Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Kshitij's Chapter 2 "Tulsidas". This guide is designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कई तर्क दिए। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि वह तो बड़ा ही पुराना धनुष था जो श्रीराम के छूने से ही टूट गया। उन्होंने कहा कि बचपन में खेल खेल में उन्होंने कई धनुष तोड़े थे,इसलिए एक टूटे धनुष के लिए इतना क्रोध करना उचित नहीं है।
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
इस प्रसंग में लक्ष्मण ने परशुराम का विरोध व्यंग्य के अंदाज में किया है। इससे लगता है कि लक्ष्मण बड़े ही उग्र स्वभाव के व्यक्ति हैं। वहीं दूसरी ओर, राम ने बड़ी शाँत मुद्रा में इस वार्तालाप को होते हुए देखा है। इससे पता चलता है कि राम शाँत स्वभाव के व्यक्ति हैं। जहाँ पर लक्ष्मण क्रोध का जवाब क्रोध से देते हैं, वहीं पर राम क्रोध का जवाब भी मंद मुसकान से देते हैं।
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
लक्ष्मण हँसकर और थोड़े प्यार से कहते हैं, “मैं जानता हूँ कि आप एक महान योद्धा हैं। लेकिन मुझे बार बार आप ऐसे कुल्हाड़ी दिखा रहे हैं जैसे कि आप किसी पहाड़ को फूँक मारकर उड़ा देना चाहते हैं। मैं कोई कुम्हड़े की बतिया नहीं हूँ जो तर्जनी अंगुली दिखाने से ही कुम्हला जाती है। मैंने तो कोई भी बात ऐसी नहीं कही जिसमें अभिमान दिखता हो। फिर भी आप बिना बात के ही कुल्हाड़ी की तरह अपनी जुबान चला रहे हैं। आपके जनेऊ को देखकर लगता है कि आप एक ब्राह्मण हैं इसलिए मैंने अपने गुस्से पर काबू किया हुआ है। हमारे कुल की परंपरा है कि हम देवता, पृथ्वी, हरिजन और गाय पर वार नहीं करते हैं। इनके वध करके हम व्यर्थ ही पाप के भागी नहीं बनना चाहते हैं। आपके वचन ही इतने कड़वे हैं कि आपने व्यर्थ ही धनुष बान और कुल्हाड़ी को उठाया हुआ है।“
इस पर विश्वामित्र कहते हैं, “हे मुनिवर, यदि इस बालक ने कुछ अनाप शनाप बोल दिया है तो कृपया कर के इसे क्षमा कर दीजिए।“
ऐसा सुनकर परशुराम ने विश्वामित्र से कहा, “यह बालक मंदबुद्धि लगता है और काल के वश में होकर अपने ही कुल का नाश करने वाला है। इसकी स्थिति उसी तरह से है जैसे सूर्यवंशी होने पर भी चंद्रमा में कलंक है। यह निपट बालक निरंकुश है, अबोध है और इसे भविष्य का भान तक नहीं है। यह तो क्षण भर में काल के गाल में समा जायेगा, फिर आप मुझे दोष मत दीजिएगा।“
इसपर लक्ष्मण ने कहा, “हे मुनि आप तो अपने यश का गान करते अघा नहीं रहे हैं। आप तो अपनी बड़ाई करने में माहिर हैं। यदि फिर भी संतोष नहीं हुआ हो तो फिर से कुछ कहिए। मैं अपनी झल्लाहट को पूरी तरह नियंत्रित करने की कोशिश करूँगा। वीरों को अधैर्य शोभा नहीं देता और उनके मुँह से अपशब्द अच्छे नहीं लगते। जो वीर होते हैं वे व्यर्थ में अपनी बड़ाई नहीं करते बल्कि अपनी करनी से अपनी वीरता को सिद्ध करते हैं। वे तो कायर होते हैं जो युद्ध में शत्रु के सामने आ जाने पर अपना झूठा गुणगान करते हैं।“
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए:
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥
परशुराम ने अपने विषय मे कहा: 'मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और सारा संसार मुझे क्षत्रिय कुल के विनाशक के रूप में जानता है। मैंने अपने भुजबल से इस पृथ्वी को कई बार क्षत्रियों से विहीन कर दिया था और मुझे भगवान शिव का वरदान प्राप्त है। मैंने सहस्रबाहु को बुरी तरह से मारा था। मेरे फरसे को गौर से देख लो। तुम तो अपने व्यवहार से उस गति को पहुँच जाओगे जिससे तुम्हारे माता पिता को असहनीय पीड़ा होगी। मेरे फरसे की गर्जना सुनकर ही गर्भवती स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है।"
