Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Kshitij's Chapter 15 "Stri Shiksha Virodhi Kutarkon Ka Khandan". This guide is designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?
महावीरप्रसाद दिवेदी जी स्त्री-शिक्षा के समर्थक थे। वे सदैव ही लोगों को इसके प्रति जागरूक करने का प्रयास किया करते थे। कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने अनेक तर्कों के द्वारा उनके विचारों का खंडन कुछ इस प्रकार किया है -
क) प्राचीन काल में भी स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण कर सकती थीं। सीता, शकुंतला, रुकमणी, आदि ऐसी अनेक महिलाएँ इसका उदाहरण हैं। वेदों, पुराणों में भी इसका प्रमाण देखने को मिलता है।
ख) प्राचीन युग में अनेक पदों की रचना भी स्त्रियों ने की है।
ग) यदि गृह कलह स्त्रियों की शिक्षा का ही परिणाम है, तो मर्दों की शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगाना ही चाहिए। क्योंकि चोरी, डकैती, रिश्वत लेना, हत्या जैसे दंडनीय अपराध भी मर्दों की शिक्षा के ही परिणाम हैं। लोगों को जागरूक करते हुए उन्होंने बताया कि स्त्रियों ने भी शास्त्र लिखे हैं और उनके तर्क सत्य पर आधारित थे।
'स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं। कुतकवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है. अपने शब्दों में लिखिए।
महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के अनुसार, स्त्री-शिक्षा का विरोध करने वाले मूर्ख है क्योंकि स्त्री के प्रति ऐसी सोच रखने वाले लोग किसी समाज में खड़े होने लायक नहीं होते हैं। स्त्रियों की शिक्षा से अनर्थ होने की बात पर द्विवेदी जी ने इसका कड़ा विरोध किया है। उन्होंने स्त्री शिक्षा को समाज की उन्नति के लिए बहुत ज़रूरी माना है। उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि यदि स्त्री शिक्षा से अनर्थ होता है तो पुरुषों द्वारा किए गए अनर्थ भी उसी शिक्षा के ही परिणाम होने चाहिए। जैसे - चोरी करना, डाका डालना, हत्या करना, घूस लेना आदि। इन सभी गलत कामों का कारण शिक्षा नहीं है, बल्कि ये मानव प्रकृति पर आधारित हैं। अत: हमें स्त्री शिक्षा का समर्थन करना ही चाहिए।
द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है । जैसे 'यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़ती, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।' आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित कुछ व्यंग्य जो द्विवेदी जी द्वारा दिए गए हैं-
क) स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट ! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को बिना पढ़ा-लिखा हुआ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
ख) स्त्रियों के द्वारा किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों के द्वारा किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए।
ग) "आर्य पुत्र, शाबाश! बहुत अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!' "
घ ) अत्रि की पत्नी पत्नी धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटो भर पांडित्य प्रकट करें, गार्गी बड़े बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे! गज़ब! इससे ज्यादा भयंकर बात और क्या हो सकेगी!
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है-पाठ के
स्पष्ट कीजिए।
पुराने ज़माने की स्त्रियों द्वारा प्राकृत में बोलना उनके बिना पढ़े लिखे होने का प्रमाण नहीं है। जिस तरह आज हिंदी जन साधारण की भाषा है। यदि हिंदी बोलना और लिखना अनपढ़ और अशिक्षित होने का प्रमाण नहीं है तो उस समय प्राकृत बोलने वाले भी अनपढ़ या गँवार नहीं हो सकते हैं। यदि ऐसा ही होता तो बौद्धों और जैनों के हज़ारों ग्रंथ प्राकृत में क्यों ही लिखे जाते? इसका एकमात्र कारण यही है कि प्राकृत उस समय की सर्वसाधारण एवं जनसुलभ की भाषा थी। अत: उस समय की स्त्रियों का प्राकृत भाषा में बोलना उनके अनपढ़ होने का सबूत नहीं है।
परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हो- तर्क सहित उत्तर दीजिए।
