Welcome to our comprehensive Guide on Class 10 Hindi Kshitij's Chapter 1 "Surdas". This guide is designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

गोपियों के द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में वक्रोक्ति निहित है। गोपियाँ दिखने में तो प्रशंसा कर रही है, किंतु वास्तव में कुछ और ही कहना चाह रही हैं। गोपियाँ उद्धव को भाग्यवान कहते हुए व्यंग्य कसती है कि श्री कृष्ण के सानिध्य में रहते हुए भी और कृष्ण के साथ रहते हुए भी वे श्री कृष्ण के प्रेम से सर्वथा मुक्त रहें हैं। वे किस तरह श्री कृष्ण के स्नेह व प्रेम के बंधन में अभी तक नहीं बंधे हैं?, श्री कृष्ण के प्रति कैसे उनके हृदय में अभी तक अनुराग उत्पन्न नहीं हुआ है? अर्थात् श्री कृष्ण के साथ कोई व्यक्ति एक क्षण भी व्यतीत कर ले तो वह कृष्णमय हो जाता है कृष्ण के प्रेम में लीन हो जाता है परन्तु ये उद्धव तो उनसे तनिक भी प्रभावित नहीं हुए हैं, प्रेम में डूबना तो अलग बात है।

उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?

गोपियाँ उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्न वस्तुओं से करती हैं और वे उद्धव को उलाहने देती हुई कहती हैं कि तुम कृष्ण के साथ रहकर भी उनकी तरह नहीं हो पाए हो- 

क) गोपी उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते की समान करती है जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहकर भी गिला नहीं होता है, उसी प्रकार तुम भी कृष्ण के साथ रहकर उनकी तरह नहीं हो पाए हो। 

ख) गोपियाँ उद्धव के व्यवहार की तुलना तेल में डूबी गागर से करती है और कहती हैं जिस प्रकार तेल में डूबी का गागर तेल के कारण पानी से गीली नहीं होती है उसी प्रकार तुम भी कृष्ण के रंग में अभी नहीं रंग पाए हो इन्हीं वस्तुओं के सहारे गोपियाँ उद्धव की तुलना करती है ।

गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?

गोपियों ने कई उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं -

क) गोपियाँ कहती हैं कि उनकी प्रेम भावना उनके मन में ही रह गई है और वे ना तो कृष्ण से अपनी बात कह पाती हैं और ना किसी और से वह अपनी बात को कह पाती हैं । 

ख) गोपियाँ कृष्ण के आने के इंतजार में ही जी रही थी, किंतु जब कृष्ण खुद ना आकर अपना योग संदेश उद्धव के हाथ भिजवा देते हैं, यह बात जानकर गोपियों की विरह व्यथा और भी अधिक बढ़ जाती है ।

ग) गोपियां कृष्ण से रक्षा की गुहार लगाना चाहती थी, वे कृष्ण से प्रेम का संदेश पाना चाह रही थी परंतु वहां से योग संदेश की धारा को आया देखकर उनका दिल टूट जाता है । 

घ ) वे श्री कृष्ण से सदैव यही अपेक्षा करती थी कि कृष्ण उनकी प्रेम की मर्यादा को बनाकर रखेंगे। वह हमेशा उन्हें प्रेम के बदले प्रेम ही देंगे परंतु उन्होंने योग संदेश भेजकर प्रेम की वह सारी मर्यादाएँ तोड़ डाली|

उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहारिन में घी का काम कैसे किया?

