसे घमंड हो गया है| उनके अनुसार घमंड तो रावण तक का भी नहीं रहा अभिमान का एक ना एक दिन अंत होता है| अत: छोटे भाई को चाहिए कि घमंड छोड़ कर पढ़ाई की ओर ध्यान दें, उसने उसकी सफलता को भी तुक्का बताया और आगे की पढ़ाई का भय दिखलाया। मोनिका यदि तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दोगी तो तुम्हारा सर्वनाश होना निश्चित है।

बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?

बड़े भाई की उम्र छोटे भाई से 5 वर्ष अधिक थी वह हॉस्टल में छोटे भाई के अभिभावक के रूप में थी| उन्हें भी खेलने पतंग उड़ाने तमाशा देखने का शौक था परंतु अगर ठीक रास्ते पर ना चलते तो भाई के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाते।बड़े भाई साहब बड़े होने के नाते यही चाहते और कोशिश करते थे कि वे जो कुछ भी करें, वह छोटे भाई के लिए एक उदाहरण का काम करे। उन्हें अपने नैतिक कर्तव्य का वोध था कि स्वयं अनुशासित रह कर ही वे भाई को अनुशासन में रख पाएँगे। इस आदर्श तथा गरिमामयी स्थिति को बनाए रखने और अपनी नैतिक कर्तव्य का बोध होने के कारण, उन्हें अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं।

बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों ?

बड़े भाई साहब छोटे भाई को दिन-रात पढ़ने तथा खेल-कूद में समय न गँवाने की सलाह देते थे। वे बड़ा होने के कारण उसे राह पर चलाना अपना कर्तव्य समझते थे। वह चाहते थे कि छोटा भाई हर दम पड़ता रहे और अच्छे अंको से पास होता रहे इसलिए मैं उसे हमेशा सलाह देते थे कि ज्यादा समय खेलकूद में ना बताएं अपना ध्यान पढ़ाई में लगाएं भी कहते थे कि अंग्रेजी विषय को पढ़ने के लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ती है यदि मेहनत नहीं करोगे तो उसी दर्जे में पड़े रहोगे।

छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?

छोटे भाई (लेखक) ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का अनुचित फ़ायदा उठाया, जिससे उसकी स्वच्छंदता बढ़ गई और उसने पढ़ना-लिखना बंद कर दिया। उसके मन में यह भावना बलवती हो गई कि वह पढ़े या न पढ़े परीक्षा में पास अवश्य हो जाएगा। इतना ही नहीं, उसने अपना सारा समय पतंगबाज़ी को ही भेंट कर दिया, उसे लगने लगा कि अब बड़े भाई का डर उस पर नहीं है और अब वह आजाद है और पास तो वह हो ही जाएगा उसे इस बात का विश्वास भी हो गया था। इस तरह से अपना सारा समय मौज मस्ती में बिताना शुरू कर दिया और आजादी से  खेल कूद में जाने लगा।

बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।

मेरे विचार में यह सच है कि अगर बड़े भाई की डाँट-फटकार छोटे भाई को न मिलती, तो वह कक्षा में कभी भी अव्वल नहीं आता। यद्यपि उसने बड़े भाई की नसीहत तथा लताड़ से कभी कोई सीख ग्रहण नहीं की, परंतु उसपर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव गहरा पड़ता था, क्योंकि छोटा भाई तो खे-प्रवृत्ति का था। बड़े भाई की डाँट-फटकार की ही भूमिका ने उसे कक्षा में प्रथम आने में सहायता की तथा उसकी चंचलता पर नियंत्रण रखा। मेरे विचार से बड़े भाई की डाँट-फटकार के कारण ही छोटा भाई कक्षा में अव्वल आया था अर्थात् बड़े भाई की डाँट-फटकार उसके लिए वरदान सिद्ध हुई। क्योंकि छोटा भाई अनुभवहीन था वह अपना भला बुरा नहीं समझ पाता था यदि बड़े भाई साहब उसे डांटते फटकारते नहीं तो वह जितना पढ़ता था उतना भी नहीं पढ़ पाता और अपना सारा समय खेलकूद में ही गवा देता उसे बड़े भाई की डांट का डर था  ।इसी कारण उसे शिक्षा की अहमियत समझ में आई और विषय की कठिनाई का पता चला और अनुशासित होने का लाभ भी समझ आया और वह कक्षा में अव्वल आया।

इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?