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
लक्ष्मण के अनुसार वीरों की विशेषताएँ हैं-
1.धैर्य,
2.मृदुभाषी,
3.कर्मवीर,
4. युद्ध के मैदान में चुपचाप अपना काम करने वाले।
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
यह सही कहा गया है कि साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। एक विनम्र व्यक्ति ही संकट के समय में भी अपना आपा नहीं खोता है। जो विनम्र नहीं होते हैं वे मानसिक रूप से शीघ्र विचलित हो जाने के कारण अपना धैर्य खो बैठते हैं और गलतियाँ करने लगते हैं। इससे उनका नुकसान ही होता है।
भाव स्पष्ट करें।
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि फारू॥
यहाँ लक्ष्मण हँसकर और थोड़े प्यार से कहते हैं कि मैं जानता हूँ कि आप एक महान योद्धा हैं। लेकिन मुझे बार बार आप ऐसे कुल्हाड़ी दिखा रहे हैं जैसे कि आप किसी पहाड़ को फूँक मारकर उड़ा देना चाहते हैं। ऐसा कहकर लक्ष्मण एक ओर तो परशुराम का गुस्सा बढ़ा रहे हैं और शायद दूसरी ओर उनकी आँखों पर से परदा हटाना चाह रहे हैं।
भाव स्पष्ट करें।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोई नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
मैं कोई कुम्हड़े की बतिया नहीं हूँ जो तर्जनी अंगुली दिखाने से ही कुम्हला जाती है। मैंने तो कोई भी बात ऐसी नहीं कही जिसमें अभिमान दिखता हो। फिर भी आप बिना बात के ही कुल्हाड़ी की तरह अपनी जुबान चला रहे हैं। इस चौपाई में लक्ष्मण ने कटाक्ष का प्रयोग करते हुए परशुराम को यह बताने की कोशिश की है के वे लक्ष्मण को कमजोर समझने की गलती नहीं करें।
भाव स्पष्ट करें।
गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥
ऐसा सुनकर विश्वामित्र मन ही मन हँसे और सोच रहे थे कि इन मुनि को सबकुछ मजाक लगता है। यह बालक फौलाद का बना हुआ और ये किसी अबोध की तरह इसे गन्ने का बना हुआ समझ रहे हैं। विश्वामित्र को परशुराम की अनभिज्ञता पर तरस आ रहा है। परशुराम को शायद राम और लक्ष्मण के प्रताप के बारे में नहीं पता है।
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
तुलसीदास भक्तिकाल के कवि माने जाते हैं। इस काल के अन्य कवियों की तरह ही तुलसीदास ने भी आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया। यह रचना अवधी में लिखी गई है जो गंगा के मैदान के एक बड़े हिस्से में बोली जाती है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रामचरितमानस के लिखे जाने के बाद ही रामायण समकालीन भारत के अधिकाँश लोगों को सही ढ़ंग से समझ आई होगी। तुलसीदास ने चौपाइयों और दोहों का प्रयोग किया है जिन्हें आसानी से संगीतबद्ध किया जा सकता है। ये चौपाइयाँ आसानी से किसी की भी जुबान पर चढ़ सकती हैं। तुलसीदास ने इस रचना में व्यंग्य का भरपूर प्रयोग किया है। साथ में उन्होंने रौद्ररस और करुणा रस का भी प्रयोग किया है।
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
इस पूरे प्रसंग में लक्ष्मण ठिठोली करने पर ही उतारू हैं। परशुराम से उनकी बातचीत मजाक से ही शुरु होती है जब वे कहते हैं कि परशुराम के ही किसी दास ने धनुष तोड़ा होगा इसलिएक्रोधित होने की कोई जरूरत नहीं है। इसके बाद बार बार लक्ष्मण ने परशुराम को चिढ़ाने का प्रयास किया है।
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार को पहचान कर लिखिए।
