कविता --छाया मत छूना

कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों की है?

कवि ने कठिन यथार्थ अर्थात जीवन की वास्तविकता के पूजन की बात की है क्योंकि यही सत्य है। हमें अपने वर्तमान क्षणों में ही बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए। पुराने सुख के दिनों को याद करके या भविष्य के बारे में सोच कर हम अपने आज को भी और अधिक दुखी बना लेते हैं। हमें अपने वर्तमान जीवन का सम्मान करना चाहिए तथा उसी में खुश रहना चाहिए, वर्तमान समय की कठिनाइयों को पार कर आगे बढ़ना चाहिए इसी से हमारा जीवन सुखमय हो सकता है। 

भाव स्पष्ट कीजिए:-

"प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,

हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।"

कवि कहता है कि 'प्रभुता का शरण-बिंब' अर्थात अपने आप को श्रेष्ठ समझना या हमारे अंदर बड़प्पन का भाव आना केवल भ्रम है। यह मृगतृष्णा के समान है। मनुष्य को याद रखना चाहिए कि जिस प्रकार हर चांदनी रात के बाद अमावस्या की काली रात आती है, उसी प्रकार हमारे जीवन में सुख के बाद दुख भी आता है। मनुष्य को दोनों स्थितियों को अपनाना चाहिए। हमें  अपने आप को कभी श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए क्योंकि समय हमेशा एक समान नहीं रहता है। 

'छाया' शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने से मना क्यों किया है?

इस कविता में कवि ने बीते हुए समय की सुखद यादों को छाया कहा है जो हमारे मन के किसी कोने में हमेशा छिपी रहती हैं। उनको याद करके हमारा वर्तमान समय भी दुखी होता है। अतीत की मधुर स्मृतियों को ही यहां छाया की संज्ञा दी गई है क्योंकि जिस प्रकार छाया काली होती है उसी प्रकार अतीत की ये स्मृतियाँ भी हमारे वर्तमान जीवन को अंधकारमय और दुखी बना देती हैं।

कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँट कर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?

कविता में विशेषण का प्रयोग निम्नलिखित स्थानों पर हुआ है-

1. जीवित क्षण - यहाँ जीवित (विशेषण) शब्द के द्वारा क्षण अर्थात समय को चलयमान बताया गया है जो निरंतर चलता रहता है।

2. दुख दूना - यहाँ दुख शब्द के साथ दूना विशेषण जोड़कर दुख के अधिकता की बात की गई है।

3. एक रात कृष्णा - यहाँ रात के साथ कृष्णा विशेषण को जोड़ा गया है। कृष्णा रात का अर्थ है काली अंधेरी रात।

4. शरद रात - यहाँ रात के साथ शरद विशेषण को जोड़कर रात की शीतलता को बताया गया है।

'मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?

मृगतृष्णा प्रकाश से बनने वाली एक प्राकृतिक घटना है। जब तेज़ गर्मी के महीने में रेगिस्तान में कड़कती धूप की तिरछी किरणें रेगिस्तान की रेत या कहीं दूर सड़कों पर पड़ती है, तब वहाँ पानी के होने का एहसास होता है लेकिन पास जाने पर पता चलता है कि वहाँ कुछ नहीं है, इस छल कि स्थिति को मृगतृष्णा कहते हैं। इस कविता में इसका प्रयोग बड़प्पन तथा श्रेष्ठता के अहसास के लिए किया गया है जिसके पीछे मनुष्य आजीवन भागता-फिरता है।

'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले' यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?

'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ का भाव कविता की इन पंक्ति में व्यक्त हुआ है- 

‘जो न मिला भूल उसे कर भविष्य का वरण’।

इन दोनों ही पंक्तियों का अर्थ है कि हमें अपने पिछले जीवन को भूलकर अपने आने वाले समय को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।

कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

कविता में अतीत की स्मृतियों को याद करने को ही दुख का सबसे बड़ा कारण माना गया है। अतीत के सुखों को याद करके हम अपने वर्तमान समय के दुख को और अधिक दुगुना करते हैं जो क्षण बीत चुके हैं, उनकी यादों में नहीं जीना चाहिए। यथार्थ में जीना ही मनुष्य का सच्चा जीवन है।

'जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?

मेरे जीवन की सबसे मधुर स्मृति वह है जब विद्यालय में मुझे प्रथम आने पर सम्मानित किया गया था। तब मेरे माता - पिता भी बहुत खुश हुए थे। 

'क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।

इस पंक्ति में कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। लेकिन हमारे मतानुसार समय बीत जाने पर मिलने वाली उपलब्धि उतना आनंद नहीं देती जितना की समय पर प्राप्त होकर देती। क्योंकि समय पर प्राप्त हुई उपलब्धि मन को संतुष्ट करती है।