बड़े भाई साहब ने समूची शिक्षा प्रणाली पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि यह शिक्षा अंग्रेजी बोलने लिखने पढ़ने पर जोर देती है आए या ना आए पर उस पर बल दिया जाता है रटने की प्रणाली पर भी जोर है अर्थ समझ में आए या ना आए पर रटकर बच्चा विषय में पास हो जाता है साथ ही अलजबरा ज्योमेट्री निरंतर अभ्यास के बाद भी गलत हो जाती है अपने देश के इतिहास के साथ दूसरे देश के इतिहास को भी पढ़ना पड़ता है जो जरूरी नहीं है छोटे-छोटे विषयों पर लंबे चौड़े निबंध लिखना ऐसी शिक्षा जो लाभदायक कम हो और बहुत ज्यादा हो खीर नहीं होती है ऐसा उनका मानना था।

बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?

बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभव रूपी ज्ञान से आती है, जोकि जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए उन्होंने अम्मा, दादा व हेड मास्टर की मां के उदाहरण भी दिए कि वे पढ़े-लिखे ना होने पर भी हर समस्या का सामाधान आसानी से कर लेते है, उनके अनुसार पुस्तकीय ज्ञान से हर कक्षा पास करके अगली कक्षा में प्रवेश मिलता है, लेकिन यह पुस्तकीय ज्ञान अनुभव में उतारे बिना अधूरा है। दुनिया को देखने, परखने तथा बुजुर्गों के जीवन से हमें अनुभव रूपी ज्ञान को प्राप्त करना आवश्यक है, क्योंकि यह ज्ञान हर विपरीत परिस्थिति में भी समस्या का समाधान करने से सहायक होता है। इसलिए उनके अनुसार अनुभव पढ़ाई से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है, जिससे जीवन को परखा और सँवारा जाता है तथा जीवन को समझने की समझ आती है।

छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?

छोटे भाई को खेलना बहुत पसंद था वह हर समय खेलता रहता था बड़े भाई साहब इस बात पर उसे बहुत डांटते रहते थे उनके डर के कारण मैं थोड़ा बहुत पढ़ लेता था परंतु जब बहुत खेलने के बाद भी उसने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया तो उसे स्वयं पर अभिमान हो गया अब उसके मन से बड़े भाई का डर भी जाता रहा है बेखौफ होकर खेलने लगा एक दिन पतंग उड़ाते समय बड़े भाई साहब ने उसे पकड़ लिया उन्होंने उसे समझाया और अगली कक्षा की पढ़ाई की कठिनाइयों का एहसास भी दिलाया उन्होंने बताया कि वह कैसे उसके भविष्य के कारण अपने बचपन का गला घोट रहे हैं उनकी बातें सुनकर छोटे भाई की आंखें खुल गई उसे समझ में आ गया कि उसके अव्वल आने के पीछे बड़े भाई की प्रेरणा रही है इससे उसके मन में बड़े भाई के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई। साथ ही 

बड़े भाई साहब छोटे भाई को-

खेलकूद में समय न गॅवाकर पढ़ने की सलाह देते थे।

अभिमान न करने की सीख देते थे।

अपनी बात मानने की सलाह देते थे।

वे बड़ा होने के कारण ऐसा करना अपना कर्तव्य समझते थे। 

बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?

बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित

बड़ा भाई बड़ा ही परिश्रमी था। वह दिन-रात पढ़ाई में ही जुटा रहता था इसलिए खेल-कूद, क्रिकेट मैच आदि में उसकी कोई रुचि नहीं थी।वह बार-बार फेल होने के बावजूद पढ़ाई में लीन रहता था।

बड़ा भाई उपदेश की कला में बहुत माहिर है इसलिए वह अपने छोटे भाई को उपदेश ही देता रहता है, क्योंकि वह अपने छोटे भाई को एक नेक इंसान बनाना चाहता है।वह अनुशासनप्रिय है, सिद्धांतप्रिय है, आत्मनियंत्रण करना जानता है। वह आदर्शवादी बनकर छोटे भाई के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता है।बड़ा भाई अपने छोटे भाई से पाँच साल बड़ा है इसलिए वह अपने अनुभव रूपी ज्ञान को छोटे भाई को भी देता है।


बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है?

बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्त्वपूर्ण माना है। उनका मत था कि किताबी ज्ञान तो रट्टा मारने का नाम है। उसमें ऐसी-ऐसी बातें हैं जिनका जीवन से कुछ लेना-देना नहीं। इससे बुधि का विकास और जीवन की सही समझ विकसित नहीं हो पाती है। इसके विपरीत अनुभव से जीवन की सही समझ विकसित होती है। इसी अनुभव से जीवन के सुख-दुख से सरलता से पार पाया जाता है। घर का खर्च चलाना हो घर के प्रबंध करने हो या बीमारी का संकट हो, वहीं उम्र और अनुभव ही इनमें व्यक्ति की मदद करते हैं।

बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि-

1.छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।

2.भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।

3.भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।

4.भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।

1. छोटे भाई का मानना है कि बड़े भाई को उसे डाँटने-डपटने का पूरा अधिकार है क्योंकि वे उससे बड़े हैं। छोटे भाई की शालीनता व सभ्यता इसी में थी कि वह उनके आदेश को कानून की तरह माने अर्थात् पूरी सावधानी व सर्तकता से उनकी बात का पालन करे।

2. भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि मुझे जीवन का तुमसे अधिक अनुभव है। समझ किताबी ज्ञान से नहीं आती अपितु दुनिया के अनुभव से आती है। जिस प्रकार अम्मा व दादा पढ़े लिखे नहीं है, फिर भी उन्हें संसार का अनुभव हम से अधिक है। बड़े भाई ने कहा कि यदि मैं आज अस्वस्थ हो जाऊँ, तो तुम भली प्रकार मेरी देख-रेख नहीं कर सकते। यदि दादा हों, तो वे स्थिति को सँभाल लेंगे। तुम अपने हेडमास्टर को देखो, उनके पास अनेक डिग्रियाँ हैं। उनके घर का इंतजाम उनकी बूढ़ी माँ करती हैं। इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव था।

3. भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि मैं तुमको पतंग उड़ान की मनाहीं नहीं करता। सच तो यह कि पतंग उड़ाने की मेरी भी इच्छा होती है। बड़े भाई साहब बड़े होने के नाते अपनी भावनाओं को दवा जाते हैं। एक दिन भाई साहब के ऊपर से पतंग गुजरी, भाई साहब ने अपनी लंबाई का लाभ उठाया। वे उछलकर पतंग की डोर पकड़कर हॉस्टल की ओर दौड़कर आ रहे थे, छोटा भाई भी उनके पीछे-पीछे दौड़ रहा था। इन सभी बातों से यह सिद्ध होता है कि बड़े भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है, जो अनुकूल वातावरण पाकर उभर उठता है।

4. बड़े भाई साहब द्वारा छोटे भाई को यह समझानाबड़े भाई साहब द्वारा छोटे भाई को यह समझाना कि किताबी ज्ञान होना एक बात है और जीवन का अनुभव दूसरी बात। तुम पढ़ाई में परीक्षा पास करके मेरे पास आ गए हो, लेकिन यह याद रखो कि मैं तुमसे बड़ा हूँ और तुम मुझसे छोटे हो। मैं तुम्हें गलत रास्ते पर रखने के लिए थप्पड़ का डर दिखा सकता हूँ या थप्पड़ मार भी सकता हूँ अर्थात् तुम्हें डाँटने का हक मुझे है।

आशय स्पष्ट कीजिए।

इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।

इस पंक्ति का आशय है कि इम्तिहान में पास हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि इम्तिहान तो रटकर भी पास किया जा सकता है। केवल इम्तिहान पास करने से जीवन का अनुभव प्राप्त नहीं होता और बिना अनुभव के बुधि का विकास नहीं होता। वास्तविक ज्ञान तो बुधि का विकास है, जिससे व्यक्ति जीवन को सार्थक बना सकता है। यदि आप केवल हटकर इम्तिहान पास कर लेंगे तो आप उससे कुछ सीखेंगे नहीं आपका लक्ष्य केवल पास होना ही होगा आप अपने जीवन में उस अनुभव से जो आपने शिक्षा के माध्यम से लिए उसका उपयोग नहीं कर पाएंगे।


आशय स्पष्ट कीजिए।

फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार घुड़कियाँ खाकर भी खेलकूद का तिरस्कार न कर सकता था।

