Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Kshitij's Chapter 16 "Naubatkhane Mein Ibadat". These solutions are designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किए जाने का मुख्य कारण है कि यहाँ प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म हुआ था। वे एक मशुर शहनाईवादक थे। उनकी प्रसिद्धि दुनिया भर में थी। शहनाई की रीड जिस नरकट से बनती है वह डुमराँव के पास सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इस रीड के बिना शहनाई बजना मुश्किल है। इसलिए डुमराँव को याद किया जाता है। दुनिया में शहनाई के लिए डुमराँव की अलग पहचान है। इसी कारण शहनाई की दुनिया में डुमराव का महत्व इतना अधिक है और उसे याद किया जाता है।
शहनाई की ध्वनि बहुत ही मंगलदाई मानी जाती है। इसलिए इसका वादन सभी मांगलिक अवसरों पर किया जाता हैं बिस्मिल्ला खां ने सामान्य मांगलिक कार्यों से लेकर अनेक मांगलिक कार्य में अस्सी बरस से भी अधिक समय तक शहनाई बजाते रहे हैं साथ ही अपने शहनाई बजाने की अलौकिक कला से भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रुप में जाने पहचाने गए उन्होंने शहनाई को भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाया। उनकी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया ने माना है।
जिन वाद्य यंत्रों में सुराख होते हैं उसे फुक मारकर बजाया जाता है, सुषिरवाद्य कहलाते हैं, जैसे शहनाई की ध्वनि सबसे मधुर और कर्ण -प्रिय होने के कारण इसे सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई है इसको शुभ अवसरों और त्योहारों पर बजाया जाता है, इसके साथ इसे सभी जो मांगलिक कार्य होते हैं उनमें भी शहनाई को बजाया जाता है और सभी शुभ अवसर पर इसका एक अलग ही महत्व होता है शहनाई हमारी एक पारंपरिक धरोहर भी है।भारत में शादियों के मौके पर शहनाई बजाना एक जरूरत मानी जाती है। भारत में शहनाई यों का इतना महत्व है कि उसके बिना शादी अधूरी सी लगती है।
प्रस्तुत पंक्ति में लेखक यह कहना चाहते हैं कि दुनिया बिस्मिल्लाहखां को उनकी लूंगी के कारण नहीं बल्कि उनकी शहनाई बजाने की कला के कारण जानती है शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को फिर भी यह लगता था कि वह अभी शुरु को बरतने के मामले में पूर्ण नहीं हो पाए हैं उनका मानना था कि यदि ऊपर वाले ने उन्हें शहनाई बजाने की कला से नवाजा ना होता तो टूटे-फूटे शुरु को जोड़ना असंभव है पर यदि कपड़े कटे-फटे हो तो वह कैसे भी सिल ही जाएंगे। इस पंक्ति में हम यह भी देख सकते हैं कि बिस्मिल्लाह खां को केवल उनके वस्त्र के लिए नहीं बल्कि उनके सुरो की कला के लिए याद किया जाता है। न की उनकी लूंगी से पहचाना जाता है और इसका उन्हें जरा भी वह घमंड नहीं है बल्कि उन्हे यह लगता है की उनमें अभी भी कुछ कमी है।
प्रस्तुत पंक्ति में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान खुदा से दुआ मांगते हैं कि ए खुदा तू मुझे ऐसा मार्मिक सुर बक्श जिसे मैं गाउ तो श्रोताओं की आंखों से आनंद के आंसू बह आय वह मुझे सुने तो आनंद से भर जाए वह अपने दुख दर्द भूल कर मेरे सुर में खो जाए और आनंद विभोर हो जाय। तात्पर्य बिस्मिल्लाह खान खुदा से अपने सुरो को और भी ज्यादा मार्मिक बनाने की इच्छा प्रकट कर रहे हैं और वह केवल यही चाहते हैं कि उनके सुरों के द्वारा लोग आनंद को प्राप्त कर सके जब भी लोग उनके स्वर सुने उनके सुरों को सुने तो वह आनंद में हो जाएं और उन्हें खुशी प्रदान हो सके दूसरों की खुशी के लिए अपनी शुरू को और भी मार्मिक बनाने की खुदा से मांग कर रहे हैं जिससे लोगों का कल्याण हो और लोगों उनके सुर के द्वारा अपना दुख भूल जाए और प्रसन्न रहें।
