Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Kshitij's Chapter 14 "Ek Kahani Yeh Bhi". These Solutions is designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!
लेखिका के व्यक्तित्व पर दो लोगो का प्रभाव बहुत ज्यादा पड़ा पहला उनके पिता जी और दूसरा उनकी प्राध्यापिका जी का
1. पिता जी का प्रभाव बचपन में लेखिका बहुत सांवली और दुबली थी, उनकी बड़ी बहन बहुत सुंदर थी, उनके पिता जी उनकी बहन की प्रशंसा करते थे जिस कारण से इनके मन में हीन भावना घर कर गई। इस बात का प्रभाव इन पर इतना बुरा पड़ा की आज भी जब इन्हें कोई उपलब्धि हासिल होती है तो वे यकीन नहीं कर पाती है।
दूसरा उनकी प्राध्यापिका जी शीला अग्रवाल जी, जब लेखिका ने सन 1945 मे महाविधालय में प्रवेश लिया तो उनकी मुलाकात हिंदी की प्राध्यापिका श्रीमती शीला अग्रवाल जी से हुई इन्होंने ही लेखिका को साहित्य की दुनिया में प्रवेश करवाया लेखिका का साहित्य का दायरा ही नहीं बढ़ाया बल्कि घर की चार दिवारी के बीच बैठकर देश की स्थितियों को जानने -समझने का तरीका भी सिखाया।
लेखिका के पिताजी का मानना था कि रसोईघर में काम करने से लड़कियों की प्रतिभा नष्ट हो जाती ।वो केवल खाने और पकाने तक सीमित रह जाती हैं । रसोई घर में लड़कियां अपनी प्रतिभा को निखार नहीं पाती है उनकी रुचियां केवल रसोई तक ही सीमित रह जाती हैं।इसी कारण उन्होंने रसोईघर को भटियारखाना कहा उनका मानना था कि हमे लड़कियों को रसोई घर तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। उनका मानना था कि लड़कियों को रसोई घर से बाहर निकाल कर उनकी प्रतिभा को निकालना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए और उनकी शिक्षा के संदर्भ में बात करते हैं कि उनको आगे बढ़ाकर उन्हे शिक्षित करना चाहिए।
लेखिका जब अपने कॉलेज के राजनीतिक कार्यकर्मों में बढ़ -चढकर भाग ले रही थी और उनके एक इशारे पर सारी लड़कियां अपनी कक्षा से बाहर निकल आती और नारे लगाने लग जाती जब इस बारे में पहली बार उनके पिता जी के पास शिकायत आई तो वे डर गई थी की उनके पिता जी गुस्सा होंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि इसके उल्टे जब उनके पिता जी ने लेखिका की तारीफ की तो उन्हें अपने कानों पर तनिक भी विश्वास नहीं हो रहा था और अपने पिता के व्यवहार में परिवर्तन देख उन्हें अपनी आंखो पर भरोसा नहीं हो रहा था। जब उनके पिता आकर उनसे कहते हैं कि यह तो देश की मांग है जो वो आंदोलन कर रही है तो वह आश्चर्यचकित हो जाती उन्हें अपनी आंखों कानों पर यकीन नहीं होता कि उनके पिताजी के व्यवहार में इतना बदलाव कैसे आ गया।
लेखिका और उनके पिता जी की विपरीत विचारधारा ही उनके मध्य वैचारिक टकराहट का कारण थी। लेखिका के पिता उनकी शिक्षा के खिलाफ नहीं थे परंतु वह लड़कियों की कम उम्र में शादी करने के पक्ष में थे, परंतु लेखिका अपने सपनो को पूरा करना चाहती थी उन्हें अपने को चारदीवारी तक सीमित आजादी पसंद नहीं थी। वह आंदोलन करना चाहती थी आगे बढ़ना चाहते विदेश में जो भी बुराई हो तो उसको मिटाने के लिए वह उनके पिताजी उन्हें आजादी तो देती थी लेकिन एक सीमित दायरे के अंदर लेकिन उन्हें आजादी पसंद नहीं थी खुले तौर पर अपनी बात रखना चाहती थी ना केवल एक सीमित क्षेत्र तक ,जबकि उनके पिताजी उन्हे केवल अपने क्षेत्र तक ही सीमित रखते थे उनको।