लेखक खेल-कूद, सैर-सपाटे और मटरगश्ती का बड़ा प्रेमी था। उसका बड़ा भाई इन सब बातों के लिए उसे खूब डाँटता-डपटता था। उसे घुड़कियाँ देता था, तिरस्कार करता था। परंतु फिर भी वह खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था। वह खेलों पर जान छिड़कता था। जिस प्रकार विविध संकटों में फँसकर भी मनुष्य मोहमाया में बँधा रहता है, उसी प्रकार लेखक डाँट-फटकार सहकर भी खेल-कूद के आकर्षण से बँधा रहता था। उदाहरण के लिए जैसे कहा जाता है कि चोर चोरी छोड़ सकता है लेकिन हेराफेरी नहीं छोड़ सकता उसी प्रकार लेखक खेलकूद और सैर सपाटे और मटरगश्ती को भी नहीं छोड़ सकता था क्योंकि वह उस वह उसकी उसका आधी हो गया था।

आशय स्पष्ट कीजिए।

बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने ?

इस पंक्ति का आशय है कि जिस प्रकार मकान को मजबूत तथा टिकाऊ बनाने के लिए उसकी नींव को गहरा तथा ठोस बनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार से जीवन की नींव को मजबूत बनाने के लिए शिक्षा रूपी भवन की नींव भी बहुत मज़बूत होनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना जीवन रूपी मकान पायदार नहीं बन सकता। बड़े भाई का भी विचार था कि यदि मकान की नींव ही कमजोर हो तो उस पर मंजिल खड़ी नहीं हो सकती यानी अगर पढ़ाई की शुरुआत आधार ठोस नहीं है तो आदमी आगे चलकर कुछ नहीं कर पाता पढ़ाई के साथ-साथ उसके लिए अनुभव भी बहुत जरूरी है।

आशय स्पष्ट कीजिए।


आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो बंद राति से आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्करण ग्रहण करने जा रही हो।

लेखक पतंग लूटने के लिए आकाश की ओर देखता हुआ दौड़ा जा रहा था। उसकी आँखें आकाश में उड़ने वाली पतंग रूपी यात्री की ओर थीं। अर्थात् उसे पतंग आकाश में उड़ने वाली दिव्य आत्मा जैसी मनोरम प्रतीत हो रही थी। वह आत्मा मानो मंद गति से झूमती हुई नीचे की ओर आ रही थी। आशय यह है कि कटी हुई पतंग धीरे-धीरे धरती की ओर गिर रही थी। लेखक को कटी पतंग इतनी अच्छी लग रही थी मानो वह कोई आत्मा हो जो स्वर्ग से मिल कर आई हो और बड़े भारी मन से किसी दूसरे के हाथों में आने के लिए धरती पर उतर रही हो।


निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-


नसीहत, रोष, आज़ादी, राजा, ताज्जुब

जिनके अर्थ समान होते हैं उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं।

शब्द – पर्यायवाच

1.नसीहत – शिक्षा, सीख, उपदेश, सबक


नसीहत का पर्यायवाची शिक्षा सीख उपदेश सबक क्योंकि शिक्षा सीख उपदेश और सबक इन तीनों का ही अर्थ एक ही निकल के आ रहा है 


2.रोष – क्रोध, गुस्सा, क्षोभ

क्रोध ,गुस्सा , क्षोभ,यह सभी रोष के पर्यायवाची हैं क्योंकि इन सभी शब्दों के अर्थ एक ही है जो रोष का है।


3.आज़ादी – स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, स्वाधीनता, 

आजादी स्वच्छता स्वतंत्रता स्वाधीनता इन सभी शब्दों के अर्थ एक ही होते हैं अतः यह आजादी के पर्यायवाची है।

राजा – नृप, महीप, नरेश, प्रजापालके

महीप ,नरेश, प्रजापालके, राजा ,इन सभी का अर्थ एक ही होता है अतः ये राजा शब्द के पर्यायवाची हैं।

ताज्जुब – आश्चर्य, विस्मय, हैरानी

ताज्जुब,आश्चर्य, विस्मीय, हैरानी इन सभी शब्दों का अर्थ एक ही होता है अतः यह शब्द ताज्जुब के पर्यायवाची हैं।


प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसीलिए इनकी कहानियाँ रोचक और प्रभावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणतः इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढ़िए-


1.मेरो जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। एक घंटा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था।


2.भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते, ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती। बड़े भाई साहब