काशी में समय के साथ अन्य छोटी-मोटे परिवर्तन हुए जो प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को दुखी करते थे जैसे संगीत और साहित्य के प्रति लोगों में पहले जैसा मान सम्मान नहीं रहा हिंदू मुस्लिम हिंदू मुसलमानों में सांप्रदायिक सद्भाव में भी कमी आ गई और पहले काशी खानपान की चीजों के लिए बहुत प्रसिद्ध थी परंतु अब उनमें भी बहुत परिवर्तन आ गया था मोहल्ले में मलाई बर्फ गायब हो गई थी साहित्य के प्रति भी लोगों का झुकाव कम हो गया था जिससे बिस्मिल्लाह खान खुश नहीं थे काशी आधुनिक होता जा रहा था और साथ ही उसकी जो पारंपरिक जो परंपरा थी वह धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही थी अब काशी में बहुत सी चीजें ऐसी थी जो पहले जैसी नहीं रही थी जैसे मोहल्ले में से मलाई बर्फ गायब हो जाना लोगों में साहित्य के प्रति रुचि खत्म हो जाना और भी अन्य कारण थे जो बिस्मिल्लाह खान को अंदर ही अंदर खाए जा रहे थे।
बिस्मिल्लाह खान धर्म से मुस्लिम थे वह नमाज पढ़ने के प्रति जितना समर्पित थे उतना ही काशी के प्रति भक्ति भी थे वह हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर 10 दिनों तक शोक प्रकट करते तथा 8 किलोमीटर पैदल चलते रोते हुए नोहा बजाया करते थे इसी प्रकार वह काशी में गंगा मैया बालाजी और बाबा विश्वनाथ के प्रति असीम आस्था रखते थे वह जब भी काशी से बाहर रहते थे तो थोड़ी देर काशी के मंदिरों की ओर मुंह करके बैठते और फिर अपनी शहनाई बजाकर सच्चे सुरो के लिए प्रार्थना करते उनको धार्मिक मतभेदों से इतना मतलब नहीं सभी धर्मों के प्रति समान आस्था रखने वाले व्यक्ति थे। इसे हम पता चलता है कि बिस्मिल्लाह खान थे वह सभी धर्मों का समान आदर करते थे और वह न केवल इस्लाम बल्कि हिंदू धर्म की भी उतनी ही उपासना करते थे।
विश्व प्रसिद्ध हो जाने के बाद भी उनके स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया और ना ही उनके द्वारा किसी भी धर्म या संस्कृति का अपमान किया गया उन्होंने अपने अंतिम सांस तक बहुत ही सरल रूप से जीवन जिया इस तरह से वास्तविक अर्थों में वह एक सच्चे इंसान थे। और वह सभी संस्कृति और सभी धर्मों का समान आदर करते थे और दोनों की उपासना भी करते थे वो दोनों को महत्व देते थे इसके साथ ही वह इतने अच्छे सुरो के साथ भी वह कभी अपने आप पर घमंड नहीं करते थे और वह इसके बाद भी वह खुदा से अपने सुरो को और भी मार्मिक बनाने की इच्छा ही प्रकट करते थे जिससे की लोगों का कल्याण कर सके और लोगों के दुखों को कम कर सके इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वे एक अच्छे इंसान थे
बिस्मिल्लाह खान की संगीत साधना को समृद्ध करने वाले व्यक्ति और घटनाओं का निम्नलिखित चित्र है लेखक के अनुसार बिस्मिल्लाह खान के जीवन में संगीत की यात्रा दूसरों को संगीत गाते देखकर शुरू हुई थी उन्हें रसूलन बाई , बतुलनबाई ,मामू जान अली बख्श खाना, कुलसुम हलवाई ,अभिनेत्री सुलोचना के संगीत ने बहुत प्रभावित किया उन्हीं के कदमों के निशानों पर चलते हुए आगे निकले उन्होंने शहनाई बजाकर संगीत की सेवा की और उस्ताद कहलाए। बिस्मिल्ला खान को नौबत खाने रियाज करने जाने के लिए जो रास्ता जाता था वह रसूलन बाई के के यहां से ही होकर जाता था रसूलन बाई और बतुलन बाई का गायन सुनकर वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संगीत सीखने की दिशा में कदम उठा लिया दूसरा बिस्मिल्लाह खान बचपन से ही अपने नाना को शहनाई बजाते देखा करते थे परंतु उनके निधन के बाद उसी शहनाई को ढूंढते और उसे बजाने की कोशिश करते थे बिस्मिल्लाह खान जब भी कुलसुम हलवाई के यहां कचौड़ी , जलेबियां चलते देखते उसमें भी उन्हें संगीत की अनुभूति करते बिस्मिल्लाह खान के मामा अली बख्श खान शहनाई बजाते थे जिससे बिस्मिल्लाह खान बहुत प्रभावित हुए हैं उनके जीवन में कई लोगों का उनका शहनाई के प्रति रुचि में योगदान है।