जब श्री कृष्ण मथुरा चले जाते हैं तो उनके जाने के बाद गोपियाँ विरह की अग्नि में जलने लगती हैं। वे हमेशा श्री कृष्ण के प्रेम संदेश और उनके आने के लिए प्रतीक्षा में ही बैठी रहती हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण ने उन्हें उद्धव के हाथ योग की साधना का संदेश भेजा दिया है जिससे गोपियों की विरह व्यथा कम होने के बजाय और अधिक बढ़ जाती है। इस प्रकार उद्धव के द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया है।

'मरजादा न सही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

प्रेम की हमेशा यही मर्यादा होती है कि प्रेमी और प्रेमिका दोनों पूर्ण निष्ठा से अपने प्रेम को निभाएं । प्रेम की सच्ची भावनाओं को अच्छे से समझे और उसकी मर्यादा की रक्षा करें। गोपियों ने अपनी प्रेम को कभी भी किसी के सामने प्रकट नहीं किया था। वे शांत भाव से श्रीकृष्ण के लौटने की प्रतीक्षा सदैव करती रही थी। परंतु कोई भी उनके दुख को नहीं समझ पा रहा था। वह अपनी बातों पर चुप्पी लगाए हुए अपनी मर्यादाओं में लिपटी हुई इस वियोग को शांति से सहन कर रही थी कि वे श्री कृष्ण से प्रेम करती हैं। परंतु जब उद्धव श्री कृष्ण के हाथ भेजा हुआ योग साधना का संदेश लेकर आता है तब वह संदेश उनकी मर्यादा को छोड़कर उन्हें बोलने पर मजबूर कर देता है। अर्थात् जो बात सिर्फ वह जानती थी आज वह बातें सब को पता चल जाएंगी।

कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम की गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?

 कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के द्वारा व्यक्त किया है - 

 (1) उन्होंने स्वयं की तुलना चींटियों से और श्री कृष्ण की तुलना गुड़ से करी है। उनके अनुसार श्री कृष्ण उस गुड़ की तरह हैं जिस पर चींटियाँ हमेशा चिपकी रहती हैं। (गुर चाँटी ज्यौं पागी)

(2) उन्होंने खुद को हारिल पक्षी व श्री कृष्ण को लकड़ी की तरह बताया है, जिस तरह हारिल पक्षी लकड़ी को कभी नहीं छोड़ता है ,उसी तरह उन्होंने मन, क्रम, वचन से श्री कृष्ण की प्रेमरुपी लकड़ी को दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया है। (हमारैं हारिल की लकरी, मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी)

(3) वह श्री कृष्ण के प्रेम में रात-दिन, सोते-जागते, उठते-बैठते एवं खाते -पीते सिर्फ़ श्री कृष्ण का नाम ही रटती रहती हैं। (जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।)


गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?

गोपियों के अनुसार योग की शिक्षा उन्हीं लोगों को देनी चाहिए जिनकी इन्द्रियाँ व उनका मन उनके बस में नहीं होता है । जिस प्रकार से चक्री सदैव घूमती रहती है, उसी प्रकार उनका मन एक स्थान पर न रहकर सदैव भटकता ही रहता है। परन्तु गोपियों को योग की आवश्यकता है ही नहीं क्योंकि वह अपने मन व इन्द्रियों को श्री कृष्ण के प्रेम के रस में पूरी तरह डूबो चुकी हैं। वे इन सबको श्री कृष्ण के प्रेम में एकाग्र कर चुकी हैं। इसलिए उनको इस योग की शिक्षा की आवश्यकता बिल्कुल नहीं हैं।

प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें ।

प्रस्तुत पदों में योग-साधना के ज्ञान को बिल्कुल निरर्थक बताया गया है। यह ज्ञान गोपियों के अनुसार अव्यवाहरिक और अनुपयुक्त सिद्ध होता है। उनके अनुसार यह ज्ञान उनके लिए कड़वी ककड़ी के समान है जिसे निगलना बहुत ही मुश्किल है। सूरदास जी गोपियों के माध्यम से आगे कहते हैं कि ये एक बीमारी है। वो भी ऐसा रोग जिसके बारे में तो उन्होंने पहले कभी न सुना है और न देखा है। इसलिए उन्हें इस ज्ञान की ज़रूरत नहीं है। उन्हें योग का आश्रय तभी लेना पड़ेगा जब उनका चित्त एकाग्र नहीं होगा। परन्तु कृष्ण प्रेम में लीन होकर यह योग शिक्षा तो उनके लिए अनुपयोगी सिद्ध होती है। उनके अनुसार कृष्ण के प्रति एकाग्र भाव से भक्ति करने वाले को योग की ज़रूरत नहीं होती है।

गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?