१.बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
इसमे अनुप्रास अलंकार हैं। इस पंक्ति में ‘ब’ वर्ण का बार बार प्रयोग हुआ है; इसलिए यह अनुप्रास अलंकार हैं।
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार को पहचान कर लिखिए।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
इस पंक्ति में अनुप्रास और उपमा अलंकार हैं। पंक्ति में ‘क’ वर्ण का बार बार प्रयोग हुआ है, इसलिए यह अनुप्रास अलंकार है। परशुराम के वचनों की वज्र से तुलना की गई है इसलिए यहाँ पर उपमा अलंकार का भी प्रयोग हुआ है।
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार को पहचान कर लिखिए।
तुम्ह तौं कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा॥
इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा और पुनरुक्ति अलंकार है। कालु हाँक जनु लावा में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है। ‘बार बार’ में पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार को पहचान कर लिखिए।
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥
इस पंक्ति में उपमा और रूपक अलंकार है। आहुति सरिस’ और ‘जल सम’ में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है। ‘रघुकुलभानु’ में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
" सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध ना हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुंचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर- निवृत्ति का उपाय ना कर सके। "
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता है बल्कि सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपने भाव स्पष्ट कीजिए।
सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध ना हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुंचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर- निवृत्ति का उपाय ना कर सके। "
राम चंद्र शुक्ल के इस कथन से यह पुष्टि होती है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक ही नहीं बल्कि सकारात्मक भी होता हैं। क्रोध हमेशा बुरा प्रभाव नहीं डालता बल्कि अच्छा प्रभाव भी उत्पन्न करता है। क्रोध से व्यक्ति अपने मन की बात बोल देता जो कभी कभी वह प्रेम मे नहीं बोल पाता। क्रोध करने से या क्रोधित होने से दूसरे द्वारा पहुँचाने वाले कष्ट को आप दूर कर सकते हो।
संकलित अंश मे राम का व्यवहार विनय पूर्ण और संयत है, लक्ष्मण हमेशा व्यंजन का प्रयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आप को इस परिस्थिति में रखकर लिखिए कि आपका व्यवहार कैसा होता।
हर मनुष्य का व्यवहार एक समान नहीं होता है । मनुष्य के व्यवहार में काफी अंतर होता है। मनुष्य अपने व्यवहार के कारण जाने जाते हैं। जैसा कि यहां हमने देखा की राम लक्ष्मण और परशुराम के व्यवहार में काफी अंतर है।
यदि मैं अपने आप को इस जगह पर रखो तो मैं भी क्रोधित अवश्य हुई जाती। क्योंकि सब का व्यवहार अलग होता है। कोई बहुत जल्दी क्रोधित हो जाते हैं और किसी को क्रोध बिल्कुल भी नहीं आता है। इसलिए जब मैं अपने आप को इस जगह पर रखती हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मुझे क्रोध तुरंत आ जाता और मैं भी क्रोध में बात करती हूं। मुझे श्रीराम का व्यवहार काफी अच्छा लगा क्योंकि सारी परिस्थिति जानने के उपरांत भी उन्होंने विनय पूर्वक और प्रेम पूर्वक ही बातें की। ऐसे व्यक्ति काफी कम होते हैं जो अपने प्रेम और करुणा से अपने क्रोध को ढक लेते हैं।