3.वह जानलेवा टाइम-टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फजीहत का अवसर मिल जाता।


निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

सिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरागैरा नत्थू-खैरा।


1. सिर पर नंगी तलवार लटकाना- सीबीआई ने जांच शुरू करके सबके सिर पर नंगी तलवार लटका दी।

2. आड़े हाथों लेना - पुलिस ने चोर को आड़े हाथों ले लिया।

3. अंधे के हाथ बटेर लगना- कर्मचारी को जब रुपयों से भरा थैला मिला तो मानो अंधे के हाथ बटेर लग गई।

4. के चने चबाना - मजदूर दिन रात मेहनत करते हैं पैसे के लिए वह लोहे के चने चबाते हैं।

5. दांतों पसीना आना - राम की जिद के आगे उनके पिताजी के दांतो पसीना आ गया।

6. ऐरा - गैरा नत्थू खैरा - उस पार्टी में ऐरा गेरा नत्थू खैरा भी आ गया था।

 निम्नलिखित तद्भव तत्सम देशज आगत शब्द को दिए गए उदाहरण के आधार पर छांट कर लिखिए।

चेष्टा ,जन्मसिद्ध ,निपुण ,शक्ति बाण ,विद्वान ,आंख फोड़, पन्ना ,दाल भात ,जानलेवा ,पोजीशन जल्दबाजी ,पुख्ता ,मसलन ,स्पेशल, प्रातकाल अवहेलना ,,भाई साहब ,फटकार ,तमाशा , मसलन,टाइम टेबल ,स्कीम ,स्पेशल आदि।

=तत्सम शब्द वे होते हैं जो संस्कृत से जैसे कि तैसी ही हिंदी में स्वीकार कर दिए गए होते हैं

=तद्भव शब्द में होते हैं जिनका रूपांतरण कर कर हिंदी में स्वीकार किया जाता है

=देशज शब्द वह होते हैं जो किसी देश के द्वारा स्वयं से निर्मित किए जाते हैं उस देश के नागरिकों द्वारा

=अंग्रेजी या आगत शब्द भी होते हैं जो विदेश या किसी अन्य देश के प्रभाव से स्वीकार किए जाते हैं।


(तत्सम  )         ( तदभव  )      (देशज )  (आगत 


 

1. जन्मसिद्ध       आंख      दाल भात  पोजीशन

2. निपुण      .घुडकिया    जानलेवा   जल्दबाजी 

3. सूक्तिबाण        पन्ना     आंख फोड़ पुख्ता

4.विद्वान                            मेला         मसलन 

5.अधिपत्य।                      तमाशा      स्पेशल 

6.प्रातः काल।                      फटकार    स्कीम

7.अवहेलना।                भाई साहब    टाइमटेबल


नीचे दिए गए वाक्य में कौन सी क्रिया है सकर्मक या अकर्मक लिखिए।

क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-सकर्मक और अकर्मक

सकर्मक क्रिया- वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं;

जैसे- शीला ने सेब खाया।

मोहन पानी पी रहा है।

अकर्मक क्रिया- वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं;

जैसे- शीला हँसती है।

बच्चा रो रहा है।


1.उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया।

सकर्मक क्रिया उसे कहते हैं जिसमें कर्म की प्रधानता होती है अतः उपरोक्त वाक्य में ' हाथ पकड़ना' , यानी कर्म है तो इस प्रकार यह सकर्मक क्रिया है।

2.फिर चोरों-सा जीवन कटने लगा।

उपरोक्त वाक्य में कर्म अपेक्षित है जैसे ' चोरों सा जीवन ' अतः यह सकर्मक क्रिया है।

3.शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा।

उपरोक्त वाक्य में' हाल'' यानी कर्म अपेक्षित है अतः यह सकर्मक क्रिया है।

4.मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।

उपरोक्त वाक्य में ' सुनकर'' कर्म अपेक्षित है अतः यह सकर्मक क्रिया है।

5. समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो।

उपरोक्त वाक्य में' पाबंदी ' ' कर्म अपेक्षित है अतः यह सकर्मक क्रिया है।

मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।

उत्तर-उपरोक्त वाक्य में ' पीछे पीछे' दौड़ना कर्म अपेक्षित है अत:सकर्मक क्रिया है।


‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए-

विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार

प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में, पर बाद में" और अय का अर्थ होता है "चलने वाला", अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला। 