गोपियों के अनुसार राजा के निम्न धर्म होने चाहिए ।

क ) राजा का सबसे पहला धर्म यह होना चाहिए कि वह अपनी प्रजा को अन्याय से बचाएं ।

ख ) राजा अपनी प्रजा को सताएं जाने से रोक सके । 

ग ) राजा अपनी प्रजा की पूरी तरह से और पूर्ण निष्ठा के साथ उनकी रक्षा करें । 

घ ) एक अच्छा राजा तभी अच्छा राजा कहलाता है जब वो अनीति का साथ ना देकर नीति का साथ देता हो अर्थात् जब राजा किसी गलत कार्य में ना पड़कर सदैव अच्छे कार्य के लिए ही प्रेरित होता हो, तभी वह राजा अच्छा राजा कहलाने के योग्य है ।

गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण मन वापस पा लेने की बात कहती है?

गोपियों को कृष्ण में बहुत से अनेक परिवर्तन दिखाई दिए थे जिसके कारण गोपियां अपना मन वापस लेने के बाद कहती हैं । उनके अनुसार श्री कृष्ण द्वारका जाने के बाद राजनीति के विद्वान हो गए हैं और उनके साथ राजनीति का खेल खेलने लगे हैं । उनके अनुसार श्री कृष्ण पहले से ही काफी चतुर थे और अब तो वे ग्रंथों को पढ़कर और भी ज्यादा चतुर हो गए हैं । द्वारका जाकर तो उनका मन और अधिक बढ़ गया है जिसके कारण वे गोपियों से मिलने के स्थान पर उन्हें योग की शिक्षा देने के लिए उद्धव के द्वारा अपना संदेश भेजते हैं। श्री कृष्ण के इस कदम से उनके हृदय को काफी पीड़ा की अनुभूति होती है और इसलिए वे अब श्रीकृष्ण से अपना अनुराग वापस लेने को कहती हैं ।

गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए ?

गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्भव को परास्त कर दिया, गोपियों के वाक्चातुर्य की विशेषताएँ इस प्रकार है -

(1) तानों द्वारा (उपालंभ के द्वारा) - गोपियाँ उद्धव को अपने तानों के जरिए चुप करा देती हैं। उद्धव के पास उनका कोई जवाब नहीं होता है। वे कृष्ण तक को उपालंभ दे डालती हैं। उदाहरण के लिए -

इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।

बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।

(2) तर्क क्षमता के आधार पर - गोपियों ने अपनी बात तर्क पूर्ण ढंग से कही है। वह जगह जगह पर तर्क देकर उद्धव को निरुत्तर कर देती हैं। उदाहरण के लिए -

"सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।"

सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।

यह तौ 'सूर' तिनहि लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।।

(3) व्यंग्यात्मकता - गोपियों में व्यंग्य करने की क्षमता अद्भुत है। वह अपने व्यंग्य बाणों के द्वारा उद्धव को घायल कर देती हैं। उनके द्वारा उद्धव को भाग्यवान बताना उसका उपहास उड़ाना था।

(4) तीखे प्रहारों के द्वारा - गोपियों ने तीखे प्रहारों के द्वारा उद्धव को प्रताड़ना दी है।

संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?

सूर के भ्रमरगीत की विशेषताएं निम्नलिखित हैं :

क ) सूरदास ने अपने भ्रमर गीतों में निर्गुण ब्रह्म का खंडन किया है ।

ख) भ्रमरगीत में गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम दर्शाया गया है ।

ग) भ्रमरगीत में उपालंभ की प्रधानता भी दिखाई गई है ।

घ) भ्रमरगीत में संगीतत्मकता का गुण भी विद्यमान है ।

ड ) भ्रमरगीत की भाषा ब्रजभाषा है । भ्रमरगीत में कोमलकांत पदावली का प्रयोग भी हुआ है । यह मधुर और सरस है ।

