Welcome to our comprehensive guide on Class 10 Hindi Kshitij's Chapter 8 "Rituraj". This guide is designed to assist students by providing a curated list of Question and Answers in line with the NCERT guidelines. These are targeted to help enhance your understanding of the subject matter, equipping you with the knowledge needed to excel in your examinations. Our meticulously crafted answers will ensure your conceptual clarity, paving the way for your successful academic journey. Let's get started!

माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसा दिखाई मत देना?

अपनी बेटी को विवाहित जीवन में आने वाले समस्त कठिनाइयों के प्रति सचेत करते हुए माँ अपनी बेटी से कहती है की 'लड़की होना पर लड़की जैसी दिखना मत' अर्थात अपने स्त्री गुणों के साथ साथ अपने आत्मसम्मान के प्रति भी सजग रहना जरूरी है  साथ ही वह यह भी समझा रही है की लड़की को अपने नारी सुलभ गुणों की सरलता, विनम्रता, सहजता, कोमलता आदि गुणों को तो बनाए रखना चाहिए परंतु उसे इतना भी कमज़ोर नहीं होना चाहिए कि लड़की समझकर ससुराल के लोग उसका शोषण करने लगे उसके अधिकारों को छीनने का प्रयास करें |

"आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं|" इन पंक्तियों में समाज में स्त्री कि किस स्थिति कि ओर संकेत किया है?

कवि ऋतुराज जी द्वारा प्रस्तुत पंक्ति,“आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलाने के लिए नहीं“, अर्थात आग का प्रयोग सिर्फ रोटी बनाने में ही करना उससे जलने के लिए नहीं समाज में गढ़ी गयी स्त्रियों की कमज़ोर स्थिति और ससुराल में परिजनों द्वारा उत्पीड़न और शोषण  करने की ओर संकेत कर रही है। कवि इन पंक्तिओ द्वारा यह कहना चाहते हैं कि स्त्रियों को समाज में कमज़ोर बनकर नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें कठिन  परिस्तिथियों में डटकर उनका मुक़ाबला करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि समाज की उन कुरीतिओं की और ध्यान केंद्रित कर रह है जिसकी वजह से महिलाओं की स्थिति इस समाज के अनुकूल नही है |

"आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं|" माँ ने बेटी को सचेत करना ज़रूरी क्यों समझा?

ऋतुराज जी की कविता में माँ ने बेटी को इसलिए सचेत करना ठीक समझा क्योंकि उसकी बेटी समाज में व्याप्त कुरीतियों से अनजान है और उसे दुनियादारी का कोई ज्ञान नहीं था। उसकी बेटी अभी भोली और नासमझ थी जिसे दुनियादारी और छल-कपट का पता न था। वह लोगों की शोषण प्रवृत्ति से अनजान थी। इसके अलावा वह शादी-विवाह को सुखमय एवं मोहक कल्पना का साधन समझती थी। वह ससुराल के दूसरे पक्ष से अनभिज्ञ थी। माँ यह बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि जो कठिनाईयाँ उसने अपने जीवन में देखी हैं, वह सब उसकी बेटी को भी सहनी पड़े। माँ अपनी बेटी को यह समझा रही थी कि वह अपने कोमल स्वभाव को बनाए रखे परंतु अगर कोई ससुराल में उसे उत्पीड़ित करे तो वह उसका जवाब निडरता से दे सके।

"पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की,कुछ तर्कों की और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की" इन पंक्तियों को पढ़कर लड़कियों की जो छवि आपके सामने उभरकर आती है उसे शब्दबद्ध कीजिए|

'पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की कुछ तर्कों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’, को पढ़कर लड़की की जो छवि सामने उभर कर आ रही है वह निम्नलिखित हैं-

-लड़की अभी वयस्क नहीं है।

-लड़की ने अब तक केवल सुखों को ही भोगा है दुःखो से उसका कोई लेना देना नही है |

-लड़की को दुनियादारी और समाज की कुरीतियों की समझ नहीं है वह अभी नादान है |

-लड़की को ससुराल में होने वाले छल-कपट का कोई ज्ञान नहीं है, जिस कारण से वह विवाह की सुखद कल्पना में खोई है।

-लड़की ससुराल की प्रतिकूल परिस्थितियों से अनजान है।

माँ को अपर्च, बेटी "अंतिम पूँजी" क्यों लग रही थी?

कवि ऋतुराज जी की कविता कन्यादान में माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ इसलिए लग रही थी क्योंकि माँ ने बचपन से अपनी बेटी का लालन-पालन बड़े ही स्नेह के साथ किया था। माँ के लिए उसकी बेटी एक संचित पूँजी के समान थी और कन्यादान के बाद माँ घर में एकदम अकेली रह जाती। उसका स्नेह अपनी बेटी के प्रति आपार था l बेटी के विवाह करने के बाद अब माँ की अंतिम पूंजी उसकी पुत्री ही थी अब वो भी अपने ससुराल चली गयी वह उस स्नेह को ही अपनी पूंजी मानती थी l

माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?

कन्यादान की रस्म समाप्त हो जाने की बाद माँ ने अपनी बेटी को निम्नलिखित सीख दी-

-अपनी सुंदरता पर कभी घमंड मत करना करना।

-नारी गुणों को बनाए रखने के लिए कभी किसी के अत्याचारों को मत  सहना।

-वस्त्रों और आभूषणों को बंधन न बनने देना। 

-धन-सम्पत्ति के लालच में मत पड़ना और रिश्तों के महत्व को समझना 

आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?