स्त्री तथा पुरुष दोनों ही एक समान हैं। समाज की उन्नति के लिए स्त्री और पुरुष दोनों का ही सहयोग काफ़ी ज़रुरी है। ऐसे में स्त्रियों का महत्व कम समझना बिल्कुल गलत है, इसे रोकना ही चाहिए। जहाँ तक परंपरा के प्रश्न की बात है, परंपराओं का स्वरुप पहले से काफी बदल गया है और बदल भी रहा है। समाज में स्त्री और पुरुष दोनों के लिए ही समान परंपराएं एवं व्यवस्था होनी चाहिए । देश के विकास के लिए यह अत्यंत जरूरी है कि स्त्रियां भी पुरुष के समान खड़ी रहें और पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें । अत: स्त्री तथा पुरुष की असमानता की परंपरा को भी बदलना ज़रुरी है।
तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
प्राचीन भारत और वर्तमान भारत के शिक्षा प्रणाली बहुत ज्यादा ही अंतर आ चुका है। पहले की शिक्षा में जहाँ जीवन-मूल्यों की शिक्षा पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता था, वहीं आज के समय में व्यवसायिक तथा व्यावहारिक शिक्षा पर ज़्यादा बल दिया जाता है। पहले शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल में रहना आवश्यक था। परन्तु आज शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय बन चुके हैं। पहले शिक्षा वर्ग और जाति के हिसाब से दी जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं है। लेकिन आज किसी भी जाति के तथा वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।अब सभी को समान रूप से शिक्षा पाने का अधिकार है । अब हर किसी को शिक्षा लेने का अधिकार है । आज के समय में चाहे व्यक्ति विदेश में जाकर भी अगर पढ़ाई करना चाहता है तो उसको पूरी तरह यह अधिकार है कि वह विदेश में जाकर भी पढ़ाई कर सकता है ।
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने निबंध के माध्यम से अपनी सोच को व्यक्त करने का प्रयास किया है। उस समय समाज में स्त्री की शिक्षा पर प्रतिबंध था। उन्होंने स्त्री शिक्षा के महत्व को समाज के सामने रखा और शिक्षा को स्त्रियों तक पहुंचाने का प्रयास किया। आज समाज में, स्त्रियों में बहुत बदलाव आया है। आज की स्त्रियाँ पुरुषों के समान हैं। इससे द्विवेदी जी की दूरगामी सोच का प्रमाण मिलता है। स्त्रियों की शिक्षा को लेकर उनकी सोच खुली थी। वे स्त्रियों को समाज की उन्नति के लिए महत्वपूर्ण मानते थे। उनका मानना यह भी था कि स्त्रियों को पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए । द्विवेदी जी ने पुरुषों के के समान स्त्रियों के लिए भी पुरुषों के जैसे कानून रखने की मांग की है ।
द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की भाषा शैली :
१. महावीरप्रसाद द्विवेदी जी ने अपने अथक प्रयासों से हिंदी को परिष्कृत करते हुए हिंदी को सुंदर रूप प्रदान किया है।
२. उन्होंने अपने लेखनी में खड़ी हिंदी और तत्सम शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है ।
३. उनकी लिखने की शैली इतनी प्रभावी थी कि पाठकों के ह्रदय को भेद जाती है।
४. इन्होंने व्याकरण तथा वर्तनी की अशुद्धियों पर विशेष ध्यान दिया है।
५. द्विवेदी जी ने व्यंग्यात्मक शैली का भी प्रयोग किया है।
निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हो -
चाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल
क ) चाल
१. (चालाकी) रितिका को पुरस्कार देना,उसकी चाल है।
२. (चलना) अपनी चाल को तेज़ कीजिए ।
ख) दल
१.) (टोली) उस दल का नेता बहुत बुरे स्वभाव वाला है।
२) (पंखुड़ियाँ) फूल का दल बहुत प्यारा है।
ग) पत्र
१. (चिट्ठी) मैंने अपने बहन को एक चिट्ठी लिखी।
२) (पत्ती) पहले के समय में भोजपत्र पर लिखा जाता था।
घ) हरा
१. (रंग) पेड़ का रंग हरा होता है।
२) (ताज़ा) इतनी गर्मी होने के बाद भी नदी का पानी अभी भी हरा-भरा है।
ङ) पर
१.) (पंख) तुमने उस चिड़िया के पंख क्यों काट दिए।
२) (लेकिन) तुम उसे नहीं जानते पर मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूँ।
च)फल
१) (खाने वाला फल) इस पेड़ के फल बहुत ज़्यादा मीठे हैं।
२) (परिणाम) उसके कार्य का फल बहुत अच्छा था।
छ ) कुल
१) (वंश) ऊँचें कुल में जन्म लेने से कोई ऊँचा नहीं हो जाता है।
२) (पूरा) हमारे भारत की कुल आबादी कितनी होगी?