च ) भ्रमरगीत में गोपियों के द्वारा व्यंगात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है ।

गोपियों ने उद्भव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।

गोपियों ने उद्धव के सामने अनेक तरह के तर्क दिए हैं । हम भी अपने निम्नलिखित तर्क दे सकते हैं जैसे :

क) कृष्ण की प्रवृत्ति भवरों की समान है । कृष्ण एक जगह टिककर नहीं रह सकते हैं । वह हमेशा प्रेम को पाने के लिए अलग-अलग डाली पर भटकते रहते हैं ।

ख ) उद्धव पर कृष्ण का प्रभाव तो नहीं पड़ता है परंतु लगता यह है कि कृषि पर उद्धव के योग साधना का प्रभाव पूरी तरह ही पड़ गया है।

ग) निर्गुण अर्थात् जिस ब्रह्मा के पास गुण नहीं है, उसकी उपासना हमें नहीं करनी चाहिए ।

घ ) गोपियाँ-ऊधौ! यदि यह योग-संदेश इतना ही प्रभावशाली है तो कृष्ण इसे कुब्जा को क्यों नहीं देते? तुम यों करो, यह योग कुब्जा को जाकर दो। और बताओ! जिसकी जुबान पर मीठी खाँड का स्वाद चढ़ गया हो, वह योग रूपी निबौरी क्यों खाएगा? फिर यह भी तो सोचो कि योग-मार्ग कठिन है। इसमें कठिन साधना करनी पड़ती है। हम गोपियाँ कोमल शरीर वाली और मधुर मन वाली हैं। हमसे यह कठोर साधना कैसे हो पाएगी। हमारे लिए यह मार्ग असंभव है।

उद्धव ज्ञानी थे नीति की बातें जानते थे गोपियों के पास ऐसी कौन सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?

उद्धव ज्ञानी थे, नीति की काफ़ी अच्छे तरीके से बातें जानते थे, परंतु उन्हें व्यावहारिकता का अनुभव बिल्कुल नहीं था। गोपियों ने यह अच्छे से जान लिया था कि उद्धव को श्रीकृष्ण से अभी तक अनुराग नहीं हो सका, इसलिए उन्होंने कहा था, ‘प्रीति नदी में पाउँ न बोरयो’। उद्धव के पास इसका कोई जवाब न था। इससे गोपियों का वाक्चातुर्य मुखरित हो उठा। गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति असीम, अथाह लगाव रखती थी। जबकि उद्धव को प्रेम जैसी भावना से कोई मतलब कभी नहीं था। गोपियों के पास श्री कृष्ण के प्रति सच्चे प्रेम तथा भक्ति की असीम शक्ति थी, जिस कारण उन्होंने उद्धव जैसे ज्ञानी तथा नीतिज्ञ को भी अपने वाक्चातुर्य से परास्त कर दिया था। उद्धव को इस स्थिति में चुप देखकर उनकी वाक्चातुर्य और भी ज़्यादा मुखर हो उठी। 

गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पर आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर आता है, स्पष्ट कीजिए।

गोपियों ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि श्री कृष्ण ने सीधी सरल बातें ना करके रहस्यात्मक ढंग से उद्धव के माध्यम से अपनी बातों को गोपियों तक पहुंचाया है। गोपियों का यह कथन कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं, वह कहीं न कहीं आज की भ्रष्ट राजनीति को परिभाषित कर रहा है और करता है। इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आ रहा है। जिस तरह से श्री कृष्ण ने अपनी बात सीधे-सीधे न कहकर घूमा-फिराकर उद्धव के माध्यम से गोपियों के सामने रखी है, उसी तरह आज के राजनीतिज्ञ भी अपनी बात को घूमा-फिराकर जनता के सामने रखते हैं। दूसरी तरफ यहाँ गोपियों ने राजनीति शब्द को व्यंग्य के रूप में कहा है। आज के समय में भी राजनीति शब्द का अर्थ व्यंग्य के रूप में ही लिया जाता है।