यतींद्र मिश्र जी द्वारा लिखित इस लेख ' नौबतखाने में इबादत ' को पढ़कर प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं का ज्ञान होता है जिनमें से कुछ निम्न है जैसे बिस्मिल्लाह खान बहुत ही सादा जीवन जीते थे विश्व प्रसिद्ध होने पर भी उन्हें कभी इस बात का अभिमान नहीं हुआ 80 बरस क आयु में भी बिस्मिल्लाह खान संगीत साधना के प्रति समर्पित रहते थे बिस्मिल्लाह खान मे हमेशा कुछ नया सीखने की ललक थी और वह सभी धर्मों के प्रति आदर का भाव रखते थे।
मोहर्रम के महीने में शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसैन और उनके कुछ वंशजों के प्रति शोक मनाते हैं बिस्मिल्लाह खान अपने धर्म और शहनाई दोनों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे मोहर्रम के माह में वे न ही शहनाई बजाते और ना ही किसी भी संगीत कार्यक्रम में भाग लेने जाते अपना शोक प्रकट करने के लिए मोहर्रम माह की आखिरी तारीख को करीब 8 किलोमीटर पैदल रोते हुए नोहा ब जाते-जाते उनका धर्मों में अटूट विश्वास उनको ऐसा करने के लिए बाध्य करता था। मोहर्रम के लिए वह अपनी रुचि को भी त्याग देते थे और अपनी दिनचर्या में भी बदलाव लाते थे इस प्रकार हम देख सकते हैं कि मोहर्रम के प्रति उनका कितना अहम जुड़ाव था।
बिस्मिल्लाह खान 80 वर्ष की आयु तक शहनाई बजाते रहे शहनाई और कला के प्रति उनका अलग ही जुड़ाव था जब वह बनारस में रहते तो अपनी शहनाई बजाने की कला का रियाज गंगा किनारे बैठकर करते वह अपनी कला की ही साधना करते थे ।उन्हें जब भी मौका मिलता संगीत सभा में सम्मिलित होने का सदैव सम्मिलित होते इसके अतिरिक्त वह अपनी प्रार्थना में भी सच्ची सुरो को ही मांगा करते थे जिसे सुनकर श्रोता आनंदित हो उठे। बिस्मिल्लाह खान अपनी कला को पैसा कमाने का साधन नहीं मानते थे वह उसे साधना के तौर पर देखते थे वह अपनी कला के ही परम उपासक थे ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा उनके जीवन जितना ही सादगी भरा था उनका संगीत उतना ही उच्च था।
जिस वाक्य में एक से अधिक उपवाक्य जुड़े हो परंतु उनमें एक प्रधान उपवाक्य हो दूसरा आश्रित उपवाक्य हो मिश्र वाक्य कहलाता है उदाहरण के लिए मां ने कहा की शाम को जल्दी लौट आना
प्रस्तुत वाक्य: यह जरूर है कि शहनाई और डुमराव एक दूसरे के लिए उपयोगी है।
मिश्र वाक्य: शहनाई और डुमराव एक दूसरे के लिए उपयोगी है।
उपवाक्य के भेद: संज्ञा, आश्रित उपवाक्य
जिस वाक्य में एक से अधिक उपवाक्य जुड़े हो परंतु उनमें एक प्रधान उपवाक्य हो वह दूसरा आश्रित उपवाक्य मिश्र वाक्य कहलाता है उदाहरण के लिए मां ने कहा कि शाम को जल्दी लौट आना।
प्रस्तुत वाक्य :रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को आ जाता है।
मिश्र वाक्य: जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
उपवाक्य भेद : विशेषण आश्रित उपवाक्य
जिस वाक्य में एक से अधिक उपवाक्य जुड़े हो परंतु उनमें एक प्रधान उपवाक्य हो वह दूसरा आश्रित उपवाक्य हो मिश्र वाक्य कहलाता है उदाहरण के लिए मां ने कहा कि शाम को जल्दी लौट आना।
प्रस्तुत वाक्य: रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराव में मुख्यतः सोने नदी के किनारों पर पाई जाती है।
मिश्र वाक्य :जो डुमराव में मुख्य सोन नदी के किनारे पर पाई जाती हैं।
उपवाक्य भेद: विशेषण आश्रित उपवाक्य
जिस वाक्य में एक से अधिक उपवाक्य जुड़े हो परंतु उनमें एक प्रधान उपवाक्य हो वह दूसरा आश्रित उपवाक्य मिश्र वाक्य कहलाता है उदाहरण के लिए मां ने कहा कि शाम को जल्दी लौट आना।
प्रस्तुत वाक्य: उनको यकीन है कि कभी खुदा यूं ही उन पर मेहरबान होगा
मिश्र वाक्य :कभी खुदा यूं ही उन पर मेहरबान होगा