अपने किसी परिचित या मित्र के व्यवहार की विशेषताएं लिखिए।
मेरे एक परिचित है मुझे उनका व्यवहार काफी अच्छा लगता है। वह काफी शांत और गंभीर है। आज तक क्रोधित होते हुए नहीं देखा है। वह हमेशा सबको बड़े प्यार से समझाते हैं। यदि कोई क्रोधित भी होता है तब भी वह उन पर क्रोधित नहीं होते हैं। वह क्रोधित होते हैं फिर भी शांति से दूसरों को समझाते हैं। उनका यह मानना है कि हम लोगों के प्यार से समझा सकते हैं तो क्रोध की कोई आवश्यकता ही नहीं है। प्यार से समझाना व्यक्ति के लिए अच्छा होता है क्योंकि वह बात सीधा उनके दिल में उतरती है।
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखे।
हमें दूसरों की क्षमताओं को कभी भी कम नहीं समझना चाहिए। मुझे एक कहानी याद आ रही है।
एक कक्षा में कई बच्चे थे और उनमें दो मित्र थे राहुल और अमन। राहुल पढ़ने में काफी अच्छा था और अमन उसके बराबर का नहीं था। दोनों काफी अच्छे मित्र थे और यह बात पूरी कक्षा में सबको पता थी। राहुल हमेशा कक्षा में आता था परंतु अमन उतना अच्छा नहीं था पढ़ाई में। दोनों अच्छे मित्र तो थे राहुल अमन को पढ़ाई में बिल्कुल मदद नहीं करता था। राहुल को इस बात का घमंड था कि वह पढ़ाई में मन से काफी अच्छा है। एक बार की बात है दोनों आठवीं कक्षा में थे। आठवीं कक्षा के फाइनल एग्जाम शुरू होने वाले थे। राहुल अपने आप को लेकर काफी आत्मविश्वास था इस बार भी वही उत्तीर्ण करेगा। उसे दूसरों से कोई मतलब नहीं था बस उसे एक बात से मतलब था कि अमन को उसे ज्यादा नंबर ना आ जाए। पर उसे यह भी पता था की अमन उससे अच्छा नहीं है पढ़ाई में। परंतु इस बार किसी कारणवश राहुल को अमन से भी कम नंबर आए। उसे कहीं ना कहीं पहले से ही इस बात का घमंड था कि उसे तो अमन से अच्छे नंबर आने वाले हैं और उसमें कहीं ना कहीं अमन की क्षमताओं को नजरअंदाज भी किया और तिरस्कार भी किया। इस बार के रिजल्ट के बाद राहुल को बहुत ठेस पहुंची और उसे इस बात का एहसास हुआ कि किसी को भी उसकी क्षमताओं से नहीं आना चाहिए।
उन बात को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
अन्याय तो हमेशा सबके साथ होती ही रहती है। भारत देश में अन्याय सबसे ज्यादा महिलाओं के साथ की जाती हैं।हर महिलाओं के साथ अन्याय किसी न किसी रूप में होता है।
एक बार की बात मुझे याद है। मैं ग्रेजुएशन करने दिल्ली आए थी। मेरे लिए शहर काफी नया था। नई शहर नए लोग मैं किसी को भी नहीं जानती थी ।
मै रहने के लिए हॉस्टल देख रही थी और मुझे एक हॉस्टल मिल गया। हॉस्टल काफी अच्छा था। मैं वहां अपने मम्मी पापा के साथ थी और कुछ ऑफिशियल वर्क हमारा चल रहा था। एक लड़की और आई जिसे हॉस्टल में एक बेड चाहिए थी। परंतु हॉस्टल के मालिक ने उसे रूम देने से मना कर दिया। रूम ना देने के पीछे कारण यह था कि वह लड़की एक पिछड़ी जाति से थी। जब मुझे यह बात पता चला तो मैंने और मेरे मम्मी पापा ने इस बात का काफी विरोध किया और उन्हें बहुत समझाया। हमारे काफी समझाने के बाद उन्हें यह बात समझ में आए और फिर उन्होंने उस लड़की को एक बेड दे दिया।
पता चलता है कि लोग पढ़े लिखे हैं परंतु उनकी सोच बदली नहीं है।
अवधी भाषा किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है।
अवधी भाषा हिंदी क्षेत्र की भाषा है। यह भाषा ज्यादातर उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में बोली जाती है। उत्तर प्रदेश में भी यह भाषा लखनऊ रायबरेली, सुल्तानपुर, सीतापुर, अयोध्या, गोंडा आदि आदि क्षेत्रों में बोली जाती है।