स्वाधीनता आंदोलन के समय हो रहे प्रदर्शन मे अपना सहयोग देकर लेखिका ने एक सक्रिय भूमिका निभाई। आंदोलन के दौरान उन्होंने लोगो को संगठित किया और उनमें उत्साह भरने का काम किया इस प्रकार उन्होंने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ स्वतंत्रा संग्राम में भाग लिया था। इतना ही नहीं वे अपने कॉलेज में भी उनके एक इशारे पर सारी लड़कियां बाहर आ जाती थी और आंदोलन में भाग लेती थी तो इस प्रकार हम उनके अमूल्य योगदान को देख सकते हैं कि स्वाधीनता के समय उन्होंने किस प्रकार आगे बढ़ चढ़कर आंदोलनों में भाग लिया और अपनी एक अलग पहचान बनाई।
लेखिका को अपने समय में खेलने और पढ़ने की आजादी तो थी परंतु अपने पिता जी द्वारा निर्धारित गांव की सीमा तक ही। लेकिन यदि आज के समय की बात करे तो, आज परिस्थितियां कुछ हद तक बदली है, आजकल लड़कियां गांव -गांव, शहर -शहर जाकर शिक्षा ग्रहण करने तथा खेलने जाती हैं, आज महिलाएं अंतरिक्ष तक जाकर दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रही हैं। लेकिन इन सबके बावजूद इसका दूसरा पहलू यह भी है की भारत में अब भी कुछ लोग लेखिका के पिता जी की सोच रखते है।
आज मनुष्य अपने सगे संबंधियों तक के बारे में अधिक जानकारी नही रखता, उसने अपने संबंधों का क्षेत्र सीमित कर लिया है तथा आत्मकेंद्रित होता जा रहा है । यही कारण है कि आज के समाज में रहने वाले लोग मे प्राय: पड़ोस कल्चर लगभग समाप्त होता जा रहा है। आज के मनुष्य के पास तो इतना भी समय नहीं होता कि वो अपने पास - पडोस वालो से समय निकालकर बात भी कर सके। आजकल व्यक्ति अपने फ्लैट अपने घर तक ही सीमित रह गया है कई महीनों महीनों उनके आसपास क्या हो रहा है इसकी खबर तक आजकल के व्यक्ति को नहीं है वह अपनी जिंदगी में इतना खो जाते हैं आज के व्यक्ति, सोशल मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है कि हम सोशल मीडिया पर लोगों से जुड़ रहे हैं लेकिन आस पड़ोस के लोग जो हमारे सामने है उनसे नहीं मिल पा रहे हैं और बात भी नहीं करते , हम उनसे व्हाट्सएप चैट आदि के माध्यम से तो जुड़ पाते हैं लेकिन उनके सामने क्या हो रहा है उस पर हम ध्यान ही नही देते हैं।
लेखिका जब दसवीं कक्षा में थी तब तक आलम यह था कि बिना किसी खास समझ के घर में होने वाली बहस सुनती थी और बिना लेखक की अहमियत से परिचय हुए किताबें पढ़ती थी लेखिका सन में दसवीं पास करके फर्स्ट ईयर में गई वह हिंदी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से लेखिका का परिचय हुआ वहां से उन्होंने बाकायदा साहित्य की दुनिया में प्रवेश किया अपराधी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को किसी विशेष विषय पर चुनाव करके पढ़ने को उत्साहित किया उन्होंने खुद चुन चुन कर किताबें दी उनको पढ़ने के लिए साल बीतते बीतते लेकर का साहित्य की दुनिया में शरद प्रेमचंद्र से लेकर ज्ञानेंद्र अग्य यशपाल भगवती चरण वर्मा को पढ़ लिया एक कहानी यह भी पाठ की लेखिका मन्नू भंडारी ने अपनी किशोरावस्था में एक शेखर जीवनी सुनीता नदी के दीप चित्रलेखा उपन्यास भी पढ़े।
लेखिका द्वारा अपने किशोरावस्था में निम्नलिखित उपन्यास पढ़े गए।
1. सुनीता
2. शेखर एक जीवनी
3. नदी के द्वीप
4. त्यागपत्र
5. चित्रलेखा
