Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Kshitij's Chapter 17 "Sanskriti". These solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!
लेखक की दृष्टि में 'सभ्यता' और 'संस्कृति' की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
सभ्यता और संस्कृति जैसे शब्दों की समझ सही से ना होने के कारण लोग इन शब्दों का अर्थ अपने-अपने तरीकों से लगा लेते हैं। किसी के मत में इनका अर्थ अलग है तो किसी के मत में अलग। लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति शब्दों का प्रयोग बहुत ही मनमाने ढंग से किया जाता है। इनके साथ अनेक विशेषण लग जाते हैं; जैसे - भौतिक-सभ्यता और आध्यात्मिक-सभ्यता इन विशेषणों के कारण शब्दों का अर्थ बदल जाता है। और इन विशेषणों के कारण इन शब्दों की समझ और गड़बड़ हो जाती है। ऐसी स्थिति में लोग इनका अर्थ अपने-अपने विवेक से लगा लेते हैं। इसी कारण से लेखक भी इस विषय पर अपना एक स्थायी मत नहीं रख पाएं हैं।
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
आग की खोज को एक बहुत बड़ी खोज इसलिए माना जाता है क्योंकि आग ने मानव जाति की जीवन शैली को पूर्ण तरीके से परिवर्तित कर दिया है । मनुष्य की जीवन शैली और खाने पानी में बहुत बदलाव किया ।आग की खोज का मुख्य कारण रौशनी की ज़रुरत तथा पेट की भूख मिटाना रहा होगा। अंधेरे में जब मनुष्य कुछ नहीं देख पाता था तब उसे रौशनी की ज़रूरत महसूस हुई होगी, कच्चा माँस का स्वाद न लगने के कारण उसे पका कर खाने की इच्छा से आग का आविष्कार हुआ होगा। और इस खोज के पीछे स्वादिष्ट भोजन व सरदी से मुक्ति और जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा करना भी आदि प्रेरणास्रोत रहे हैं ।
वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है?
वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' उसे कहा जा सकता है जो अपने दिमाग व योग्यता के बल पर कुछ नया करने की क्षमता रखता हो ।वह अपने विवेक और बुद्धि से किसी नए तथ्य का दर्शन करता है और समाज को अत्यंत उपयोगी आविष्कार देकर उसकी सभ्यता का मार्ग प्रशस्त करते रहने का प्रयास करता है। जिस व्यक्ति में ऐसी बुद्धि तथा योग्यता जितनी अधिक मात्रा में होगी वह व्यक्ति उतना ही अधिक संस्कृत होगा। जैसे- न्यूटन, न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत का मानव था। आज भौतिक विज्ञान के विद्यार्थियों को इस विषय पर न्यूटन से अधिक सभ्य कहा जा सकता है , परन्तु संस्कृत नहीं कहा जा सकता। ऐसे व्यक्तियों की खोज से समाज में समृद्धि होती है। और इस तरह के व्यक्ति के प्रति हमें हमेशा कृतज्ञ रहना चाहिए ।
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि न्यूटन एक संस्कृत व्यक्ति थे और उन्होंने अपने दिमाग और क्षमता से समाज के सामने एक नया तथ्य प्रस्तुत किया था । न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत संबंधी नए तथ्य का दर्शन किया और इस सिद्धांत की खोज की, जो उनसे पहले किसी ने नहीं किया। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन नहीं कहला सकते हैं क्योंकि उन लोगों ने कोई नया तथ्य नहीं खोजा है, बल्कि वे लोग बस न्यूटन की बातों को ही दोहराते रहते हैं । संस्कृत मानव वही कहलाया जाएगा जो कुछ नया करेगा किसी सिद्धांत को और अधिक परिमार्जित करने वाले को संस्कृत मानव नहीं कह सकते हैं क्योंकि वह उसके द्वारा किए गए काम को ही आगे बढ़ा रहा है।
किन महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
सुई-धागे का आविष्कार लोगों ने अपनी ज़रूरतों के अनुसार किया है। पहले मनुष्य नंगा रहता था। गर्मी-सर्दी से बचने के लिए सुई-धागे का आविष्कार किया होगा। अपने शरीर को सजाने के लिए भी लोग ऐसी चीज की तलाश में होंगे जो दो चीजों को जोड़ सकें। मनुष्य द्वारा सुंदर दिखने की चाह में अपने शरीर को सजाने के लिए क्योंकि इससे पूर्व वह छाल एवं पेड़ के पत्तों से यह कार्य किया करता था।प्राचीन काल में लोगों के पास मौसम की मार को झेलने के लिए कपड़े नहीं हुआ करते थे फिर धीरे-धीरे लोग खुद को सुरक्षित रखने के लिए कपड़े की तलाश में घूमने लगे । और फिर उन कपड़ों को जोड़ने के लिए लोगों को सुई धागे जैसी चीजों की आवश्यकता महसूस हुई और तभी से सुई धागे का आविष्कार हुआ है ।
" मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।" किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब-
क ) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई।
मानव संस्कृति को विभाजित करने की अनेक तरह से चेष्टा की गई ।समय-समय ऐसी कुचेष्टाएँ की जाती है जो मानव-संस्कृति को धर्म और संप्रदाय में बाँटने का प्रयास करती है। कुछ असामाजिक तत्व और धर्म के तथाकथित ठेकेदारों के द्वारा मानव संस्कृति को विभाजित करने के लिए अनेक तरह की चेष्टा की गई जैसे गौ हत्या हिंदू मुस्लिम जैसे बेवजह के मुद्दों पर लोगों को एक दूसरे के खिलाफ लड़ाया जाना । इन लोगों ने अपने भाषणों द्वारा दोनों वर्गों को भड़काने का प्रयास किया है। इनके त्योहारों पर भी एक-दूसरे को उकसाकर धार्मिक भावनाएँ भड़काने का प्रयास किया जाता है। वे मस्जिद के सामने बाजा बजाने और ताजिए के निकलते समय पीपल की डाल कटने पर संस्कृति खतरे में पड़ने की बात कहकर मानव संस्कृति को विभाजित करने का प्रयास करते रहे हैं। लेकिन समाज को पूरी तरीके से बांटने में वे लोग असफल रहे हैं ।
जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
मानव-संस्कृति के मूल में कल्याण की भावना निहित है। भारतीय संस्कृति में और अकल्याणकारी तत्वों के लिए कोई विशिष्ट स्थान नही है । जिसका लोग समय के अनुसार अपने कार्यों से इसका प्रमाण देते हुए आए हैं । सिद्धार्थ, महात्मा गांधी जी राजा राममोहन राय जैसे महानुभाव व्यक्ति इत्यादि इसके उदाहरण हैं । इन लोगों ने हमेशा निस्वार्थ भाव से देश और समाज के हर वर्ग के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है और उनकी सेवा की है । कार्ल मार्क्स ने आजीवन मजदूरों के हित के लिए संघर्ष किया। सिद्धार्थ मानव को सुखी देखने के लिए राजा के सारे सुख छोड़कर ज्ञान प्राप्ति हेतु जंगल की ओर चले गए। इन्होंने भेदभाव और ऊंच-नीच जैसे तत्वों को मिटाने के लिए भी अनेक सफल प्रयास किए हैं ।
आशय स्पष्ट कीजिए- (क) मानव की जो योग्यता उससे आत्म विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति ?
संस्कृति का अर्थ केवल आविष्कार करना ही नहीं होता है। यह आविष्कार जब मानव कल्याण की भावना से जुड़ जाता है, तो हम उसे संस्कृति कहते हैं। संस्कृति का कल्याण की भावना से गहरा नाता होता है । इसे कल्याण से अलग कर नहीं देखा जा सकता है। यह भावना मनुष्य को मानवता हेतु उपयोगी तथ्यों का आविष्कार करने के लिए प्रेरित करती रहती है। जब किसी संस्कृति के भीतर कल्याण की भावना नहीं रहकर दूसरों को नुकसान पहुंचाने की भावना निहित होती है तब वह संस्कृति असंस्कृति का रूप ले लेती है । अर्थात् मानव कल्याण के विषयों को छोड़कर मानव विनाश के लिए किए गए अनेक आविष्कार या इसकी योग्यता ही और संस्कृति कहलाती है । लेखक के अनुसार मानव कल्याण का भाव ही संस्कृति है ।
लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं,लिखिए ।
जैसा कि लेखक ने कहा है कि आज सभ्यता और संस्कृति का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाने लगा है। मनुष्य के रहन-सहन का तरीका सभ्यता के अंतर्गत आ जाता है। संस्कृति का परिणाम सभ्यता कहलाता है। हमारे - खान-पान का ढंग, जीने-मरने का तरीका, लड़ने-झगड़ने का ढंग, पहनने-ओढ़ने की कला आवागमन के साधन और ढंग सब हमारी सभ्यता की ही वस्तु है। यह मनुष्य की बाहरी वस्तु है। संस्कृति जीवन का चिंतन और कलात्मक सृजन है, जो जीवन को समृद्ध बनाती है।संस्कृति का संबंध मनुष्य के भीतरी (मन) से है। सभ्यता और संस्कृति दोनों एक-दूसरे पर अन्योन्याश्रित है । किसी एक के अभाव में दूसरे को परिभाषित करना नामुमकिन है । इन दोनों का अर्थ और परिभाषा व्यक्ति के दृष्टिकोण के अनुसार परिवर्तित हो जाती है । सभ्यता को संस्कृति का विकसित रुप भी कह सकते हैं।
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए ।
समस्त पद विग्रह समास
क) गलत- सलत = गलत ही गलत (द्वंद समास)
ख) महामानव = महान है जो मानव (कर्मधारय समास)
ग) हिंदू-मुस्लिम= हिंदू और मुस्लिम (द्वंद समास)
घ) सप्तर्षि= सात ऋषियों का समूह ( द्विगु समास)
ङ) आत्म - विनाश= आत्मा का विनाश (तत्पुरुष समास)
च ) पददलित = पद से दलित (तत्पुरुष समास)
छ) यथोचित = जो उचित हो ( अव्ययीभाव समास)
ज) सुलोचना = सुंदर लोचन है जिसके (कर्मधारय समास)