मेरे विचार से कन्या के साथ दान की बात करना बिलकुल उचित नहीं है क्योंकि दान तो किसी वस्तु का किया जाता है और कन्या कोई वस्तु नहीं होती है। दान कर देने के बाद दान करने वाले का उससे कोई रिस्ता या संबंध नही होता है परंतु कन्या का अपने माँ-पिता जी के साथ संबंध जीवन भर के लिए होता है। उसका दान करके के माँ पिता उसे पराया धन घोषित कर देते है जो गलत है स्त्री के जीवन का भी अपना एक महत्व होता है |

अपनी बेटी को विवाहित जीवन में आने वाले समस्त कठिनाइयों के प्रति सचेत करते हुए माँ अपनी बेटी से कहती है की 'लड़की होना पर लड़की जैसी दिखना मत' अर्थात अपने स्त्री गुणों के साथ साथ अपने आत्मसम्मान के प्रति भी सजग रहना जरूरी है  साथ ही वह यह भी समझा रही है की लड़की को अपने नारी सुलभ गुणों की सरलता, विनम्रता, सहजता, कोमलता आदि गुणों को तो बनाए रखना चाहिए परंतु उसे इतना भी कमज़ोर नहीं होना चाहिए कि लड़की समझकर ससुराल के लोग उसका शोषण करने लगे उसके अधिकारों को छीनने का प्रयास करें |

कवि ऋतुराज जी द्वारा प्रस्तुत पंक्ति,“आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलाने के लिए नहीं“, अर्थात आग का प्रयोग सिर्फ रोटी बनाने में ही करना उससे जलने के लिए नहीं समाज में गढ़ी गयी स्त्रियों की कमज़ोर स्थिति और ससुराल में परिजनों द्वारा उत्पीड़न और शोषण  करने की ओर संकेत कर रही है। कवि इन पंक्तिओ द्वारा यह कहना चाहते हैं कि स्त्रियों को समाज में कमज़ोर बनकर नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें कठिन  परिस्तिथियों में डटकर उनका मुक़ाबला करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि समाज की उन कुरीतिओं की और ध्यान केंद्रित कर रह है जिसकी वजह से महिलाओं की स्थिति इस समाज के अनुकूल नही है |

ऋतुराज जी की कविता में माँ ने बेटी को इसलिए सचेत करना ठीक समझा क्योंकि उसकी बेटी समाज में व्याप्त कुरीतियों से अनजान है और उसे दुनियादारी का कोई ज्ञान नहीं था। उसकी बेटी अभी भोली और नासमझ थी जिसे दुनियादारी और छल-कपट का पता न था। वह लोगों की शोषण प्रवृत्ति से अनजान थी। इसके अलावा वह शादी-विवाह को सुखमय एवं मोहक कल्पना का साधन समझती थी। वह ससुराल के दूसरे पक्ष से अनभिज्ञ थी। माँ यह बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि जो कठिनाईयाँ उसने अपने जीवन में देखी हैं, वह सब उसकी बेटी को भी सहनी पड़े। माँ अपनी बेटी को यह समझा रही थी कि वह अपने कोमल स्वभाव को बनाए रखे परंतु अगर कोई ससुराल में उसे उत्पीड़ित करे तो वह उसका जवाब निडरता से दे सके।

'पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की कुछ तर्कों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’, को पढ़कर लड़की की जो छवि सामने उभर कर आ रही है वह निम्नलिखित हैं-

लड़की अभी वयस्क नहीं है।

लड़की ने अब तक केवल सुखों को ही भोगा है दुःखो से उसका कोई लेना देना नही है |

लड़की को दुनियादारी और समाज की कुरीतियों की समझ नहीं है वह अभी नादान है |

लड़की को ससुराल में होने वाले छल-कपट का कोई ज्ञान नहीं है, जिस कारण से वह विवाह की सुखद कल्पना में खोई है।

लड़की ससुराल की प्रतिकूल परिस्थितियों से अनजान है।

कवि ऋतुराज जी की कविता कन्यादान में माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ इसलिए लग रही थी क्योंकि माँ ने बचपन से अपनी बेटी का लालन-पालन बड़े ही स्नेह के साथ किया था। माँ के लिए उसकी बेटी एक संचित पूँजी के समान थी और कन्यादान के बाद माँ घर में एकदम अकेली रह जाती। उसका स्नेह अपनी बेटी के प्रति आपार था l बेटी के विवाह करने के बाद अब माँ की अंतिम पूंजी उसकी पुत्री ही थी अब वो भी अपने ससुराल चली गयी वह उस स्नेह को ही अपनी पूंजी मानती थी l

कन्यादान की रस्म समाप्त हो जाने की बाद माँ ने अपनी बेटी को निम्नलिखित सीख दी-


अपनी सुंदरता पर कभी घमंड मत करना करना।

नारी गुणों को बनाए रखने के लिए कभी किसी के अत्याचारों को मत  सहना।

वस्त्रों और आभूषणों को बंधन न बनने देना। 

धन-सम्पत्ति के लालच में मत पड़ना और रिश्तों के महत्व को समझना 

मेरे विचार से कन्या के साथ दान की बात करना बिलकुल उचित नहीं है क्योंकि दान तो किसी वस्तु का किया जाता है और कन्या कोई वस्तु नहीं होती है। दान कर देने के बाद दान करने वाले का उससे कोई रिस्ता या संबंध नही होता है परंतु कन्या का अपने माँ-पिता जी के साथ संबंध जीवन भर के लिए होता है। उसका दान करके के माँ पिता उसे पराया धन घोषित कर देते है जो गलत है स्त्री के जीवन का भी अपना एक महत्व होता है |