उपवाक्य के भेद :संज्ञा आश्रित उपवाक्य
जिस वाक्य में एक से अधिक उपवाक्य जुड़े हों परंतु उनमें उपप्रधान व उपवाक्य हो वह दूसरा आश्रित उपवाक्य हो मिश्र वाक्य कहलाता है उदाहरण के लिए मां ने कहा जल्दी लौट आना
प्रस्तुत वाक्य : खान साहब की सबसे बड़ी देन यही है कि पूरे 80 वर्ष उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एक अधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा
मिश्र वाक्य :पूरे 80 बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता एक अधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा
उपवाक्य भेद :संज्ञा आश्रित उपवा
जिस वाक्य में एक से अधिक उपवाक्य जुड़े हो परंतु उनमें एक प्रधान उपवाक्य होगा दूसरा आश्रित उपवाक्य मिश्र वाक्य कहलाता है उदाहरण के लिए मां ने कहा कि शाम को जल्दी लौट आना
प्रस्तुत वाक्य: हिरन अपनी महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है
मिश्र वाक्य: जिसकी कम उसी में समाई है
उपवाक्य भेद: विशेषण आश्रित उपवाक्य।
मिश्रित वाक्य की रचना एक से अधिक साधारण वाक्य को मिलाकर होती है ऐसे वाक्यों में एक प्रधान उपवाक्य और दूसरा आश्रित उपवाक्य होता है प्रधान वाक्य और उपवाक्य से जुड़ने के लिए क्योंकि जितना - जैसा ,उतना, वैसा, जब ,जो ,तब, जहां, वहां उधर, अगर ,यदि, यद्यपि ,तो तथापि, जिधर ,आदि शब्द का प्रयोग किया जाता है उदाहरण के लिए वह कौन सा मनुष्य है जिसने सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र क बारे में ना सुना हो ,।
मिश्रित वाक्य :यह बाल सुलभ हंसी वही है जिसमें कई यादे बंद है।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यहां जिसमें शब्द का प्रयोग होने से यह वाक्य मिश्रित वाक्य बन जाता है।
क्योंकि रचना एक से अधिक साधारण वाक्य को मिलाकर होती है ऐसे वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य दूसरा आश्रित उपवाक्य होता है प्रधान वाक्य और उपवाक्य से जोड़ने के लिए क्योंकि कि जितना ,जैसा उतना, वैसा,जब दो तब जहां वहां, उधर अगर यदि पी तो तथापि, जिधर ,आदि शब्द का प्रयोग किया जाता है उदाहरण के लिए वह कौन सा मनुष्य है जिसने सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के बारे में ना सुना हो।
दिए गए वाक्यों का मिश्रित वाक्य में रूपांतरण निम्न है
मिश्रित वाक्य : काशी में संगीत आयोजन होता है जो कि एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
यहां जो का प्रयोग मिश्रित वाक्य के लिए किया गया है
मिश्रित वाक्य की रचना एक से अधिक साधारण वाक्य को मिलाकर होती है ऐसे वाक्यों में एक प्रधान उपवाक्य में दूसरा आश्रित उपवाक्य होता है प्रधान वाक्यों को उप वाक्य से जोड़ने के लिए उपवाक्य कि जितना ,उस जैसा उतना , वैसा,जब ,जो तब जहां वहां उधर ,अगर यदि भी तथापि तो ,तथापि शब्दों का प्रयोग किया जाता
दिए गए बाप के काम मिश्रित वाक्य में रूपांतरण निम्न प्रकार से हैं।
धत! पगली ई भारत रतन हमको लूंगी या पर नहीं मिला है ई तो हमको शहनैया पर मिला है।
हम देख सकते हैं तो का प्रयोग हुआ है तो यहां पर इस प्रकार है मिश्र वाक्य बन जाता है।
मिश्रित वाक्य की रचना एक से अधिक साधारण वाक्य को मिलाकर होती है । करण के लिए जैसा यद्यपि तथापि तो पैसा जितना आदि शब्द जोड़ने पर मिश्रित वाक्य बन जाता है।
दिए गए वाक्यों में रूपांतरण निम्न प्रकार से है
मिश्रित वाक्य :
काशी एक नायाब हीरा है जो हमेशा से दो कोमो को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता है।
उपरोक्त वाक्य में जो शब्द का प्रयोग हुआ है इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यह मिश्रित वाक्य है क्योंकि इसमें प्रधान वाक्य को उपवाक्य से जोड़ने के लिए जो का प्रयोग किया गया है।