लेखन के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है अनुभव कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण होता है तथा एक साहित्यकार का समाज की अच्छाइयों बुराइयों को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त करता है समाज को समझने के लिए उनके अनुभव सबसे महत्वपूर्ण होते हैं लेखक अपने अनुभवों को अधिक प्राथमिकता देता है लेखक वह बातें भी लेखन से व्यक्त कर जाता है जो वह दूसरों को समझा पाने में असमर्थ होता है लिखन एक सच्चे मित्र की तरह होता है जिसके माध्यम से हम अपने समाज को उसने व्याप्त बुराइयों से बचाते हैं और अच्छाइयों का आईना दिखाते हैं।
लेखक अपने जीवन में कुछ बीती घटनाओं एवं दूसरो के जीवन के अनुभवों के आधार पर समाज के अच्छे तथा बुरे चरित्र को समझ कर अपनी रचनाओं में उतार देते है। अत: लेखन के लिए अनुभव बहुत ही महत्वपूर्ण होता हैं इससे साहित्यकार हो या आम आदमी सबकी समझ मजबूत होती है।
भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु तथा भाषा की समृद्धि हेतु मुहावरा एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है मुहावरा उस वाक्यांश को कहते हैं जो अपने सामान्य अर्थ को ना प्रकट करके किसी विशेष अर्थ को प्रकट करता है मुहावरा शब्द से स्पष्ट है कि मुहावरा संक्षिप्त होता है किंतु अपने संक्षिप्त रूप में ही किसी बड़े भाव या विचार को प्रकट करता है।
मुहावरा
लू उतारी
अर्थ= पीठ पीछे निंदा या बुराई करना अथवा चुगली करना
वाक्य= शिक्षक की लापरवाहियों की वजह से अभिभावकों ने शिक्षक की लू उतारी
भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु तथा भाषा की समृद्धि हेतु मुहावरा एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है मुहावरा उस वाक्यांश को कहते हैं जो अपने सामान्य अर्थ को ना प्रकट करके किसी विशेष अर्थ को प्रकट करता है मुहावरा शब्द से स्पष्ट है कि मुहावरा संक्षिप्त होता है किंतु अपने संक्षिप्त रूप में ही किसी बड़े भाव या
मुहावरा आग लगाना
अर्थ= दो घरों दलों या पक्षों आदि के बीच में बहुत झगड़ा लगवाना जिससे वो परस्पर शत्रु जैसा व्यवहार करने लगे।
वाक्य = वेदप्रकाश ने विजय और आलोक के बीच आग लगा दी।
भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु तथा भाषा की समृद्धि हेतु मुहावरा एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है मुहावरा उस वाक्यांश को कहते हैं जो अपने सामान्य अर्थ को ना प्रकट करके किसी विशेष अर्थ को प्रकट करता है मुहावरा शब्द से स्पष्ट है कि मुहावरा संक्षिप्त होता है किंतु अपने संक्षिप्त रूप में ही किसी बड़े भाव या विचार को प्रकट करता है।
मुहावरा थू- थू करना
अर्थ अत्यधिक घृणा करना अथवा धिक्कारना
वाक्य विजय के चुगली करने की आदत की वजह से सब थू - थू करते हैं।
भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु तथा भाषा की समृद्धि हेतु मुहावरा एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है मुहावरा उस वाक्यांश को कहते हैं जो अपने सामान्य अर्थ को ना प्रकट करके किसी विशेष अर्थ को प्रकट करता है मुहावरा शब्द से स्पष्ट है कि मुहावरा संक्षिप्त होता है किंतु अपने संक्षिप्त रूप में ही किसी बड़े भाव या विचार को प्रकट करता है।
मुहावरा आग बबूला
अर्थ अत्यधिक गुस्सा आना
वाक्य परीक्षा फल देखते ही पिता जी आग बबूला हो गए।