1.विचार – वैचारिक 

विचार+' इक '

2.नीति – नैतिक

नीति+' इक '

3.इतिहास – ऐतिहासिक

इतिहास+' इक '

4.प्रयोग – प्रायोगिक

प्रयोग+' इक '

5.संसार – सांसारिक

संसार+' इक '

6.अधिकार – आधिकारिक

अधिकार+' इक '

7.दिन – दैनिक

दिन+' इक '


 शिक्षा कोई रटत विद्या नहीं है इस विषय पर अपनी कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

शिक्षा कोई रटत विद्या नहीं है मैं इस बात से पूरी तरह से सहमत हूं क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य होता है एक व्यक्ति की सोच समझ उसके विचार उसके तर्क वितर्क करने की शक्ति को बढ़ाना सभ्य समाज का निर्माण करना ,समानता ,सहानुभूति समाज में समाजस्य बैठाने के तरीके आदि लेकिन यदि हम शिक्षा को केवल अच्छे नंबर लाने तक सीमित रखेंगे अव्वल आने तक सीमित रखेंगे तो शिक्षा का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।  शिक्षा व्यक्ति के संपूर्ण विकास में भी सहायक होती है , वह व्यक्ति को समाज में रहने के तरीके बताती, व्यवसाय आदि में सहायक , इसी कारण ये कोई रटने की चीज नही बल्कि समझने की वस्तु है।

क्या पढ़ाई लिखाई और खेलकूद एक साथ चल सकते हैं कक्षा में इस विषय पर वाद-विवाद आयोजित कीजिए।

 जी हां बिल्कुल 

पढ़ाई और खेलकूद दोनों एक साथ हो सकते हैं। खेलकूद करने का यह अर्थ नहीं है कि आप पढ़ाई लिखाई छोड़ दो और पढ़ाई लिखाई करने का यह अर्थ नहीं है कि आप खेलना छोड़ दो। खेलना एक शारीरिक व्यायाम है, जिसके माध्यम से बच्चे स्वस्थ रहते हैं। पढ़ाई-लिखाई मनुष्य के ज्ञान का विस्तार करती है और उसे जीविका के साधन देती है। पढ़ाई लिखाई और खेलकूद दोनों का अपना ही महत्व होता है जिस प्रकार पढ़ाई से व्यक्ति के मानसिक विकास होता है उसी प्रकार खेलने कूदने से बच्चे के शारीरिक विकास होता है और एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों विकास  होना अति आवश्यक है अक्सर देखा जाता है कि पेरेंट्स बच्चे को अच्छे अंक लाने के लिए  उन पर दबाव डालते हैं इतना ही नहीं उसके खेलने कूदने आदि चीजों को भी बंद कर दिया जाता है जिससे व्यक्ति का बचपन कहीं ना कहीं छूट  जाता है और आज हम देखते हैं आज के समय में हमारे देश में जो बच्चे खेलते हैं कोई स्पोर्ट्स में जाता है और देश का नाम भी रोशन कर रहे हैं, अत: हम कह सकते हैं कि खेलन और पढाई दोनो साथ - साथ चल सकते है।

क्या परीक्षा पास कर लेना है योग्यता का आधार है इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।


जी बिल्कुल नहीं परीक्षा केवल परीक्षा पास कर लेना है योगिता का आधार नहीं होता है परीक्षा हमारी शिक्षा का एक अभिन्न अंग होता है हमने  जितनी शिक्षा ग्रहण की है उसका आंकलन करने का एक माध्यम होती है यह हमारी योग्यता निर्धारित नहीं कर सकती है।

परीक्षा को पूर्ण रूप से योग्यता आंकने का आधार बनाना अनुचित है। परीक्षा के लिए विद्यार्थी सिर्फ पाठ को स्मरण करके लिख सकते हैं और उच्च अंक प्राप्त कर सकते हैं। पर अन्य प्रकार की योग्यता जो जीवन के भिन्न पहलुओं के लिए आवश्यक है, से अपरिचित रह सकते हैं। ऐसे बहुत से बच्चे होते हैं जिन्हें अनुभव बहुत होता है उन्होने जो शिक्षा ग्रहण की है, उससे उन्हें बहुत अनुभव होता ,बहुत ज्ञान होता लेकिन वह परीक्षा में उसे लिख नहीं पाते ,परीक्षा प्राप्त करना योग्यता का आधार नहीं हो सकता।